UP सूचना आयोग में ऑनलाइन सुनवाई से इनकार, सुरक्षा की माँग और अपीलों का विलय, RTI अधिकार पर गंभीर सवाल

रवि शंकर द्वारा भेजे ईमेल में कई संवैधानिक और प्रक्रियागत उल्लंघन उजागर हुए। विशेषज्ञों का कहना यह प्रवृत्ति RTI की मूल भावना को कमजोर करती है। पढ़ें विस्तृत विश्लेषण।

Nov 19, 2025 - 09:40
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UP सूचना आयोग में ऑनलाइन सुनवाई से इनकार, सुरक्षा की माँग और अपीलों का विलय, RTI अधिकार पर गंभीर सवाल
उत्तर प्रदेश राज्य मुख्य सूचना आयुक्त राजकुमार विश्वकर्मा

लखनऊ, 21 अक्तूबर 2025। तीन लंबित अपीलों में अपीलकर्ता रवि शंकर ने राज्य मुख्य सूचना आयुक्त को भेजे ईमेल में कई गंभीर मुद्दे उठाए, अपीलों को जबरन एक आदेश में जोड़ने से लेकर सुरक्षा चिंताओं, सुनवाई में शामिल न करने, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना की आशंका और रिकॉर्ड छुपाए जाने तक। आयोग द्वारा दोबारा ऑफलाइन उपस्थिति का निर्देश जारी करने पर नागरिक अधिकार समूहों का कहना है कि RTI प्रक्रिया का यह ‘व्यक्तिगत उपस्थिति’ मॉडल कानून की आत्मा के विपरीत है। उत्तर प्रदेश सूचना आयोग में तीन लंबित अपीलों के संदर्भ में अपीलकर्ता रवि शंकर द्वारा भेजा गया विस्तृत ईमेल सूचना के अधिकार और सूचना आयोग की कार्यशैली पर गंभीर प्रश्न उठाता है।

अपीलें इस प्रकार हैं-

 S-01/A/0141/2024

 S-01/A/0249/2024

 S-01/A/0059/2024

1.   अपीलों का एक ही आदेश में समायोजन: प्रक्रियागत पारदर्शिता पर प्रश्न

अपीलकर्ता का आरोप है कि तीनों अपीलें, जो अलग-अलग पृष्ठभूमि और विषयों से संबंधित हैं उन्हें आयोग ने एक ही अंतरिम आदेश में समाहित कर दिया।

यह कदम कई सवाल उठाता है-

 क्या बिना सहमति के अलग-अलग अपीलों को club करना प्रक्रियागत रूप से उचित है?

 क्या इससे प्रत्येक अपील की विशिष्टता और तर्कशीलता प्रभावित नहीं होती?

 क्या यह प्रशासनिक सुविधा का दुरुपयोग है?

नागरिक अधिकार विशेषज्ञ मानते हैं कि हर अपील की व्यक्तिगत सुनवाई और स्वतंत्र आदेश RTI का मूल सिद्धांत है।

 2. ऑनलाइन सुनवाई से इनकार, क्या यह सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के विरुद्ध?

ईमेल में अपीलकर्ता ने दो महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट मामलों का उल्लेख किया-

1. Kishan Chand Bain vs Union of India (2023)

2. Manoj Singh Vegi vs Rajkumar Vishwakarma (2025)

इन मामलों के संदर्भ में उन्होंने आरोप लगाया कि-

 आयोग ज़बरदस्ती ऑफलाइन उपस्थिति थोप रहा है,

 ऑनलाइन/वर्चुअल सुनवाई को अस्वीकार किया जा रहा है,

 अनुपस्थिति पर अपील निस्तारित करने की चेतावनी दी जा रही है।

यह RTI की मूल भावना — accessibility, convenience, transparency — के विरुद्ध है।

विशेषज्ञ कहते हैं, “RTI प्रक्रिया को डिजिटल माध्यम से रोकना, व्यक्तिगत उपस्थिति थोपना और अनुपस्थिति को आधार बनाना संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 की भावना के विपरीत है।”

3. सुरक्षा-चिंता: 'जूता कांड' का संदर्भ और व्यक्तिगत सुरक्षा की माँग

ईमेल में बताया गया कि अप्रैल 2025 में आयोग परिसर में हुए कथित ‘जूता कांड’ में एक अधिवक्ता के साथ दुर्व्यवहार/मारपीट और झूठी FIR हुई, इस घटना के कारण अपीलकर्ता स्वयं आयोग में उपस्थित होने से कानूनी रूप से असमर्थ हैं, उन्होंने आयोग परिसर में आने से लेकर बाहर निकलने तक लगातार ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग और उसकी प्रतिलिपि की माँग की है। यह सुरक्षा-चिंताओं की गहराई को उजागर करता है और यह प्रश्न खड़ा करता है-

क्या सूचना आयोग जैसा संवैधानिक निकाय अपने परिसर में सुरक्षा और नागरिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित कर रहा है?

 4. आयोगीय प्रक्रिया पर गंभीर आरोप: ‘ऑनलाइन सुनवाई में न जोड़कर अनुपस्थित दिखाना’

अपीलकर्ता का आरोप है कि उन्हें ‘ऑनलाइन लिंक’ न प्रदान कर अनुपस्थित दर्शाया गया, इसके विपरीत PIO/तहसीलदार पक्ष को 6–7 बार अवसर मिलता रहा, उनके लिखित अभिकथन आदेशों में शामिल नहीं किए गए, उपलब्ध कराए गए दस्तावेजों की प्रतियां भी नहीं भेजी गईं। ये आरोप प्रक्रिया में संभावित असमानता और पारदर्शिता की कमी की ओर संकेत करते हैं। यदि सही हों, तो यह RTI की मूल आत्मा पर गंभीर चोट है।

 5. जवाबदेही बनाम विलंब RTI में उभरती खतरनाक प्रवृत्ति

इस मामले से तीन चिंताजनक प्रवृत्तियाँ सामने आती हैं-

  जवाबदेही से सतत बचने की प्रवृत्ति

PIO repeatedly gets adjournments कोई दंड नहीं कोई जवाबदेही नहीं।

  अपीलकर्ता को ‘अनुपस्थित’ बताकर निस्तारण की धमकी

यह RTI की accessibility को सीमित करता है।

  लंबितता एक सामान्य स्थिति बन चुकी है

2024 की अपीलें 2025 के अंत तक भी अनिर्णीत रहना प्रणालीगत विफलता है।

संवैधानिक प्रश्न

यह पूरा प्रकरण RTI कानून के संवैधानिक आधारों को चुनौती देता है-

अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार

क्या दोनों पक्षों को समान अवसर दिया गया?

अनुच्छेद 21 गरिमा और सुरक्षा का अधिकार

कानून के प्रयोग में भय या असुरक्षा क्यों?

अनुच्छेद 19(1)(a) सूचना का अधिकार

क्या संस्थागत देरी इस अधिकार को निरस्त कर रही है?

अपीलकर्ता द्वारा उठाए गए मुद्दे-

 अपीलों का एकीकृत आदेश,

 ऑफलाइन उपस्थिति का दबाव,

 ऑनलाइन सुनवाई से वंचित करना,

 सुरक्षा की अनदेखी,

 संस्थागत असंवेदनशीलता,

 जवाबदेही से बचना,

 ये सब RTI की आत्मा को चुनौती देने वाले प्रश्न हैं।

RTI कानून जनता की शक्ति है, पर जब प्रक्रिया ही नागरिक को खिलाफ हो जाए, तब यह लोकतंत्र के मूल ढांचे पर प्रश्न उठा देती है।

 

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I