गवाह को धमकाना अब सीधे FIR का मामला: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, कोर्ट की शिकायत की आवश्यकता नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि IPC की धारा 195A के तहत गवाह को धमकाना एक संज्ञेय अपराध है। पुलिस अब बिना अदालत की शिकायत के FIR दर्ज कर सकती है। यह फैसला केरल और कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेशों को पलटता है।

Oct 29, 2025 - 10:27
Oct 31, 2025 - 15:43
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गवाह को धमकाना अब सीधे FIR का मामला: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, कोर्ट की शिकायत की आवश्यकता नहीं
न्यायाधीश संजय कुमार और न्यायाधीश आलोक अराधे

नई दिल्ली, 28 अक्तूबर 2025: सुप्रीम कोर्ट ने गवाहों की सुरक्षा से जुड़े मामलों पर बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा है कि किसी व्यक्ति को झूठी गवाही देने या न देने के लिए धमकाना, भारतीय दंड संहिता की धारा 195A के तहत आता है, और यह एक संज्ञेय अपराध है। इसलिए, पुलिस को सीधे FIR दर्ज करने और जांच करने का पूर्ण अधिकार है।

जस्टिस संजय कुमार (जिन्होंने फैसला लिखा) और जस्टिस आलोक अराधे की दो सदस्यीय बेंच ने इस फैसले के माध्यम से वर्षों से चले आ रहे कानूनी भ्रम को समाप्त किया। अदालत ने यह भी कहा कि झूठी गवाही से जुड़े अपराधों पर लागू CrPC की धारा 195(1)(b)(i) की प्रक्रिया (जिसमें अदालत से शिकायत जरूरी होती है) धारा 195A पर लागू नहीं होती।

पृष्ठभूमि

यह निर्णय केरल राज्य बनाम सुनी @ सुनील और CBI बनाम अभियुक्तगण (कर्नाटक) मामलों पर आया।

  • केरल मामले में पुलिस ने हत्या के एक गवाह को धमकाने पर FIR दर्ज की थी, जिसे हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया था।
  • कर्नाटक मामले में, CBI ने पाया कि अभियुक्तों ने गवाहों को अदालत में बयान देने से पहले डराया-धमकाया, जिससे वे hostile हो गए। लेकिन हाईकोर्ट ने यह मानते हुए संज्ञान रद्द कर दिया कि अदालत की लिखित शिकायत जरूरी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने दोनों ही निर्णयों को ‘त्रुटिपूर्ण और अस्थिर’ (erroneous and unsustainable) बताते हुए पलट दिया।

सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या

कोर्ट ने माना कि:

  • धारा 195A को 2006 में IPC में जोड़ा गया था और CrPC की पहली अनुसूची में इसे संज्ञेय अपराध घोषित किया गया।
  • यह अपराध धारा 193-196 के अपराधों से भिन्न है, क्योंकि गवाह को धमकी अक्सर मुकदमे से पहले दी जाती है।
  • अगर इस अपराध के लिए अदालत की शिकायत को अनिवार्य बना दिया जाए, तो यह पूरी प्रक्रिया को पंगु” (cripple and hamper) कर देगा।

कोर्ट ने दो वैकल्पिक उपाय भी स्पष्ट किए:

1.     FIR का विकल्प (Police Route): पुलिस CrPC की धारा 154 के तहत FIR दर्ज कर सकती है।

2.     शिकायत का विकल्प (Judicial Route): गवाह स्वयं CrPC की धारा 195A के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज कर सकता है।

लेकिन यह दूसरा विकल्प केवल अतिरिक्त उपाय (additional remedy) है, अनिवार्य नहीं।

परिणाम

  • केरल हाईकोर्ट का 04.04.2023 का आदेश रद्द;
    अभियुक्त सुनी @ सुनील की जमानत निरस्त, दो सप्ताह में आत्मसमर्पण का आदेश।
  • कर्नाटक हाईकोर्ट के 22.01.2025 के आदेश भी रद्द;
    मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान बहाल, अभियुक्तों के खिलाफ कार्यवाही पुनः शुरू।

कानूनी प्रभाव

यह फैसला देशभर की पुलिस और अदालतों के लिए एक नया दृष्टांत (precedent) बनेगा। अब कोई भी गवाह यदि किसी मुकदमे में धमकाया जाता है, तो वह सीधे पुलिस से FIR दर्ज करवा सकता है, बिना अदालत में लंबी प्रक्रिया से गुजरे।

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