‘मुक्तांचल-46’ का भव्य लोकार्पण: साहित्य, संवाद और चेतना का संगम

मुक्तांचल-46 के लोकार्पण समारोह का आयोजन 6 जून 2025 को हावड़ा के ‘आधुनिक अपार्टमेंट’ में संपन्न हुआ। इस अवसर पर समकालीन साहित्य, सामाजिक चेतना और संवाद पर विचारोत्तेजक वक्तव्य प्रस्तुत किए गए। पत्रिका के विमोचन के साथ गाथा प्रकाशन की औपचारिक घोषणा भी की गई। डॉ. पंकज साहा, सेराज खान बातिस, डॉ. मीरा सिन्हा, डॉ. विजया सिंह, डॉ. विनय मिश्रा सहित अनेक विद्वानों ने विचार रखे। काव्य-पाठ में स्वराज पाण्डेय, रमाकांत सिन्हा, भारती मिश्रा आदि ने भाग लिया। यह आयोजन साहित्य को सामाजिक सरोकारों से जोड़ने की एक जीवंत अभिव्यक्ति था।

Jul 7, 2025 - 17:32
Jul 7, 2025 - 20:25
 0
‘मुक्तांचल-46’ का भव्य लोकार्पण: साहित्य, संवाद और चेतना का संगम
‘मुक्तांचल-46’ का भव्य लोकार्पण

‘मुक्तांचल-46 का भव्य लोकार्पण: साहित्य, संवाद और चेतना का संगम

हावड़ा, 06 जुलाई 2025: साहित्यिक पत्रिका ‘मुक्तांचल’ के 46वें अंक (अप्रैल-जून 2025) का लोकार्पण समारोह हावड़ा स्थित ‘आधुनिक अपार्टमेंट’ के सभागार में अत्यंत गरिमामय वातावरण में संपन्न हुआ। यह केवल एक पत्रिका के लोकार्पण का अवसर नहीं था, बल्कि विचारों, संवेदना और समकालीन सामाजिक प्रश्नों पर गंभीर विमर्श का जीवंत मंच था।

पत्रिका लोकार्पण

लोकार्पण सत्र में ‘मुक्तांचल-46 की प्रति बलराम साव द्वारा मंच पर प्रस्तुत की गई। इसके बाद सभी मंचासीन अतिथियों ने सामूहिक रूप से पत्रिका का लोकार्पण किया। वक्ताओं ने पत्रिका के लोकार्पण को  ‘विचारों, विमर्शों और सृजनशीलता की उजास का उद्घाटन कहा।

वक्ताओं के विचार: संवाद, आलोचना और दिशा

समकालीन व्यंग्य के सजग हस्ताक्षर डॉ. पंकज साहा ने मुक्तांचल के इस अंक में प्रकाशित लेखों -विशेषकर धनेश दत्त पाण्डेय, सुभाषचन्द्र गुप्त और रजनी शर्मा के लेखों और कहानी की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि पत्रिका में प्रकाशित यात्रा-वृत्तांत और साक्षात्कार पठनीय हैं और यह अंक समकालीन साहित्य को नई दृष्टि प्रदान करता है।

कथाकार सेराज खान बातिस ने बेहद प्रखर और चिंतनशील वक्तव्य देते हुए कहा कि “धर्म का अंधविश्वास आज सबसे बड़ी सामाजिक विडंबना बन गया है। जब योग्य लोग भी मजारों पर चादर चढ़ाकर अपनी प्रतिभा को भाग्य के हवाले कर देते हैं, तब यह समाज के लिए चिंता का विषय बन जाता है।” उन्होंने मुहर्रम को याद करते हुए न्याय, सत्य और नैतिकता का संदेश दिया।

पत्रिका की संपादक डॉ. मीरा सिन्हा ने कहा कि मुक्तांचल केवल एक साहित्यिक पत्रिका नहीं, बल्कि विचारशीलता का मंच है। उन्होंने वरिष्ठ साथियों से आग्रह किया कि वे इस मंच को अपना सक्रिय अवदान  और साहित्यिक आयोजनों को सहयोग दें।

