फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ और उनके ड्राइवर रिसाल सिंह की प्रेरक कहानी
1971 युद्ध के नायक फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने अपनी युद्ध-जागीर की ज़मीन अपने ड्राइवर को उपहार में दे दी। यह सच्ची घटना बताती है कि असली महानता केवल युद्ध जीतने में नहीं, बल्कि इंसानियत और सम्मान देने मंी है।

1971 के युद्ध से पहले दिल्ली के नॉर्थ ब्लॉक में कैबिनेट की एक अहम बैठक चल रही थी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और रक्षा मंत्री बाबू जगजीवन राम चाहते थे कि भारत अप्रैल में ही पाकिस्तान पर हमला करे। लेकिन सेना प्रमुख जनरल सैम मानेकशॉ ने दृढ़ स्वर में कहा, “अगर अभी हमला किया तो भारत हार जाएगा। तैयारी का समय मिले तो मैं आपको विजय की गारंटी देता हूँ।”
यह वही सैम मानेकशॉ थे जिन्हें देश बाद में 'सैम बहादुर' और भारत के पहले फ़ील्ड मार्शल के रूप में जानता है।
उन दिनों उनकी सरकारी गाड़ी चलाते थे हरियाणा के हवलदार रिसाल सिंह। वह आर्मी सर्विस कोर से चयनित चालक थे और मानेकशॉ को साये की तरह हर जगह पहुँचाते।
युद्ध के बाद 1971 की ऐतिहासिक जीत ने सैम मानेकशॉ को राष्ट्रीय नायक बना दिया। लेकिन जैसे-जैसे रिटायरमेंट नज़दीक आया, उन्होंने देखा कि उनका ड्राइवर कुछ विचलित और उदास रहता है।
“रिसाल सिंह, क्या हुआ? चेहरा ऐसा क्यों है जैसे घर की भैंस ने दूध देना बंद कर दिया हो?”
जनरल ने मुस्कराकर पूछा।
ड्राइवर ने संकोच से कहा, “साहब, मैं जल्दी सेवा से मुक्त होना चाहता हूँ। जब तक आपकी गाड़ी चला रहा था, जीवन का सबसे बड़ा सम्मान था। अब किसी और की गाड़ी नहीं चला पाऊँगा।”
जनरल चौंक गए। उन्होंने समझाया कि सेवा पूरी करो, पदोन्नति मिलेगी, भविष्य सुरक्षित रहेगा। लेकिन रिसाल सिंह अडिग रहे।
आख़िरकार मानेकशॉ ने उसकी इच्छा मान ली। और जब वह विदा लेने लगा, तो जनरल ने अपने स्वभाविक स्नेह और बड़े दिल का परिचय दिया। हरियाणा सरकार ने युद्ध के उपलक्ष्य में जो ज़मीन फ़ील्ड मार्शल को भेंट की थी, उसका बड़ा हिस्सा उन्होंने उसी ड्राइवर के नाम कर दिया।
प्रेरणा
एक ओर सैम मानेकशॉ की दूरदृष्टि थी, जिसने 1971 में राष्ट्र को निर्णायक विजय दिलाई; दूसरी ओर उनका इंसानी चेहरा था, जहाँ उन्होंने अपने एक साधारण सैनिक-ड्राइवर की भावनाओं का सम्मान किया और उसे जीवन की सबसे बड़ी पूँजी सौंप दी।
यही कारण है कि सैम बहादुर केवल एक महान सेनापति ही नहीं, बल्कि करुणा और उदारता के प्रतीक भी माने जाते हैं।
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