बच्चन का रामनिरंजन परिमलेंदु के नाम पत्र

यह पत्र प्रसिद्ध कवि डॉ. हरिवंश राय बच्चन द्वारा रामनिरंजन परिमलेंदु को 28 अगस्त 1957 को लिखा गया था। इसमें बच्चन जी ने साहित्यिक मतवादों और रचनात्मक प्रेरणाओं पर स्पष्ट व मुखर राय रखी है। वे कहते हैं कि वे वाद नहीं, कवित्व देखते हैं। ‘तार सप्तक’ को वे साहित्यिक दृष्टि से निष्प्रभावी मानते हैं और अज्ञेय द्वारा उसका राजनीतिक-साहित्यिक उपयोग किए जाने की बात करते हैं। बच्चन जी अपने काव्य लेखन के औचित्य का बचाव करते हुए कहते हैं कि उनके लिए उचित-अनुचित का प्रश्न नहीं होता, बल्कि वे उस अनुभूति को अभिव्यक्त करते हैं जो दिल को फाड़ कर निकलती है। उन्होंने मधुशाला और निशा निमंत्रण के बीच के भावान्तर को अपने जीवन के परिवर्तन से जोड़ा है।

Jul 24, 2025 - 12:03
Jul 10, 2025 - 14:25
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बच्चन का रामनिरंजन परिमलेंदु के नाम पत्र
हरिवंश राय बच्चन और रामनिरंजन परिमलेंदु

डॉ० हरिवंश राय बच्चन,

एम. ए., पीएच. डी. (कैंटव)

विदेश मंत्रालय, नई दिल्ली।

28-08-57

 

प्रियवर,

पत्र के लिए धन्यवाद।

 

मैं वाद नहीं देखता, कवित्व देखता हूँ।

'तार सप्तक' वह बच्चा है जो अपनी माँ के पेट से मरा हुआ पैदा हुआ था। अज्ञेय जी अपने जीवन भर उसमें साँसें डालने के लिए उस पर उचके लगाते रहे हैं। उसकी कोई देन नहीं, और है भी तो कोई ऐसी नहीं जो और तरफ़ से भी नहीं आई। अज्ञेय जी ने साहित्यकारों के दल में नेता बनने के लिए उसे झंडे की तरह उपयोग किया है।

गद्य की ओर नहीं जा पाया, क्योंकि कविता ने जाने नहीं दिया। 'निशा निमंत्रण' के गीत लगभग एक वर्ष में लिखे गए, पर जितने लिखे गए उनमें से सब प्रकाशित नहीं किए गए।

'मधुशाला' और 'निशा निमंत्रण' का अंतर मेरे जीवन का अंतर है। जीवन दो दिन भी एक तरह का नहीं रहता।

जब देश जल रहा था, उस वक़्त क्या 'निशा निमंत्रण' उचित था?’ इसके जवाब में मुझे यह कहना है कि कविता लिखते समय मैं इस बात का विचार नहीं करता कि यह लिखना उचित है कि नहीं। मैं केवल देखता हूँ मैं जो लिख रहा हूँ वह बलपूर्वक उतर रहा है कि नहीं। जो मेरे दिल को फाड़ कर निकल रहा है यदि वह उचित नहीं है तो संसार में कुछ भी उचित नहीं है।

जीवन के पहिए के नीचे’ पर आप ने जो उद्गार प्रकट किए हैं, उसके लिए आभारी हूँ। मेरी ख़ामियाँ मुझसे बताइए, मेरी ख़ूबियाँ औरों से कहिए।

जो लिखता हूँ पत्र पत्रिकाओं में भेज देता हूँ। वही देखें। कृपा रखें।

भवदीय

 

बच्चन

पुनश्चः जो मुझे महाकवि लिखता है, मैं समझता हूँ वह मुझ पर व्यंग्य करता है। मैंने कौन सा पाप किया है कि मुझ पर व्यंग्य किया जाए?

 

स्रोत : पुस्तक : बच्चन पत्रों के दर्पण में संपादक : रामनिरंजन परिमलेन्दु रचनाकार : डॉ० हरिवंश राय बच्चन प्रकाशन : वाणी प्रकाशन

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I