लास्ज़लो क्राज़्नाहोरकाई : अंधकार में रोशनी तलाशता एक नोबेल स्वर
लास्ज़लो क्राज़्नाहोरकाई ने 2025 का साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार जीतकर हंगरी की आवाज़ को विश्व तक पहुँचाया। ‘सैतान्टैंगो’ और उनकी बहती हुई लेखन शैली साम्यवाद-पश्चात हंगरी के अंधकार में उम्मीद और अर्थ खोजने की विरासत को दर्शाती है, जिसमें बेकेट और काफ़्का का प्रभाव स्पष्ट है।

बेतुके रंगमंच के उस्ताद और बेजोड़ नाटककार सैमुअल बेकेट का उदाहरण देते हुए, नोबेल पुरस्कार विजेताओं में नवीनतम सुपरस्टार लास्ज़लो क्राज़्नाहोरकाई ने 2025 का साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार जीतने की खबर को ‘आपदा’ बताया। किंतु, इस ‘आपदा’ में भी उन्होंने विनम्रता और उल्लास का भाव रखते हुए कहा, “मुझे गर्व है कि मैं अपनी भाषा, हंगेरियन में दुनिया को कहानियाँ सुना सकता हूँ।”
यह सम्मान उन्हें 2015 में उनकी संपूर्ण कृतियों के लिए ‘मैन बुकर इंटरनेशनल पुरस्कार’ मिलने के एक दशक बाद मिला है।
एक हंगेरियन यहूदी का बहुध्वनिक दृष्टिकोण
71 वर्षीय क्राज़्नाहोरकाई का जन्म 1954 में दक्षिण-पूर्वी हंगरी के छोटे कस्बे ग्युला में हुआ था, जो रोमानियाई सीमा के निकट है। दिलचस्प बात यह है कि उनके पिता ने उन्हें दस वर्ष की आयु तक यह नहीं बताया था कि वे यहूदी हैं। शायद इसी रहस्य और आत्म-पहचान की जटिलता ने उनके भीतर वह दृष्टि विकसित की, जिससे वे दुनिया को एक बहुध्वनि क्षेत्र (polyphonic space) के रूप में देख सके, जहाँ असंगति, मौन और प्रतिरोध एक साथ साँस लेते हैं।
‘सैतान्टैंगो’: प्रतिरोध की उदासी
क्राज़्नाहोरकाई का पहला उपन्यास ‘सैतान्टैंगो’ (Satantango) 1985 में हंगेरियन भाषा में प्रकाशित हुआ और तुरंत ही साहित्यिक सनसनी बन गया। यह उपन्यास साम्यवाद के पतन से ठीक पहले के ग्रामीण हंगरी को चित्रित करता है एक परित्यक्त सामूहिक खेत, जहाँ गरीबी, निराशा और प्रतीक्षा में डूबे लोग किसी चमत्कार की आस लगाए हैं। कहानी का केंद्र तब बदलता है जब इरिमियास और उसकी साथी पेत्रिना, जिन्हें मृत मान लिया गया था, अचानक लौट आते हैं। उनका आगमन गाँव के लोगों के लिए या तो आशा के दूतों का संकेत है या अंतिम न्याय का।
शैतानी तत्व : विनाश में पुनर्जन्म की प्रतीक्षा
‘सैतान्टैंगो’ में शैतान कोई धार्मिक इकाई नहीं, बल्कि मानव की निराशा और मुक्ति की सीमाओं का प्रतीक है। क्राज़्नाहोरकाई ‘शैतान’ को उस मानसिक अंधकार के रूप में चित्रित करते हैं जहाँ उम्मीद मर चुकी है, पर अभी भी कोई अदृश्य नृत्य चलता रहता है विनाश और पुनर्जन्म का। इरिमियास का चरित्र इसी दोहरे भाव का दर्पण है वह एक साथ उद्धारक भी है और विनाशक भी। इस कथा में ‘शैतान’ वह शक्ति है जो गिरावट को संभव बनाती है, ताकि कोई नया आरंभ जन्म ले सके। क्राज़्नाहोरकाई के लिए अंधकार कोई भय नहीं, बल्कि अर्थ की खोज का माध्यम है ठीक वैसे ही जैसे बेकेट अपने बेतुकेपन में अर्थ की तलाश करते हैं।
अर्थ की असंभवता में अर्थ की खोज
लास्ज़लो क्राज़्नाहोरकाई के साहित्य में अंधकार, मौन और असंगति केवल प्रतीक नहीं, बल्कि अस्तित्व के अनुभव हैं। उनका लेखन हमें यह सिखाता है कि भयावहता के नीचे भी सुंदरता छिपी होती है, हर पतन में पुनरुत्थान का बीज होता है। बेकेट की तरह वे भी ‘शून्य’ में संवाद खोजते हैं और यही उन्हें हमारे समय का सबसे गूढ़, पर सबसे ज़रूरी कथाकार बनाता है।
अनुवादकों का भी सम्मान
यह नोबेल केवल एक लेखक की जीत नहीं, बल्कि उन अनुवादकों की भी उपलब्धि है जिन्होंने मध्य यूरोप की जटिल संस्कृति, दर्शन और इतिहास को दुनिया के कोनों तक पहुँचाया। क्राज़्नाहोरकाई की भाषा में वह धड़कन है, जो मध्य यूरोप के भूगोल, उसके भय, और उसकी दार्शनिक बेचैनियों को एक साथ गूँथ देती है।
उनकी रचनाएँ चाहे वह काफ़्का, दोस्तोएव्स्की, मेलविल, गेंजी या सर्वेंटेस के प्रतीकात्मक पात्रों की काल्पनिक उपस्थिति हों, विश्व साहित्य में विचार और संवेदना के एक नए आयाम की स्थापना करती हैं।
पूर्णविराम क्यों नहीं?
क्राज़्नाहोरकाई की लेखन-शैली उनकी दार्शनिक दृष्टि की तरह ही निरंतर बहती है। वे पारंपरिक पूर्णविराम का बहुत कम प्रयोग करते हैं। उनका उद्देश्य पाठक को विचारों की अबाध गति का अनुभव कराना है जहाँ एक विचार खत्म नहीं होता, बल्कि अगले में विलीन हो जाता है। यह शैली उन्हें काफ़्का, जेम्स जॉयस और बेकेट की परंपरा में खड़ा करती है। आलोचकों के अनुसार, इस प्रयोग से उनकी भाषा में एक लयबद्ध बेचैनी जन्म लेती है मानो पाठक भी उस अंतहीन नृत्य का हिस्सा बन गया हो, जहाँ वाक्य सा लेते हैं, रुकते नहीं।
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