भदोही जाँच में डॉक्टर दोषी, प्रयागराज में निर्दोष: आरोपों पर बड़ा उलटफेर

भदोही की शासन-स्तरीय विभागीय जाँच में डॉ. प्रदीप कुमार प्राइवेट प्रैक्टिस के आरोप में दोषी कर दण्डित, जबकि प्रयागराज प्रशासन की जाँच रिपोर्ट में वही डॉक्टर निर्दोष पाए गए। मामला अब विवादों के केंद्र में।

Nov 29, 2025 - 06:15
Nov 29, 2025 - 07:52
 0
भदोही जाँच में डॉक्टर दोषी, प्रयागराज में निर्दोष: आरोपों पर बड़ा उलटफेर

भदोही शासन-स्तरीय विभागीय जाँच में डॉ. ‘दोषी सिद्ध’ और राज्यपाल द्वारा दंडित दूसरी ओर प्रयागराज प्रशासन की जाँच में डॉक्टर ‘निर्दोष’ आरोपों पर बड़ा उलटफेर

भदोही शासन-स्तरीय विभागीय जाँच में जहाँ डॉ. प्रदीप कुमार पर अवैध प्राइवेट प्रैक्टिस के आरोप ‘सिद्ध’ माने गए, वहीँ प्रयागराज जिला प्रशासन की जाँच ने इस पूरे मामले को एक बिल्कुल भिन्न दिशा दे दी है। स्थानीय प्रशासन की संयुक्त टीम की जाँच रिपोर्टों के अनुसार, डॉक्टर के खिलाफ लगाए गए आरोप स्थानीय स्तर पर प्रमाणित नहीं पाए गए। इतना ही नहीं, अस्पताल संचालक और स्टाफ के लिखित बयान सहित शपथ पत्र शासन-स्तरीय आरोपों के बिलकुल विपरीत तस्वीर पेश करते हैं। यह विपरीत जाँच परिदृश्य पूरे प्रकरण को और जटिल बनाता है, और यह सवाल उठाता है कि दो जाँचों में इतने बुनियादी अंतर कैसे संभव हैं?

कैसे हुई प्रयागराज प्रशासन की जाँच?

जिलाधिकारी प्रयागराज द्वारा अपने पत्रांक 867(1)/ST-2024 के तहत यह मामला

उप जिलाधिकारी हंडिया और अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी प्रयागराज को संयुक्त जाँच हेतु सौंपा गया।

दिनांक 14.11.2024 को टीम ने बरौत स्थित छोटेलाल हॉस्पिटल का औचक निरीक्षण किया।

निरीक्षण से पूर्व शिकायतकर्ता जयचन्द्र मौर्या से भी मोबाइल पर वार्ता की गई, ताकि उनके आरोपों के आधार और संदर्भ को समझा जा सके।

निरीक्षण के दौरान क्या पाया गया?

1. डॉ. प्रदीप यादव अस्पताल में मौजूद नहीं पाए गए निरीक्षण टीम के पहुँचने पर अस्पताल में न कोई प्राइवेट प्रैक्टिस चलती मिली, न ही किसी प्रकार का डॉक्टर का चेंबर जो डॉ. प्रदीप से संबद्ध हो। टीम की रिपोर्ट के अनुसार: किसी भी रूप में प्राइवेट प्रैक्टिस का प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिला।”

अस्पताल संचालक का शपथ पत्र, सबसे बड़ा मोड़

छोटेलाल हॉस्पिटल के संचालक डॉ. महेन्द्र कुमार ने न्यायिक शपथ पत्र (Notary Affidavit) देकर स्पष्ट रूप से कहा:

1. मेरे अस्पताल में डॉ. पी.के. यादव (डॉ. प्रदीप कुमार) ने कभी चिकित्सीय कार्य नहीं किया है।”

2. उनका अस्पताल से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है।”

3. मेरे तथा मेरे स्टाफ द्वारा दिए गए सभी बयान तथ्यात्मक, सत्य एवं मेरे पूर्ण ज्ञान में हैं।” यह बयान शासन-स्तरीय जाँच द्वारा उल्लेखित ‘वीडियो साक्ष्यों’ की प्रामाणिकता पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है।

पैरामेडिकल स्टाफ के बयान एकसमान और लिखित

(1) सुरेन्द्र कुमार 2012 से यहाँ कार्यरत डॉ. पी. के. यादव कभी भी अस्पताल में चिकित्सकीय कार्य हेतु नहीं आए।”

(2) यशवंत कुमार बिन्द, 2021 से कार्यरत फार्मासिस्ट मैंने उन्हें कभी अस्पताल में कार्य करते नहीं देखा।”

 (3) डॉ. गुलाम मुस्तफ़ा, 3 वर्षों से यहाँ चिकित्सक - डॉ. प्रदीप यादव कभी भी इस अस्पताल में काम करने नहीं आए। मुझे यह जानकारी पूर्ण होश-हवास में देते हुए कोई संदेह नहीं है।” तीनों के बयान स्वतंत्र हैं, लेकिन बिलकुल एक दिशा में संगत, जो एक मजबूत प्रशासनिक संरक्षण का आधार बनाते हैं।

