उत्तर प्रदेश आरटीआई आयोग विवाद: कार्यकर्ता ने धारा 17 के तहत मुख्य सूचना आयुक्त को हटाने की माँग की
मानवाधिकार कार्यकर्ता संजय कुमार वर्मा ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को एक याचिका दायर कर मुख्य सूचना आयुक्त राजकुमार विश्वकर्मा के कथित कदाचार, सुनवाई न करने और अनियमित आदेशों की सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में जाँच कराने की माँग की है।
ऑनलाइन सुनवाई में न जोड़ने, लिखित अभिकथन को रिकॉर्ड न करने और राज्यपाल को नोटिस न भेजने के आरोप; सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों से जाँच कराने का आग्रह।
अयोध्या/लखनऊ। उत्तर प्रदेश सूचना आयोग की कार्यशैली एक बार फिर विवादों में है। सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ता संजय कुमार वर्मा, जिला उपाध्यक्ष, आज़ाद अधिकार सेना, ने राज्यपाल श्रीमती आनंदी बेन पटेल को एक गंभीर ज्ञापन भेजकर मुख्य सूचना आयुक्त डॉ. राजकुमार विश्वकर्मा को पद से हटाने की औपचारिक मांग की है।
ज्ञापन विषय:
‘सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 17 के तहत मुख्य सूचना आयुक्त को पदमुक्त करने हेतु जाँच कराए जाने का अनुरोध’
शिकायत के प्रमुख आरोप
संजय कुमार वर्मा ने अपने विस्तृत ज्ञापन में निम्न गंभीर बिंदुओं का उल्लेख किया है-
ऑनलाइन सुनवाई से लगातार बाहर रखना
श्री वर्मा के अनुसार, सूचना आयोग के सुनवाई कक्ष-51 में होने वाली ऑनलाइन सुनवाई में उन्हें जानबूझकर नहीं जोड़ा जाता और बिना सुनवाई के ही प्रकरणों का निस्तारण कर दिया जाता है।
मुख्य सूचना आयुक्त की निष्पक्षता पर सवाल
उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्य सूचना आयुक्त डॉ. राजकुमार विश्वकर्मा न तो निष्पक्ष हैं और न ही शिकायतों का विधिसम्मत निस्तारण कर रहे हैं।
धारा 17 के आवेदन पर मनमाना व्यवहार
वर्मा ने पहले सूचना आयुक्त शकुंतला गौतम को पदमुक्त करने के लिए धारा 17 के तहत राज्यपाल को आवेदन भेजा था। जब उन्होंने इस संबंध में सूचना माँगी, तो न सूचना दी गई और न ही उनकी शिकायत का निष्पक्ष निर्णय हुआ।
राज्यपाल को नोटिस न भेजकर ‘अवैध निस्तारण’
उनका आरोप है कि मुख्य सूचना आयुक्त ने राज्यपाल को नोटिस ही जारी नहीं किया, उल्टा सूचना आयोग को ही पार्टी बना दिया, उनके लिखित अभिकथन को रिकॉर्ड पर नहीं लिया, ऑनलाइन सुनवाई में भी उन्हें नहीं जोड़ा। श्री वर्मा के अनुसार यह सब “सूचना आयुक्तों को बचाने की नीयत से आपराधिक षड्यंत्र” है।
पुनर्विचार (आदेश वापसी) में भी वही प्रक्रिया दोहराई गई
उनका कहना है कि स्पष्ट अभिकथन देने के बावजूद पुनर्विचार प्रार्थना-पत्र भी बिना सुनवाई के निस्तारित कर दिया गया।
धारा 17 के अनुसार राज्यपाल की भूमिका पर जोर
वर्मा ने अपने ज्ञापन में उल्लेख किया है:
सूचना आयुक्तों की पदमुक्ति की शक्ति केवल राज्यपाल के पास है।
यह जाँच सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों से कराई जानी चाहिए।
इसलिए आवेदन को किसी विभाग, प्रशासनिक सुधार या सूचना आयोग को न भेजा जाए।
उन्होंने यह भी बताया कि स्वयं सूचना आयोग ने लिखित रूप से कहा है कि “सूचना आयोग अपने आयुक्तों पर कार्रवाई करने के लिए सक्षम प्राधिकारी नहीं है।”
संलग्न दस्तावेज़
वर्मा ने राज्यपाल को भेजे ज्ञापन के साथ कई महत्वपूर्ण दस्तावेज़ संलग्न किए हैं-
1. शिकायत संख्या 501/C/0211/2024 से संबंधित आवेदन, नोटिस, कथित अवैध आदेश और अभिकथन
2. आदेश वापसी S01/P/0013/2025 के सभी दस्तावेज़ों की प्रतियां
मामला क्यों महत्वपूर्ण है?
यह प्रकरण RTI अधिनियम की धारा 17 से जुड़ा है, जिसमें किसी सूचना आयुक्त को पद से हटाने के लिए “अमानवीय आचरण, दुराचार, क्षमता का अभाव, स्वार्थ-संघर्ष, शक्तियों का दुरुपयोग” जैसी परिस्थितियों में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों से जाँच कराना अनिवार्य है।
इसलिए मामला:
✔ संवैधानिक
✔ अर्द्ध-न्यायिक आचरण
✔ राज्यपाल की विशिष्ट शक्तियों
✔ RTI के भविष्य और पारदर्शिता सब पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है।
अभी प्रतिक्रिया नहीं
इस रिपोर्ट के प्रकाशन तक राज्यपाल कार्यालय, मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयोग, उत्तर प्रदेश की ओर से कोई आधिकारिक टिप्पणी प्राप्त नहीं हुई है।
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