CJI गवई: मेरे समुदाय ने भी आलोचना की, लेकिन निर्णय कानून और अंतरात्मा से लिया

सीजेआई गवई ने पणजी में कहा कि अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण और क्रीमी लेयर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर उन्हें अपने समुदाय से भी आलोचना झेलनी पड़ी। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके फैसले जनता की मांग पर नहीं, बल्कि संविधान और अंतरात्मा की आवाज़ पर आधारित थे।

Aug 24, 2025 - 15:17
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CJI गवई: मेरे समुदाय ने भी आलोचना की, लेकिन निर्णय कानून और अंतरात्मा से लिया
सीजेआई बीआर गवई

पणजी। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. गवई ने कहा कि अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण (Sub-Classification) और क्रीमी लेयरपर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को लेकर उन्हें न सिर्फ समाज के अन्य वर्गों, बल्कि अपने समुदाय से भी आलोचना का सामना करना पड़ा।

गोवा हाई कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में बोलते हुए सीजेआई ने कहा, “मेरे फैसले की आलोचना मेरे ही समुदाय ने की। लेकिन मुझे यह निर्णय जनता की इच्छाओं के आधार पर नहीं, बल्कि कानून और अपनी अंतरात्मा की आवाज़ के अनुसार लिखना पड़ा।

 आरक्षण में उप-वर्गीकरण पर टिप्पणी

अगस्त 2024 में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से ऐतिहासिक फैसला सुनाया था कि अनुसूचित जातियां सामाजिक रूप से समरूप वर्ग (Socially Homogeneous Class) नहीं हैं। इसलिए राज्य सरकारें उनमें से कम सुविधा प्राप्त वर्गों को लाभ देने के लिए उप-वर्गीकरण कर सकती हैं।

सीजेआई गवई ने कहा कि यह सोचना गलत होगा कि एक ही परिवार की कई पीढ़ियाँ सर्वोत्तम शिक्षा और नौकरियों का लाभ लें, जबकि गाँवों में रहने वाले राजमिस्त्री या खेतिहर मज़दूर के बच्चों को समान अवसर न मिले। उन्होंने स्पष्ट कहा, “संविधान का अनुच्छेद 14 समानता की गारंटी देता है, लेकिन यह समान और असमान को एक ही दर्जे पर रखने की बात नहीं करता।

क्रीमी लेयर पर विचार

सीजेआई ने कहा कि अगर दिल्ली-मुंबई के प्रतिष्ठित स्कूलों में पढ़े अफसरों के बच्चों और ग्राम पंचायत स्कूल में पढ़े गरीब परिवार के बच्चों को एक ही श्रेणी में रख दिया जाए, तो यह समानता की मूल अवधारणा पर प्रहार होगा।

विध्वंस और शक्तियों के पृथक्करण पर टिप्पणी

नागरिकों की संपत्तियों को बिना उचित प्रक्रिया के ध्वस्त करने पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का उल्लेख करते हुए सीजेआई ने कहा, “अगर कार्यपालिका ही न्यायाधीश बन जाए, तो यह शक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा पर प्रहार होगा। हमारा संविधान कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।उन्होंने कहा कि पिछले 22-23 वर्षों की न्यायिक यात्रा में उन्हें इस बात की संतुष्टि है कि उन्होंने संविधान की मूल भावना  सामाजिक और आर्थिक न्याय को आगे बढ़ाने में योगदान दिया।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I