शिकायतकर्ता की पत्नी के इलाज का पूरा रिकॉर्ड,  एक महत्वपूर्ण तथ्य

जाँच में यह भी सामने आया कि शिकायतकर्ता सरिता मौर्या का इलाज डॉ. प्रदीप द्वारा नहीं, स्वयं अस्पताल संचालक डॉ. महेंद्र कुमार ने किया था। इसका BHT (Bed Head Ticket) भी संलग्न किया गया, जिसमें: दवा, उपचार, चिकित्सक का नाम स्पष्ट रूप से दर्ज है। यह तथ्य भी शासन की यह मान्यता कमजोर करता है कि ‘वीडियो साक्ष्य’ में दिखाया गया इलाज डॉ. प्रदीप द्वारा किया गया था।

प्रयागराज CMO की जाँच रिपोर्ट, निष्कर्ष

संयुक्त निरीक्षण, शपथपत्रों और स्टाफ के लिखित बयानों के आधार पर

मुख्य चिकित्सा अधिकारी प्रयागराज ने अपनी रिपोर्ट में कहा:

1. ‘डॉ. प्रदीप यादव के प्राइवेट प्रैक्टिस करने का आरोप सत्य नहीं पाया गया।’

2. ‘मलेरिया टेस्ट और गलत उपचार संबंधी आरोप भी जाँच में प्रमाणित नहीं हुए।’ ऐसे में उन्होंने IGRS संदर्भों को ‘निक्षेपित किए जाने’ की संस्तुति की।

शासन की और जिला प्रशासन की जाँच, दो टकराती हुई सच्चाइयाँ

शासन की जाँच

 वीडियो व दस्तावेज़ों को मान्य

 आरोप सिद्ध

 दंड: दो वेतनवृद्धियाँ रोकी गईं + परिनिन्दा

जिला प्रशासन की जाँच

अस्पताल संचालक व स्टाफ के शपथ-पत्र कोई प्राइवेट प्रैक्टिस नहीं मिली आरोप असत्य

यह विरोधाभास बताता है कि या तो: वीडियो साक्ष्यों की सत्यता की गहराई से जाँच नहीं हुई, या स्थानीय अधिकारियों और अस्पताल प्रबंधन का बयान शासन की फ़ाइल तक ‘प्रभावी’ तरीके से नहीं पहुँचा, या जाँचों का मानदंड अलग-अलग रहा।

सवाल जो अब भी अनुत्तरित हैं

1. एक ही डॉक्टर पर दो प्रशासनिक इकाइयों की रिपोर्टें बिलकुल विपरीत क्यों?

2. वीडियो साक्ष्यों की तकनीकी फोरेंसिक जाँच क्यों नहीं कराई गई?

3. क्या अस्पताल संचालक और स्टाफ के शपथपत्रों की सत्यता की स्वतंत्र जाँच हुई?

4. शासन को भेजी गई स्थानीय जाँच आख्या को क्यों नज़रअंदाज़ किया गया?

5. क्या यह मामला विभागीय प्रणालीगत खामी या प्रक्रियागत त्रुटि का उदाहरण है?

6. क्या दोषी अधिकारी दंडित होंगे?

प्रयागराज CMO ने इन तथ्यों के आधार पर

IGRS शिकायतों को निक्षेपित (close) करने की संस्तुति की है।

  दो विपरीत जाँच रिपोर्ट, विवाद गहराया इस प्रकरण में अब दो विरोधाभासी स्थितियां सामने आई हैं:

 1. भदोही शासन स्तर जाँच:

आरोप सिद्ध

वीडियो/दस्तावेज़ मान्य

दंडित किया गया

 2. प्रयागराज शासन स्तर जाँच:

आरोप निराधार बताया गया

कोई स्वतंत्र गवाह नहीं, सभी गवाहों के लिखित बयान

कोई निजी प्रैक्टिस नहीं पाई गई

इस विरोधाभास के कारण मामला अब नीति, प्रक्रिया और पारदर्शिता पर सवाल उठाने लगा है।

‘दो जाँच, दो सच्चाइयाँ’ और एक बना हुआ विवाद

प्रयागराज प्रशासन की जाँच ने स्पष्ट रूप से डॉक्टर को ‘निर्दोष’ बताया है, वहीं शासन-स्तरीय विभागीय जाँच ने उन्हें ‘दोषी’ मानते हुए दंडित किया। यह विरोधाभास न केवल मामले को और जटिल बना देता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि राजकीय जाँच प्रक्रियाओं में समन्वय की कमी, पारदर्शिता और साक्ष्य सत्यापन की गंभीर चुनौतियाँ मौजूद हैं।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

न्यूज डेस्क जगाना हमारा लक्ष्य है, जागना आपका कर्तव्य