मुंबई: 17 बच्चे सुरक्षित निकाले गए, आरोपी रोहित आर्य की पुलिस फायरिंग में मौत
पवई के RA स्टूडियो में ऑडिशन के बहाने बंधक बनाए गए 17 बच्चों को मुंबई पुलिस ने बाथरूम के रास्ते से बचाया। ऑपरेशन के दौरान हुई फायरिंग में आरोपी रोहित आर्य घायल हुआ; इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। जानिए पूरा घटनाक्रम, पुलिस बयान और अनसुलझे सवाल।
बंधक, रेस्क्यू, फायरिंग और मौत: पवई के आरए स्टूडियो में 17 बच्चों को बंधक बनाने वाले रोहित आर्य पुलिस की गोली में घायल, इलाज के दौरान मौत
मुम्बई के पवई स्थित आरए स्टूडियो में ऑडिशन के बहाने बुलाए गए 17 बच्चों को गुरुवार दोपहर एक शख्स, रोहित आर्य ने बंधक बना लिया। मुंबई पुलिस ने लंबी बातचीत के प्रयास के बाद बाथरूम के रास्ते से घर में दाख़िल होकर सभी बच्चों और अन्य दो बंधकों को सुरक्षित निकाला। ऑपरेशन के दौरान आरोपी पर कथित तौर पर गोली चली; उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया जहाँ इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। पुलिस के अनुसार प्राथमिक लक्ष्य बच्चों की सुरक्षा था; मामले की फोरेंसिक व आंतरिक जांच जारी है।
घटना का समय और कॉल:
पुलिस के अनुसार, अभिभावकों ने दोपहर करीब 1:45 बजे सूचना दी कि स्टूडियो में बच्चों को नहीं छोड़ा जा रहा। मौके पर पहुंचने के बाद स्थानीय थाने व स्पेशल टीम ने संपर्क और बातचीत के कई दौर किए।
बंधक-करण का तरीका:
रोहित आर्य ने बच्चों को ‘ऑडिशन’ का झांसा देकर स्टूडियो में बुलाया; वहां उसने 17 बच्चों के साथ दो अन्य वयस्कों को लगभग 30–90 मिनट तक रोका बताया जा रहा है। आरोपी ने एक वीडियो भी जारी कर धमकियाँ दीं और कहा कि वह “बात करना चाहता है” न कि कोई आर्थिक या आतंकी लक्ष्य है।
पुलिस-ऑपरेशन और बचाव:
बातचीत विफल होने पर मुंबई पुलिस ने रणनीतिक तौर पर बाथरूम के रास्ते से भीतर दाख़िल होने का विकल्प चुना और सभी बंधकों को सुरक्षित बाहर निकाला गया। इस दौरान आरोपी ने कथित रूप से एयर-गन निकाला और पुलिस पर गोली चलाई; पुलिस ने उत्तर में एक राउंड चलाया जिससे आरोपी घायल हुआ। उसे एम्बुलेंस से अस्पताल ले जाया गया।
इलाज और मौत:
एचबीटी/जे.जे. अस्पतालों के जहाज़ पर आरोपी को मृत घोषित किया गया; शव का पोस्टमार्टम जे.जे. अस्पताल में कराया जा रहा है। पुलिस ने मौके से एयर-गन व कुछ रसायन बरामद किए हैं; फोरेंसिक टीम साक्ष्यों की जांच कर रही है।
आरोपी की पृष्ठभूमि व संभावित मोटिव:
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार रोहित आर्य पुणे का रहने वाला था और वह निर्माण/ठेकेदारी से जुड़ा था; उसने कहा था कि उसे किसी सरकारी भुगतान (करीब दो करोड़ की रकम) का पैसा नहीं मिला और वह वर्षों से भुगतान के लिए जुझ रहा था। पुलिस अब इस दावे और उसके मानसिक व आर्थिक तनाव के पहलुओं की जांच कर रही है ताकि मोटिव स्पष्ट हो सके।
पुलिस का तर्क और आधिकारिक बयान