शिक्षाविद डॉ. विजया सिंह ने समाज में नैतिकता के ह्रास की बात करते हुए कहा कि पहले नकल करते हुए शर्म आती थी, पर अब उस लज्जा का लोप हो गया है। समाज में जो ‘दूरी’ की भावना बढ़ रही है, वह समाज के विघटन का संकेत देती है। उन्होंने मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया।

डॉ. विनय कुमार मिश्रा ने कहा कि प्रेमचंद जैसी कहानियाँ अब इसलिए नहीं लिखी जा रही हैं, क्योंकि लेखक अब गाँव को छोड़ महानगरों में बस गए हैं। उन्होंने प्रेमचंद, फणीश्वरनाथ रेणु और सतीनाथ भादुड़ी के साहित्य को आदर देते हुए समकालीन कथ्य की दिशा पर गंभीर टिप्पणी की।

डॉ. प्रकाश कुमार अग्रवाल ने साहित्य में मौलिकता की कमी को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि आज अधिकतर लेखन ‘कॉपी-पेस्ट’ जैसा है। यह साहित्य के लिए और समाज के लिए भी दुर्भाग्यपूर्ण है।

प्रधानाचार्य विवेक लाल ने शिक्षा व्यवस्था की बदहाल स्थिति को उजागर करते हुए कहा कि “शिक्षक कैन्टीन चला रहा है, शोधार्थी 10 किताबों से 11वीं बना रहा है। यह शोध, ज्ञान नहीं, साक्षरता का भ्रम है।”

शिक्षक व कवि प्रकाश त्रिपाठी ने भोजपुरी और हिंदी के अंतर्संबंधों पर बात की। उन्होंने कहा, “भोजपुरी और हिंदी विरोधी नहीं, सहगामी भाषाएँ हैं। इन दोनों के बीच पुल बनाए जाने की आवश्यकता है।”

गाथा प्रकाशन का परिचय - साहित्यिक दृष्टि का संस्थागत रूप

इस आयोजन में गाथा प्रकाशन की औपचारिक घोषणा भी की गई। सुशील कुमार पाण्डेय ने अपने वक्तव्य में कहा कि यह प्रकाशन केवल व्यवसाय नहीं, बल्कि भारतीय भाषाओं और साहित्यिक चेतना को समर्पित एक आंदोलन है। आगे उन्होंने कहा कि गाथा प्रकाशन शोधपरक, प्रामाणिक साहित्य का प्रकाशन के साथ ही साथ नवोदित लेखकों को मंच देगा। उन्होंने मुक्तांचल की संपादक डॉ. मीरा सिन्हा के नेतृत्व को प्रकाशन के अस्तित्व का प्रेरणास्त्रोत माना।

कविता पाठ

काव्य सत्र में रमाकांत सिन्हा, भारती मिश्रा,  अक्षिता साव, स्वराज पाण्डेय ने भावप्रवण कविताएँ प्रस्तुत कीं। दुष्यंत कुमार, जयशंकर प्रसाद और कैलाश गौतम की रचनाओं ने माहौल को साहित्यिक ऊर्जा से भर दिया। विद्यार्थी मंच से नए जुड़े सदस्य तृप्ति दुबे और उपदेश दर्जी ने अपना परिचय दिया।

धन्यवाद ज्ञापन और समापन

पद्माकर व्यास ने आयोजन के सभी सहयोगियों, वक्ताओं और श्रोताओं के प्रति आभार प्रकट किया। कार्यक्रम का संचालन विनोद यादव ने किया।

साहित्यिक कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रदीप कुमार धानुक, त्रिनेत्रकांत त्रिपाठी, डॉ. रमाशंकर सिंह, डॉ. नागिना लाल दास, शशि साव, ओम प्रकाश चौबे, धीमान मंडल व एनी का सहयोग रहा।   

मुक्तांचल-46 का यह लोकार्पण आयोजन केवल एक साहित्यिक कार्यक्रम नहीं था, यह एक आंदोलन है; विचारों की पुनर्स्थापना का, संवाद की पुनर्रचना का, और सृजन की नई चेतना का।

यह आयोजन यह दिखाता है कि साहित्य अब भी समाज की आत्मा है -जिंदा, ज़रूरी और ज़िम्मेदार।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

न्यूज डेस्क जगाना हमारा लक्ष्य है, जागना आपका कर्तव्य