''प्रेमचंद का साहित्य सत्य, न्याय और मनुष्यता का त्रिभुज” : आसनसोल गर्ल्स कॉलेज में विशेष व्याख्यान
आसनसोल गर्ल्स कॉलेज के हिंदी विभाग और IQAC द्वारा ‘युवाओं के लिए प्रेमचंद’ विषय पर एकल व्याख्यान आयोजित हुआ। विद्यासागर विश्वविद्यालय के डॉ. संजय जायसवाल ने प्रेमचंद को सत्य, न्याय और मनुष्यता का लेखक बताते हुए उनके साहित्य की वर्तमान प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में कहानी परिचर्चा, विचार-विमर्श और युवाओं के समक्ष सामाजिक चुनौतियों पर संवाद हुआ।

6 अगस्त, आसनसोल। शिल्पांचल के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान आसनसोल गर्ल्स कॉलेज के हिंदी विभाग और IQAC के संयुक्त तत्वावधान में सोमवार को "युवाओं के लिए प्रेमचंद" विषय पर एकल व्याख्यान का आयोजन हुआ। यह आयोजन न केवल साहित्यिक विमर्श का मंच बना, बल्कि युवाओं को प्रेमचंद की प्रासंगिकता और जीवन मूल्यों से जोड़ने का प्रयास भी रहा।
कार्यक्रम का शुभारंभ स्वागत वक्तव्य से हुआ, जिसमें हिंदी विभाग की शिक्षिका डॉ. पूजा पाठक ने कहा, "प्रेमचंद का साहित्य आज भी उतना ही जीवंत है, जितना उनके समय में था। यह आज के युवाओं के भविष्य के सवालों से भी गहरे रूप से जुड़ा हुआ है।"
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कॉलेज की टीचर-इन-चार्ज डॉ. मनिका साहा ने प्रेमचंद की रचनाओं को जीवन मूल्यों की चेतना का प्रतीक बताया और कहा कि प्रेमचंद हिंदी के सर्वाधिक पठनीय और लोकप्रिय लेखक हैं।
IQAC कोऑर्डिनेटर डॉ. बीरू रजक ने कहा, "प्रेमचंद की लेखनी विषम परिस्थितियों में भी सामाजिक सरोकारों से जुड़ी रही और आज भी उनकी गूंज सुनाई देती है।"
पहला सत्र: साहित्यिक परिचर्चा
कार्यक्रम के प्रथम सत्र में ऊषा प्रियंवदा की प्रसिद्ध कहानी ‘वापसी’ पर परिचर्चा हुई, जिसमें विभाग की प्रीति शर्मा, पूर्णिमा कुमारी और प्रेरणा राउत ने कहानी के विविध आयामों पर विचार रखे। परिचर्चा का संचालन ईशाना खान ने किया, जिसमें युवाओं और समाज के बदलते रिश्तों पर गंभीर चर्चा हुई।
दूसरा सत्र: एकल व्याख्यान
दूसरे सत्र में हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्ण कुमार श्रीवास्तव ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा, "आज के युवाओं के सामने भी वही समस्याएँ खड़ी हैं जो प्रेमचंद के समय थीं- सांप्रदायिकता, जातिवाद, स्त्री असमानता, दलित अधिकार और किसान संकट। यही कारण है कि यह आयोजन युवाओं को केंद्र में रखकर किया गया है।"
मुख्य वक्ता, विद्यासागर विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. संजय जायसवाल ने अपने व्याख्यान में कहा, "प्रेमचंद की कहानी ‘परीक्षा’ में शिक्षा का वास्तविक अर्थ स्पष्ट होता है। उनके लिए शिक्षा केवल डिग्री नहीं, बल्कि ज्ञान, चेतना और संवेदनशीलता का माध्यम है।" उन्होंने प्रेमचंद को किसानों, दलितों, स्त्रियों, राष्ट्र, भाषा और सांप्रदायिक सौहार्द का संवेदनशील लेखक बताते हुए कहा, "प्रेमचंद ने अंधविश्वास, अज्ञानता और कट्टरता को मानव-विरोधी माना और धर्म को मनुष्यता की ओर ले जाने वाला मार्ग बताया।"
उन्होंने विशेष रूप से प्रेमचंद की स्त्री पात्रों मालती, जालपा, झुनिया, सोफिया, धनिया, मुन्नी का उल्लेख करते हुए कहा कि ये पात्र आत्मसमर्पण नहीं, बल्कि प्रश्न करने का साहस रखती हैं।
डॉ. जायसवाल ने निष्कर्ष में कहा- "प्रेमचंद का साहित्य सत्य, न्याय और मनुष्यता के त्रिभुज पर टिका है, जो आज भी समाज के लिए दिशा-दर्शक है।"
संचालन और धन्यवाद
कार्यक्रम का संचालन विभाग की छात्रा माधुरी यादव ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. विजेंद्र कुमार ने किया।
यह आयोजन न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा, बल्कि इसने यह भी साबित किया कि प्रेमचंद के विचार और लेखन आज के युवाओं को सामाजिक जागरूकता, नैतिक मूल्यों और मानवीय संवेदनाओं की ओर प्रेरित करने में सक्षम हैं।
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