भारतीय भाषा परिषद में आ.रामचन्द्र शुक्ल और डॉ.रामविलास शर्मा जयंती का आयोजन

भारतीय भाषा परिषद और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा कोलकाता में आयोजित जयंती समारोह में साहित्य संवाद का आयोजन हुआ। डॉ. शंभुनाथ ने कहा कि रामचन्द्र शुक्ल और रामविलास शर्मा ने हिंदी को ऐतिहासिक व वैचारिक विस्तार दिया। कार्यक्रम में कवयित्रियों ने समकालीन समाज की सच्चाई को कविता में स्वर दिया।

Oct 11, 2025 - 20:56
Oct 11, 2025 - 20:59
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भारतीय भाषा परिषद में आ.रामचन्द्र शुक्ल और डॉ.रामविलास शर्मा जयंती का आयोजन
साहित्य संवाद का आयोजन

आचार्य शुक्ल और डॉ रामविलास शर्मा ने हिंदी की परंपरा को विस्तार दिया : डॉ. शंभुनाथ

कोलकाता, 11 अक्तूबर। भारतीय भाषा परिषद और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा आचार्य रामचन्द्र शुक्ल एवं डॉ. रामविलास शर्मा की जयंती के अवसर पर एक विशेष साहित्य संवाद का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का संचालन मॉडरेटर सूर्य देव रॉय ने किया।

संयोजक संजय जायसवाल ने कहा कि साहित्य संवाद का उद्देश्य रचनात्मकता को सामाजिकता से जोड़ना है। आज जब समाज में असहमति और विभाजन का दौर है, ऐसे में साहित्य संवाद एक संवादपरक पहल के रूप में महत्वपूर्ण है।

स्वागत वक्तव्य में आशीष झुनझुनवाला ने कहा, “समाज जिस दिशा में जा रहा है, ऐसे समय में यह आयोजन तूफ़ान में एक दिए की तरह है।” उन्होंने कहा कि इससे युवाओं को दिशा मिलेगी और विचार की नई लहर उठेगी।

अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए परिषद के निदेशक डॉ. शंभुनाथ ने कहा कि “रामचन्द्र शुक्ल और रामविलास शर्मा ने हिंदी की परंपरा को गहराई और विस्तार दिया। शुक्लजी ने हिंदी के विकास को ब्रज, अवधी और मैथिली जैसी भाषाओं से जोड़कर देखा, जबकि डॉ. शर्मा ने भारतीयता को औपनिवेशिक दृष्टि के बरक्स स्थापित किया।”

विचार प्रस्तुत करते हुए मृत्युंजय श्रीवास्तव ने कहा कि “आचार्य शुक्ल बहुभाषी व्यक्तित्व थे। आज जब हम एकभाषी होते जा रहे हैं, तो भाषाई विविधता के लुप्त होने का खतरा बढ़ रहा है।”

कार्यक्रम में चर्चित कवयित्री गीता दुबे, नीलांबुज सिंह और ज्योति रीता ने अपनी कविताओं का प्रभावशाली पाठ किया।

गीता दुबे ने ‘मुक्ति कहाँ है’, ‘जंगल’, ‘एक सवाल राम से’ जैसी कविताओं से मानव संवेदना और स्त्री-स्वर को सामने रखा।

नीलांबुज सिंह ने ‘मेरे मरहूम दोस्त’, ‘साँवली लड़कियाँ’, ‘सिपाही के नाम संदेश’ जैसी कविताओं से मानवीय करुणा और सामाजिक विडंबनाओं को स्वर दिया।

युवा कवयित्री ज्योति रीता ने ‘कोलकाता’, ‘दुनिया की सबसे सुंदर स्त्री कौन है’, ‘हम ग़ज़ा के लोग’ जैसी कविताओं से समकालीन समाज के दर्द और प्रतिरोध को मुखर किया।

संवाद सत्र के दौरान सुरेश शॉ, मनीषा गुप्ता, शिव प्रकाश दास, श्रद्धा उपाध्याय और आकाश गुप्ता ने कवियों से सवाल किए, जिससे कार्यक्रम जीवंत संवाद में बदल गया।

समीक्षा सत्र में मंजु श्रीवास्तव ने कहा कि “जाति, धर्म और लिंग आधारित हिंसा के इस दौर में कविता हमारी सबसे सशक्त सारथी है। गीता दुबे, नीलांबुज और ज्योति रीता की कविताओं में समाज की बेचैनी और मानवीय विवेक की आवाज़ सुनाई देती है।”

कवि परिचय सत्र में सुशील कुमार पांडेय, तृषानिता बानिक और राज घोष ने अपनी कविताओं से दर्शकों को भावविभोर किया।

कार्यक्रम में सेराज ख़ान बातिश, पद्माकर व्यास, इतु सिंह, अमरजीत पंडित, संजय राय, कलावती कुमारी, विकास साव, संजय दास, रीता चौधरी, दीक्षा गुप्ता, एन. चंद्रा राव, नमिता जैन, शिवानी मिश्रा, मधु सिंह, इबरार खान, नवोनीता दास, लिली साह, रमाशंकर सिंह, सिपाली गुप्ता, सुषमा कुमारी, कंचन भगत, चंदन भगत, सीता चौधरी सहित बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी उपस्थित रहे।

धन्यवाद ज्ञापन मिशन के संरक्षक रामनिवास द्विवेदी ने किया।

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