हाबूरिया भाटा: जैसलमेर का रहस्यमयी पत्थर, जो दूध को दही में बदल देता है
जैसलमेर के हाबूर गाँव में पाया जाने वाला 'हाबूरिया भाटा' या 'स्वर्णगिरी' पत्थर लोकविश्वास के अनुसार दूध को दही में बदल देता है। ग्रामीण इसे पीढ़ियों से इस्तेमाल कर रहे हैं और पर्यटक इसे देखने-खरीदने आते हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से इसके दावों की अब तक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन यह पत्थर लोककथा और पर्यटन का अनूठा संगम है।

जैसलमेर का रहस्यमयी पत्थर: दूध को दही में बदलने का दावा, पर वैज्ञानिक प्रमाण अब भी अधूरे
जैसलमेर (राजस्थान): थार के रेगिस्तान की रेत में छिपा है एक ऐसा पत्थर, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह दूध को दही में बदल देता है। जैसलमेर ज़िले के हाबूर गाँव में पाए जाने वाले इस पत्थर को स्थानीय लोग 'हाबूरिया भाटा' या 'स्वर्णगिरी' कहते हैं। परंपरा के अनुसार, इस पत्थर से बने बर्तनों में जब दूध रखा जाता है तो वह कुछ ही समय में दही में बदल जाता है।
पीढ़ियों से चलती आ रही मान्यता
गाँव के बुज़ुर्ग बताते हैं कि यह परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही है। आज भी ग्रामीण इस पत्थर का इस्तेमाल दही जमाने के लिए करते हैं। इस पत्थर से बने बर्तन न केवल राजस्थान में बल्कि देश-विदेश के पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र हैं।
हाबूर गाँव में अक्सर देशी-विदेशी सैलानी इस पत्थर को देखने और खरीदने आते हैं। स्थानीय व्यापारी दावा करते हैं कि इन बर्तनों में जमा दही सेहत के लिए लाभकारी होता है।
खनिज और रसायन का दावा
स्थानीय मान्यता के अनुसार इस पत्थर में एमिनो एसिड, फ़िनायलएलिनीन, टायरोसिन जैसे रसायन और कई खनिज मौजूद हैं, जो दूध को दही में बदलने की प्रक्रिया में सहायक होते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
हालाँकि, अब तक इस दावे की पुष्टि किसी भी अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक शोध से नहीं हो पाई है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि दही बनने की प्रक्रिया में मुख्य भूमिका लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया (Lactic Acid Bacteria) की होती है, जो दूध में स्वाभाविक रूप से पाए जाते हैं।
संभव है कि इस पत्थर की सतह पर मौजूद खनिज या सूक्ष्मजीव दूध को जमाने की गति को तेज़ करते हों, परंतु यह अभी तक प्रयोगशाला आधारित अध्ययन से प्रमाणित नहीं है।
समान परंपराएँ
भारत और अफ्रीका के कई हिस्सों में मिट्टी के बर्तनों में दही जमाने की परंपरा है। शोध बताते हैं कि ऐसे बर्तन दूध का तापमान नियंत्रित रखते हैं और बैक्टीरिया की वृद्धि के लिए उपयुक्त वातावरण बनाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि 'हाबूरिया भाटा' भी इसी तरह की भूमिका निभा सकता है।
लोकविश्वास और पर्यटन का संगम
हालाँकि वैज्ञानिक प्रमाण अधूरे हैं, लेकिन इस पत्थर ने जैसलमेर के पर्यटन को एक अलग पहचान दी है। हाबूर गाँव आने वाले सैलानी इसे देखने और आज़माने में ख़ास दिलचस्पी दिखाते हैं। कई लोग इसे एक रहस्य मानते हैं, तो कई इसे लोकविश्वास और परंपरा का हिस्सा।
'दही जमाने वाला पत्थर' एक रोचक लोककथा और परंपरा है, जिसने जैसलमेर की सांस्कृतिक पहचान को अनोखा आयाम दिया है। लेकिन विज्ञान की कसौटी पर इसके दावों को परखना अभी बाकी है। यह रहस्य तभी सुलझेगा जब वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में विस्तृत अध्ययन किया जाएगा।
What's Your Reaction?






