प्रयागराज का राक्षस: राजा कोलेंदर की भयावह कहानी | Crime Katha | Jago TV
लाल डायरी, 14 खोपड़ियाँ और एक सनकी किसान जिसने इंसानों को गायब कर दिया। पढ़िए प्रयागराज के दुर्दांत सीरियल किलर राम निरंजन कोल उर्फ़ राजा कोलेंदर की सच्ची, रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानी।
प्रयागराज के नैनी के शंकरगढ़ स्थित हिनौता गाँव में एक ऐसा दरिंदा जन्मा जिसने अपने भीतर की दरिंदगी को अंधविश्वास, ताकत और सनक का जामा पहनाया। राम निरंजन कोल उर्फ़ राजा कोलेंदर, जिसने एक के बाद एक दर्जनों लोगों को मौत के घाट उतारा, उनकी खोपड़ियाँ अपने घर में सजा लीं, और अपने अपराधों की गिनती एक लाल डायरी में रखी।
वो आदमी जो खुद को ‘राजा’ कहता था, अपने बेटों के नाम ‘अदालत’ और ‘जमानत’ रख रखा था, जैसे जीवन और न्याय को अपने हाथ में ले चुका हो। पर 25 साल बाद वही ‘राजा’ आज उम्रकैद की सज़ा काट रहा है और उसकी डायरी आज भी अपराध इतिहास की सबसे डरावनी किताब मानी जाती है।
अंधेरे का ‘राजा’
साल था 1990 का दशक। प्रयागराज के आस-पास के गाँवों में एक नाम धीरे-धीरे लोगों के जेहन में खौफ बनकर उभर रहा था राम निरंजन कोल, जो खुद को ‘राजा कोलेंदर’ कहलवाता था। वह कहता था, “मैं राजा हूँ… मेरा कानून मेरे हाथ में है।”
उसका चेहरा साधारण किसान जैसा था, पर उसकी आंखों में एक ठंडी चमक थी, जैसे कोई शिकारी अपने शिकार की नब्ज़ पढ़ता हो। कोल का दिमाग अजीब किस्म की सनक से भरा था। वह दूसरों की कारें और ट्रक चलाने वालों से दोस्ती करता, फिर किसी सुनसान जगह पर ले जाकर उनकी हत्या कर देता। कभी सिर काट देता, कभी शरीर को सूअरों के आगे फेंक देता। उसकी ‘डायरी’ में पुलिस को ऐसे दर्जनों नाम मिले, जिनके आगे लाल स्याही से लिखा था, ‘काम ख़त्म’।
लाल डायरी और खोपड़ियों का खेत
2000 में जब एक पत्रकार राजेंद्र सिंह की हत्या हुई, तब पुलिस तफ्तीश में राम निरंजन कोल उर्फ़ राजा कोलेंदर की दरिंदगी से पर्दा उठना शुरू हुआ। वह नृशंस हत्याएँ पिछले एक दशक से करता आ रहा था। अदालत में दाखिल पत्रावली के अनुसार रायबरेली के रहने वाले मनोज सिंह (22) और उनकी गाड़ी के चालक रवि श्रीवास्तव की साल 2000 में ही इसने अपहरण के बाद नृशंस हत्या कर इनके टाटा सूमो का नंबर प्लेट और रंग बदलवाकर उसी से चलता था।
प्रयागराज के पत्रकार राजेंद्र सिंह की हत्या की तफ्तीश में पुलिस को तब जो मिला, उसने पूरे देश को हिला दिया। राजा कोलेंदर के फार्म हाउस/सूअर बाड़े से 14 मानव खोपड़ियाँ बरामद हुईं। एक लाल डायरी जिसमें नाम, तारीखें और संख्याएँ दर्ज थीं, जैसे वह अपने अपराधों की बहीखाता लिख रहा हो। कहा जाता है कि वह हर नई हत्या के बाद अपने फार्महाउस में खोपड़ियों को उबालकर ‘शक्ति’ के लिए उसका सूप पीता था। वह इसे शक्ति का प्रतीक मानता था।
अपराध और अदालत का खेल
पुलिस ने राम निरंजन कोल के खिलाफ दो दर्जन से ज़्यादा मुकदमे दर्ज किए। हर मुकदमे में उसकी वही सनकी हँसी, वही सफाई “मैंने गलत कुछ नहीं किया, बस कचरा साफ़ किया है।” पर अदालतों ने धीरे-धीरे उसकी ‘सफाई’ को झूठ और खून में लथपथ पाया। 2000 के मनोज कुमार सिंह और रवि श्रीवास्तव हत्याकांड में, 25 साल बाद अदालत ने उसे उम्रकैद की सज़ा सुनाई। और अदालत ने कहा, “यह हत्या नहीं, एक योजनाबद्ध राक्षसी खेल था।”
राजा का दिमाग, अपराधी या रोगी?
मनोवैज्ञानिकों ने उसे ‘नार्सिसिस्टिक और सैडिस्टिक पर्सनालिटी’ बताया, एक ऐसा व्यक्ति जो दूसरों की पीड़ा में शक्ति महसूस करता था। वह अपनी पहचान से ग्रस्त था। अपने बेटों के नाम ‘अदालत’ और ‘जमानत’ रखकर उसने मानो कानून का उपहास कर दिया था। पड़ोसी कहते थे, “वो हँसते-हँसते कहता था, ‘मेरे सूअर इंसान पहचानते नहीं।’”
राजा कोलेंदर की विरासत, खून में लिखा अध्याय
2025 में जब अदालत ने उम्रकैद सुनाई, कई पत्रकारों ने कहा “यह फैसला नहीं, इतिहास का तर्पण है।”
राम निरंजन कोल आज जेल की सलाखों के पीछे है, पर उसकी कहानी यह याद दिलाती है कि अपराध सिर्फ बंदूक या चाकू से नहीं होता, कभी-कभी वह पागलपन और सत्ता के भ्रम में जन्म लेता है। राजा कोलेंदर उसी पागलपन का प्रतीक है, जहाँ इंसान अपने भीतर के राक्षस को भगवान समझ बैठता है।
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