क्या उ.प्र. में RTI की आत्मा मुँह चिढ़ा रही है? भ्रष्ट सूचना आयुक्त राकेश कुमार पर ‘सूचना न दिलवाकर निस्तारित’ करने के आरोप
सूचना आयोग के आदेश दिनांक 17 अक्तूबर 2025 में राज्य सूचना आयोग ने कई RTI-अपील निस्तारित कीं। हालाँकि, कानूनविद कहते हैं कि सूचना आयुक्त राकेश कुमार ने सूचना दिलवाने के बजाय अपील निस्तारित कर RTI-कानून की मूल भावना का उल्लंघन किया, पूर्व में अपीलकर्ता सुशील कुमार पाण्डेय ने सार्वजनिक रूप से आयुक्त को ‘लानत पत्र’ भेजा। जानिए पूरे विवाद का विश्लेषण...
लखनऊ/ प्रयागराज। सूचना आयोग के आदेश दिनांक 17 अक्तूबर 2025 में राज्य सूचना आयोग के सूचना आयुक्त राकेश कुमार ने अपीलकर्ता रवि शंकर की RTI-अपील को निस्तारित करते हुए निष्कर्ष निकाला कि अपीलकर्ता द्वारा अत्यधिक संख्या में आवेदन प्रस्तुत करने से सिस्टम पर भार पड़ा है। आयोग ने जनसूचनाधिकारी के विरुद्ध कोई कार्यवाही न करना उचित माना। हालांकि, इस फैसले पर यह गंभीर आरोप भी उठ रहे हैं कि सूचना आयुक्त राकेश कुमार ने जानकारी दिलवाने के बजाय अपील निस्तारित कर के RTI-कानून की मूलभावना ‘पारदर्शिता और जवाबदेही’ का उल्लंघन किया। तर्क है कि इससे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा कमजोर पड़ सकती है; इसी तरह पूर्व में आयुक्त पर ऐसे कई निस्तारणों के आरोप लगे हैं और एक अपीलकर्ता सुशील कुमार पाण्डेय ने सार्वजनिक रूप से सूचना आयुक्त राकेश कुमार को ‘लानत पत्र’ भी भेजा था।
मामला क्या है (तथ्य)
प्रकरण: एस10/ए/0008/2024 रवि शंकर बनाम जन सूचनाधिकारी कार्यालय, जिलाधिकारी प्रयागराज।
सुनवाई व उपस्थिति: अपीलार्थी रवि शंकर की ऑनलाइन सुनवाई दिनांक 25 सितंबर 2025 को उपस्थित; जनसूचनाधिकारी की ओर से प्रतिनिधि उपस्थित रहीं।
मूल आवेदन: अपीलार्थी ने दिनांक 19.10.2023 को सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 की धारा 6(1) के तहत सूचनाएँ माँगीं; सूचना न मिलने पर प्रथम अपील और 14.01.2024 को द्वितीय अपील आयोग में प्रस्तुत की गई।
आयोग के आदेश दिनांक 17 अक्तूबर 2025 में : अपील के दस्तावेजों और पक्षकारों के तर्कों के अवलोकन के बाद आयोग ने पाया कि अपीलकर्ता ने कुल 32 अपील/शिकायत/आदेश वापसी प्रार्थना-पत्र सूचीबद्ध कराए थे; आयोग ने यह माना कि आवेदक का RTI का उपयोग ‘अत्यधिक’ और प्रणालीगत रूप से हो रहा है। आयोग ने जनसूचनाधिकारी के विरुद्ध कोई कार्रवाई जरूरी न समझते हुए अपील निस्तारित कर दी।
विवादित बिंदु, आरोप और तर्क
अभिप्राय: आलोचक और कुछ नागरिक अधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि आदेश की शब्दावली विशेषकर ‘अपीलों की संख्या' और 'प्रणाली पर भार' के आधार पर आयुक्त ने सूचना उपलब्ध न करवाई जाने के मामलों में अपील को बंद कर दिया, जबकि RTI का मंतव्य मूलतः सूचना प्रदान कराना है।
पूर्व घटनाएँ: उपयोगकर्ता-प्रदान विवरण के अनुसार (और सार्वजनिक आरोपों के तहत), सूचना आयुक्त राकेश कुमार पर पहले भी 'मानमाना' निस्तारण करने के आरोप लगे हैं; यही कारण है कि उपर्युक्त अपीलकर्ता सुशील कुमार पाण्डेय ने आयुक्त को सार्वजनिक रूप से ‘लानत पत्र’ भेजा, एक ऐसा कड़ा सार्वजनिक निन्दा पत्र जो न्यायिक/व्यवस्थित जवाबदेही की माँग करता है।
विशेषज्ञ-विश्लेषण
कानूनी दृष्टि से: RTI-कानून का उद्देश्य सूचना का शीघ्र और सुलभ प्रवाह सुनिश्चित करना है। परंतु कानून में दुरुपयोग रोकने के लिए व्यवस्थाएँ भी हैं जैसे अपील प्रक्रिया, आयोग द्वारा निर्देश और यदि आवेदक अत्यधिक/अनावश्यक अनुरोधों से सार्वजनिक अंगों का कार्य बाधित कर रहा हो तो कार्रवाई के विकल्प हैं। प्रश्न यह बनता है कि क्या आयोग ने संतुलन बनाए रखा या सूचना देने के विकल्पों को प्राथमिकता नहीं दी गई।
नागरिक-यथार्थ: यदि किसी उपयोगकर्ता को बार-बार और वैध तरीके से सूचना माँगी हो और जनसूचनाधिकारी जवाब न दे रहा हो, तो आयोग का कर्तव्य होता है कि वह सूचना दिलवाने का निर्देश दे, केवल अपील निस्तारित न करे। ऐसा न होने पर RTI तंत्र की विश्वसनीयता प्रभावित होती है।
असर और सामाजिक प्रतिक्रिया
नागरिक संगठन और RTI-सक्रियता समूह इस फैसले को सकंलित रूप से देख रहे हैं और कुछ ने कहा है कि यह ‘precedent’ बन सकता है जिससे विभाग सूचना देने की बजाय अपील निस्तारित करा सकेंगे।
अपीलकर्ताओं द्वारा उठाए गए आरोपों ने आयोग पर पारदर्शिता की माँग को फिर से जोरदार बना दिया है। सुशील कुमार पाण्डेय जैसे व्यक्तियों द्वारा सार्वजनिक निन्दा (लानत पत्र) भेजना संकेत है कि सामान्य नागरिकों में रोष है और वे आयुक्त से जवाबदेही चाहते हैं।
आगे का रास्ता
आयोग से जवाब माँगा जाना चाहिए: आरोपित निर्णयों पर स्पष्ट व्याख्या और कारण-त्रुटि का पब्लिक नोट जारी होना चाहिए, जिससे यह स्पष्ट हो कि किस परिस्थिति में निस्तारण बेहतर विकल्प था।
न्यायिक समीक्षा का विकल्प: यदि अपीलकर्ता को लगे कि आयोग ने गलत फरमान दिया, तो सुप्रीम कोर्ट या उच्च न्यायालय के समक्ष पिटिशन व विचार-विमर्श का रास्ता भी खुला है।
नीतिगत स्तर पर सुधार: RTI प्रक्रिया में ‘अत्यधिक आवेदन’ की परिभाषा व उसको संभालने के स्पष्ट दिशानिर्देश बनाए जाने की आवश्यकता है, ताकि पारदर्शिता और सूचना आयुक्त की योग्यता को परखा जा सके।
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