प्रो. चन्द्रकला पांडेय को कोलकाता में भावभीनी श्रद्धांजलि | हिंदी-बंगला साहित्य की सेतु

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, कोलकाता केंद्र द्वारा प्रो. चन्द्रकला पांडेय को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। हिंदी और बंगला साहित्य के बीच सेतु रहीं चंद्रा दीदी के बहुआयामी योगदान को याद किया गया।

Sep 18, 2025 - 23:26
Sep 18, 2025 - 23:34
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प्रो. चन्द्रकला पांडेय को कोलकाता में भावभीनी श्रद्धांजलि | हिंदी-बंगला साहित्य की सेतु
शोक सभा में उपस्थित प्राध्यापक एवं विद्यार्थी

कोलकाता, 18 सितम्बर 2025 : कलकत्ता विश्वविद्यालय की पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष, वरिष्ठ हिंदी साहित्यकार व राज्यसभा की पूर्व सांसद प्रो. चन्द्रकला पांडेय के निधन पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, क्षेत्रीय केंद्र कोलकाता में एक शोकसभा आयोजित की गई। ब्रेन स्ट्रोक के कारण 81 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। वे लंबे समय से अस्वस्थ थीं। उनके जाने से न केवल कोलकाता, बल्कि पूरे हिंदी जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।

श्रद्धांजलि सभा की अध्यक्षता कर रहे डॉ. अमित राय, जो केंद्र के अकादमिक निदेशक हैं, ने कहा – "चंद्रा दीदी हमारे लिए सिर्फ एक शिक्षिका नहीं, बल्कि मार्गदर्शक, सहयोगी और प्रेरणा स्रोत थीं। वे हिंदी और बंगाली साहित्य के बीच एक मजबूत सेतु थीं।"

डॉ. राय ने यह भी साझा किया कि कोलकाता केंद्र की स्थापना के समय से ही प्रो. पांडेय की उपस्थिति और सहभागिता निरंतर बनी रही। उन्होंने कई वर्षों तक केंद्र में अध्यापन किया और विद्यार्थियों के साथ आत्मीय संबंध बनाए रखे।

डॉ. राय ने आगे बताया कि "पश्चिम बंगाल का शायद ही कोई हिंदी विभाग होगा जहाँ उनके पढ़ाए हुए छात्र-छात्राएं आज सम्मानजनक पदों पर न हों।"

प्रो. पांडेय का साहित्यिक योगदान बहुआयामी था। उन्होंने हिंदी और बंगला दोनों भाषाओं में समान रूप से साहित्य रचा और अनुवाद कार्य किए।

उनके प्रमुख काव्य संग्रह हैं –

'आराम कहां है'

'उत्सव नहीं हैं मेरे शब्द'

साथ ही वे 'साम्या चिंतन' त्रैमासिक पत्रिका की सह-संपादक और 'उद्भावना' के बांग्ला साहित्य विशेषांक की अतिथि संपादक रहीं। उनके अनुवादों ने बंगला साहित्य को हिंदी जगत से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कार्यक्रम में उपस्थित प्रमुख शिक्षकों में डॉ. चित्रा माली (सहायक प्रोफेसर), डॉ. अभिलाष गौड़, डॉ. ऋचा द्विवेदी, अनुभाग अधिकारी डॉ. आलोक सिंह, सहायक सुकेन शिकारी, सुषमा एवं एम.ए. हिंदी साहित्य, एम.ए. गांधी एवं शांति अध्ययन विभाग के छात्र-छात्राएं, तथा दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के विद्यार्थी भी भारी संख्या में उपस्थित रहे। अंत में दो मिनट का मौन रखकर प्रो. चंद्रकला पांडेय को अंतिम श्रद्धांजलि दी गई।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I