इतिहास में पहली बार एक अपीलार्थी ने उ.प्र. सूचना आयुक्त राकेश कुमार को भेजा ‘लानत पत्र’ | RTI उत्तर प्रदेश विवाद
सुशील कुमार पाण्डेय ने राज्य सूचना आयुक्त राकेश कुमार को भेजे ‘लानत पत्र’ में RTI आदेशों की अवहेलना, गलत प्रशिक्षण, और मानसिक उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए। आयोग की भूमिका पर उठे सवाल।

प्रयागराज/कोलकाता, 12 अक्तूबर 2025: उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के इतिहास में पहली बार एक अपीलार्थी ने स्वयं राज्य सूचना आयुक्त पर सार्वजनिक रूप से ‘लानत पत्र’ जारी किया है।
प्रयागराज के हंडिया निवासी सुशील कुमार पाण्डेय, जो कई लंबित अपीलों के अपीलार्थी हैं (अपील संख्या – एस-10/ए/0243/2025, एस-10/ए/0240/2025, एस-10/ए/0230/2025, एवं एस-10/ए/0239/2025), ने अपने पत्र में सूचना आयुक्त राकेश कुमार के खिलाफ कड़े शब्दों में लिखा है कि उन्होंने—
आयोग के पूर्व आदेशों की खुली अवहेलना की,
जनसूचना अधिकारी के प्रतिनिधि को गलत प्रशिक्षण देकर सूचना से वंचित करने का तरीका सिखाया,
और पीड़ित की जनसूचना अधिकारी सहायक पुलिस आयुक्त हंडिया सुनील कुमार सिंह की RTI पर दी गई एनकाउंटर की धमकी की सूचना देने पर सूचना आयुक्त राकेश कुमार ने हँसकर उनका मखौल उड़ाया। पीड़ित सुशील कुमार पाण्डेय ने धमकी की सूचना देने के बाद हँसकर मखौल उड़ाने की तस्वीर भी सूचना आयुक्त राकेश कुमार की जारी की है।
पत्र में श्री पाण्डेय ने आरोप लगाया कि आयुक्त राकेश कुमार ने सहायक पुलिस आयुक्त (जनसूचना अधिकारी) सुनील कुमार सिंह और उनके प्रतिनिधि उपनिरीक्षक योगेन्द्र कुमार सिंह को यह निर्देश दिया कि वे “सिर्फ एक पंक्ति में उत्तर दें और RTI नियमावली 2015 के नियम 4(2)(ग) का हवाला देकर सूचना देने से मना करें।”
अपीलार्थी का कहना है कि यह रवैया न केवल जनविरोधी और पारदर्शिता विरोधी है बल्कि RTI अधिनियम, 2005 की मूल भावना को कमजोर करता है। उन्होंने यह भी लिखा है कि “यदि राज्य सचिव द्वारा जारी कोई अधिसूचना सूचना के अधिकार अधिनियम की शक्ति को सीमित करती है, तो वह स्वतः शून्य (Null and Void) हो जाती है।”
पत्र में श्री पाण्डेय ने माँग की है कि—
राकेश कुमार तत्काल अपने पद से इस्तीफ़ा दें,
उनके कार्यकाल में दिए गए सभी कानून-विरोधी आदेश निरस्त किए जाएँ,
तथा उनके वेतन और भत्तों की वसूली राज्य कोष में की जाए।
अपीलार्थी ने यह भी आरोप लगाया कि आयोग की निष्क्रियता और पक्षपातपूर्ण रवैये से “नागरिकों को वर्षों तक सूचना से वंचित रखा जा रहा है, जिससे RTI की आत्मा दम तोड़ रही है।”
पत्र के साथ श्री पाण्डेय ने सुनवाई के दौरान हुए घटनाक्रम से संबंधित प्रपत्रों की प्रतियाँ और एक फोटोग्राफिक साक्ष्य भी संलग्न किए हैं, जिन्हें आयोग के अभिलेखों में जोड़ने का अनुरोध किया गया है।
इस मामले पर अभी तक राज्य सूचना आयोग की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है।
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