मुंबई पुलिस ने बार-बार कहा कि प्राथमिकता बच्चों की सुरक्षा थी और ऑपरेशन में ‘न्यूनतम बल’ का प्रयोग करने का उद्देश्य था। पुलिस के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने बताया कि जब आरोपी ने बच्चों को नुकसान पहुंचाने की सक्रिय धमकी दी और आग लगाने की बात कही तथा प्रत्यक्ष रूप से हथियार/एयर-गन निकाला, तब मजबूरन प्रत्युत्तर फायरिंग की गई। मामले की स्वतंत्र/आंतरिक जाँच और फॉरेंसिक रिपोर्ट सार्वजनिक की जाएगी।
मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने घटना पर अधिकारी-स्तर पर रिपोर्ट मँगाने की बात कही और कहा कि जल्द ही विस्तृत जानकारी साझा की जाएगी। उन्होंने पुलिस के बचाव प्रयासों और बच्चों की सुरक्षित निकासी की सराहना की।
महत्वपूर्ण सवाल और जाँच-एंगल्स
ऑडिशन का सत्यापन: स्टूडियो का रजिस्ट्रेशन, पिछले ऑडिशन-रिकॉर्ड और उस व्यक्ति की स्टूडियो में कार्य-नियत, क्या यह वैध रूप से संचालित था? अभिभावकों को कैसे और किन माध्यमों से बुलाया गया था? इन सवालों पर पुख्ता दस्तावेज़ माँगे जाने चाहिए।
मोटिव व मानसिक स्थिति: आरोपी के दिए गए वीडियो संदेश, पुरानी आर्थिक शिकायतें और पिछले प्रदर्शन/शिकायतें जांच का हिस्सा हों, क्या यह एक व्यक्तिगत बदनामी का प्रदर्शन था या मानसिक अस्थिरता ने हिंसा को जन्म दिया? विशेषज्ञ (मनोवैज्ञानिक) की रिपोर्ट आवश्यक है।
पुलिस फायरिंग की पारदर्शिता: पुलिस ने जवाबी कार्रवाई कब और किस हथियार से की, कौन-सा शॉट आरोपी को घायल करने वाला था? CCTV, बॉडी-कैम व अन्य ऑडियो-वीडियो रिकॉर्ड सार्वजनिक कर के पारदर्शिता आवश्यक है; यदि बल प्रयोग की समीक्षा होगी तो भविष्य में समतुल्य घटनाओं के लिए प्रोटोकॉल बेहतर होंगे।
बच्चों की दीर्घकालिक देखभाल: तत्काल चिकित्सा के बाद बच्चों के लिए मनोवैज्ञानिक फॉलो-अप, स्कूल-समन्वय और नागरिक सुरक्षा चेतावनी-चेकलिस्ट जारी करना ज़रूरी है। मीडिया को बच्चों की पहचान-सुरक्षा का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
आँखों-देखी
पुलिस सूत्र: “हमारा प्राथमिक लक्ष्य बच्चों की सुरक्षा थी; जब आरोपी ने हथियार निकाला और ख़तरा स्पष्ट हुआ, तब एक सीमित प्रत्युत्तर ज़रूरी हुआ।”
स्थानीय अभिभावक: “हमें सांत्वना है कि बच्चों को कोई चोट नहीं आई, पर डर अब भी गहरा है; हम ऐसी घटनाओं के लिए अज्ञात स्रोतों से बुलावे पर शंका करेंगे।”
पवई का यह केस दो स्तरों पर चिंताजनक है, एक, बच्चों को ऑडिशन के बहाने निशाना बनाना और दो, बचाव-ऑपरेशन में आरोपी की जवाबी गोलीबारी के बाद उसकी मौत ने कई नैतिक एवं जूरीडिकल प्रश्न खड़े कर दिए हैं। बच्चों के सुरक्षित बचाव को सही ठहराया जा सकता है; पर पुलिस फायरिंग और आरोपी के अंत की परिस्थितियों की पारदर्शी जांच अनिवार्य है, ताकि पीड़ित परिवारों को न्याय और शहर को भविष्य में बेहतर सुरक्षा-प्रोटोकॉल मिल सके।
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