यूनिवर्सिटी में महिला कर्मचारियों से मासिक धर्म-सबूत माँगा गया, कपड़े उतरवाए व पैड की फोटोज खिंचवाई
रोहतक की एमडीयू में चार महिला सफाई कर्मचारीयों ने आरोप लगाया कि उन्हें मासिक धर्म को साबित करने हेतु कपड़े हटवाकर सैनिटरी पैड की फोटो खिंचवानी पड़ी। मामले की जाँच के लिए सुपरवाइजर निलंबित, कार्यस्थल-हैरसमेंट की बड़ी चेतावनी।
रोहतक-हरियाणा: विश्वविद्यालय में चार महिला सफाई कर्मचारीयों से उनके मासिक धर्म (पीरियड्स) के साबित करने के लिए कपड़े उतरवाकर सैनिटरी पैड की फोटो खिंचवाने और उसके बाद अपमानजनक व्यवहार करने का आरोप सामने आया है। कर्मचारियों द्वारा दायर शिकायत के बाद विश्वविद्यालय ने तीन आरोपी पुरुष कर्मचारी-सुपरवाइजरों को निलंबित किया है तथा जाँच प्रारंभ की है। मामला सिर्फ व्यक्तिगत उत्पीड़न तक सीमित नहीं, यह संस्थागत लिंग-भेद, काम के अधिकार, गोपनीयता के उल्लंघन तथा कार्यस्थल में मानवीय गरिमा पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
घटना-क्रम
घटनास्थल: महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक, हरियाणा।
घटना का दिनांक: 26 अक्तूबर, 2025 (रविवार) को उस दिन महिला सफाई कर्मचारी खेल परिसर की सफाई कर रही थीं।
चार महिला कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि जब उन्होंने मासिक धर्म (पीरियड्स) के कारण काम में देरी की, तो पुरुष सुपरवाइजरों ने उन्हें ‘ड्यूटी तेज़ करो’, ‘काम न करो तो हट जाओ’ की धमकी दी। और बाद में उनसे कहा गया कि यदि वाकई पीरियड्स हो रही हैं तो साबित करो, कपड़े एवं पैड दिखाओ, फोटो खिंचवाओ। शिकायत में कहा गया कि सुपरवाइजरों ने यह कार्रवाई यह कहते हुए की कि उन्हें ‘सुपरवाइजर कार्यालय’ से निर्देश मिले हैं, किंतु विश्वविद्यालय प्रशासन ने कहा है कि ऐसे किसी निर्देश का उन्हें ज्ञान नहीं है।
प्रतिक्रिया एवं कार्रवाई
विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार कृष्ण कांत ने शिकायत प्राप्त होने की पुष्टि की है और कहा है कि दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ कार्रवाई होगी। सुपरवाइजरों विनोद हुड्डा और वितेंद्र कुमार, जिन्हें ठेका-कॉन्ट्रैक्ट पर रखा गया था, को निलंबित कर जाँच समिति गठित की गई है। यूनियन व महिला कर्मी-समर्थकों ने इसे ‘गंभीर और अपमानजनक’ बताया है।
सामाजिक-कानूनी पहलू
गोपनीयता व गरिमा: महिला कर्मियों से सैनिटरी पैड दिखाने-फोटो खींचने की माँग न केवल गोपनीयता का उल्लंघन है, बल्कि कार्यस्थल में वैयक्तिक गरिमा पर हमला भी है।
लिंग-भेद और शक्ति-संबंध: मासिक धर्म जैसे सामान्य जैविक तथ्य को प्रमाण मांगने जैसा बनाया जाना लिंग-आधारित भेदभाव की तरफ इंगित करता है।
काम का अधिकार व स्वास्थ्य-विचार: मासिक धर्म की स्थिति को कर्मियों के काम में देरी का कारण मानते हुए उस पर दबाव बनाना, काम के शारीरिक एवं मानसिक प्रभावों को अनदेखा करना है।
कानूनी संरक्षण: महिला कर्मचारी (विनिर्दिष्ट श्रमिक) के लिए Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition and Redressal) Act, 2013, The Code on Wages Act, 2019 तथा अन्य श्रम-कानूनी प्रावधान काम करते हैं; इस तरह की कार्रवाई इन कानूनी दायित्वों के तहत आ सकती है।
समाज में संकेत: यह घटना मासिक धर्म पर लगे सामाजिक कलंक, कार्यस्थल में महिला-कर्मचारियों के साथ व्यवहार, और प्रबंधन-सक्रियता की कमी को उजागर करती है।
आगे क्या होना चाहिए
विश्वविद्यालय प्रशासन को निष्पक्ष, तुरंत खुले जाँच-प्रक्रिया करना चाहिए जिसमें पीड़ितों, गवाहों तथा सुपरवाइजरों के बयानों का समुचित रिकॉर्ड हो। कार्यस्थल पर मासिक धर्म-संबंधी स्वीकृति, उचित ब्रेक-समय व स्वास्थ्य-संबंधी सुविधा सुनिश्चित करनी चाहिए। श्रमिक-कॉन्ट्रैक्टर्स व प्रबंधन को मासिक धर्म-सेंसिटिव ट्रेनिंग व जागरूकता-प्रोग्राम से गुजारा जाना चाहिए। संबंधित महिला कर्मचारियों को भावनात्मक व कानूनी सहायता देना चाहिए, वर्कप्लेस-हैरसमेंट के लहजे में। सरकार व शिक्षण संस्थान को कार्यस्थल में महिलाओं की गरिमा-रक्षा हेतु विशिष्ट निर्देश जारी करने चाहिए।
रोहतक की यह घटना सिर्फ चार महिला सफाई कर्मियों के साथ हुई एक अपमानजनक व्यवहार नहीं है, बल्कि यह उस व्यापक संस्कृति का आईना है जहाँ मासिक धर्म-जैसे निजी, स्वाभाविक जैविक तत्त्व को सार्वजनिक प्रमाण-मांग तथा सामाजिक-अपमान के उपकरण में बदल दिया जाता है। कार्यस्थल-प्रबंधन, नीतिगत दिशा-निर्देश, और सामाजिक-मानसिक्ता-सुधार की जरूरत आज पहले से कहीं अधिक स्पष्ट है। यदि उचित कार्रवाई व सुधार नहीं हुआ, तो इस प्रकार की घटनाएँ महिलाओं के काम-स्थितियों, मनोबल और अधिकारों पर गहरा असर डालेंगी।
What's Your Reaction?
