“विजन-2047 की बात छोड़िए, स्कूलों के लिए कल का भी प्लान नहीं”: राजस्थान हाई-कोर्ट
राजस्थान हाई-कोर्ट ने कहा, “विजन-2047 छोड़िए, सरकार के पास स्कूलों के लिए कल का भी प्लान नहीं है।” मामले की पृष्ठभूमि झालावाड़ स्कूल हादसा है। कोर्ट ने शिक्षा सचिव से रोडमैप व विस्तृत बजट-ब्रेकअप 24 नवंबर 2025 तक माँगा; अदालत ने असुरक्षित कक्षाओं के उपयोग पर भी रोक एवं पारदर्शी क्रियान्वयन की माँग दोहराई।
राजस्थान हाई-कोर्ट (डिवीज़न बेंच जस्टिस महेन्द्र कुमार गोयल व जस्टिस अशोक कुमार जैन) ने सरकारी स्कूलों की जर्जर-इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी व्यवस्थाओं पर सरकार की तैयारी को अधूरा करार देते हुए कहा कि “विजन-2047 की बातें करने का अर्थ तब क्या जब कल के लिए योजनाएँ मौजूद न हों।” कोर्ट ने शिक्षा सचिव के शपथ-पत्र के साथ रोडमैप और अलग-अलग मदों के तहत बजट-विवरण 24 नवंबर 2025 तक पेश करने को कहा। यह सुनवाई झालावाड़ (पिप्लोदी) स्कूल की छत गिरने वाली घटना के बाद हुई चिंता के सिलसिले में है।
सुनवाई-परिप्रेक्ष्य और आदेश
हाई-कोर्ट ने अपने ताजा निर्देशों में सरकार से कहा कि वह जो ‘रोडमैप’ कोर्ट के समक्ष रख रही है, वह धरातल पर लागू-योग्य, प्राथमिकताओं से लैस और खर्च-वर्गों के अनुसार विभाजित होना चाहिए, न कि कागजी नक़्शे के समान। अदालत ने सरकार को निर्देश दिए कि शिक्षा सचिव शपथ पत्र के साथ यह रोडमैप पुनः पेश करें और बतायें- कहाँ किस स्कूल की मरम्मत होगी, किस तरह और कितने पैसों से। कोर्ट ने इस रोडमैप के साथ विस्तृत बजट-ब्रेकअप 24 नवंबर 2025 तक माँगा।
पृष्ठभूमि – झालावाड़ (पिप्लोदी) हादसा और उसका प्रभाव
यह मामला जुलाई 2025 में झालावाड़ (पिप्लोदी) में हुई स्कूल-छत गिरने-घटना से जुड़ा है, जिसमें सात बच्चों की मौत और अनेक घायल हुए थे। उस हादसे ने राज्य के जर्जर विद्यालय इन्फ्रास्ट्रक्चर पर व्यापक चिंता पैदा कर दी थी और हाई-कोर्ट ने उसी आधार पर suo-motu सुनवाई शुरू की। इस पृष्ठभूमि में अदालत की सख्त टिप्पणियाँ और तेज निर्देश समझे जाने चाहिए।
असुरक्षित कक्षाओं की पहचान और उपयोग पर रोक
पहले के भी आदेशों में हाई-कोर्ट ने सरकारी सर्वेक्षण के नतीजों के हवाले से 86,000 से अधिक असुरक्षित कक्षाओं के बारे में चिंता जताई और कई मामलों में उनके उपयोग पर रोक तथा वैकल्पिक व्यवस्था करने के निर्देश दिए थे। इस निर्देश का उद्देश्य बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चत करना रहा। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि ऐसे कक्षों में बच्चों को नहीं बैठाया जाएगा जब तक वे ठीक प्रकार से सुरक्षित न कर दिये जाएँ।
मार्गदर्शक मानक और कानूनी संदर्भ
हाई-कोर्ट ने राष्ट्रीय दिशानिर्देशों और सुप्रीम-कोर्ट की प्रासंगिक व्याख्याओं का हवाला देते हुए कहा कि स्कूल-इन्फ्रा को डिजास्टर-रेडी एवं NDMG/NCPCR जैसे मानकों के अनुरूप बनाया/मरम्मत किया जाना चाहिए। अदालत ने वैधानिक और तकनीकी मानकों के अनुपालन पर भी जोर दिया।
सरकार का प्रस्तावित प्लान और आलोचना
राज्य सरकार ने उच्च स्तरीय योजना/पैकेज (कई स्टेट-रिपोर्टों के हवाले से लगभग ₹1,600–1,624 करोड़ के पैमाने पर) और प्राथमिक मरम्मत/नए निर्माण के खाके कोर्ट को पेश किए हैं; पर कोर्ट ने इन्हें ‘कागजी’ और अपर्याप्त करार दिया, विशेषतः जब प्राथमिकता-सूची, फंड-वर्गीकरण और क्रियान्वयन-समयरेखा स्पष्ट न हो। उच्चतम अदालत यह चाहती है कि बजट-वितरण पारदर्शी और स्कूल-वार प्राथमिकता के आधार पर हो।
संभावित क्रियान्वयन-चालानियाँ और अगले कदम
कोर्ट ने शिक्षा सचिव के शपथपत्र-सहित रोडमैप पुनर्पेश करने का निर्देश दिया, इसमें स्कूल-वार प्राथमिकता सूची, अनुमानित लागत (निर्माण / मेजर रिपेयर / सामान्य मरम्मत), और क्रियान्वयन-समयसीमा स्पष्ट होनी चाहिए। यदि राज्य द्वारा प्रस्तुत जानकारी अपर्याप्त पाई गई, तो अदालत स्वतंत्र निगरानी तथा नियमित प्रगति रिपोर्ट माँग सकती है, जैसा कि इस मामले में पहले भी अमिकस/विशेष सलाहकार नियुक्त करने का रुख रहा है।
क्या चुनौती है और क्यों जरूरी है धरातलीय कार्यवाही?
1. तात्कालिक सुरक्षा: विजन-2047 जैसे लक्ष्यों का अर्थ तब तक निर्णायक नहीं रह जाता जब तक बच्चों की सैफ्टी के त्वरित उपाय लागू न हों। हाई-कोर्ट ने यही संकेत दिया।
2. बजट-पारदर्शिता आवश्यक: सरकारी योजनाएँ तभी प्रभावी होंगी जब निर्माण/मरम्मत पर अलग-अलग मदों का स्पष्ट आवंटन और समयबद्ध कार्ययोजना हो।
3. न्यायिक-निगरानी आवश्यक: जालावतार-हादसे जैसे घटनाओं के बाद न्यायालय का सक्रिय हस्तक्षेप ही जवाबदेही सुनिश्चित कर सकता है।
हाई-कोर्ट की कड़ी टिप्पणी, “विजन-2047 छोड़िए, सरकार के पास स्कूलों के लिए कल का ही प्लान नहीं है ।” केवल वक्तव्य नहीं, बल्कि राज्य सरकार के सामने सुनिश्चत, प्राथमिकता-आधारित, और पारदर्शी कार्ययोजना पेश करने का निर्णायक आग्रह है। 24 नवंबर 2025 को पेश बुलाया गया रोडमैप-बजट एक परीक्षण होगा यह दर्शाने के लिए कि क्या सरकार वाकई धरातल पर सुरक्षा-प्राथमिकताएँ तय कर रही है या नहीं।
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