2 लाख की डील! लखनऊ के पेपर मिल चौकी के अंदर घूस लेते पकड़ा गया दरोगा

लखनऊ पेपरमिल कॉलोनी चौकी प्रभारी धनंजय सिंह को एंटी-करप्शन टीम ने ₹2,00,000 घूस लेते पकड़ा। आरोप है कि पैसे की डील एक गैंगरेप मामले से नाम हटाने के लिए हुई थी। आजाद अधिकार सेना के कार्यकर्ताओं ने शिकायत कर ट्रैप लगवाने में मदद की, मामले की पड़ताल विभागीय प्रतिक्रिया और आगे की जाँच जारी है।

Oct 31, 2025 - 13:35
Oct 31, 2025 - 15:40
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2 लाख की डील! लखनऊ के पेपर मिल चौकी के अंदर घूस लेते पकड़ा गया दरोगा
पेपरमिल कॉलोनी का भ्रष्ट चौकी प्रभारी धनंजय सिंह

लखनऊ की पेपरमिल चौकी में दो लाख की रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़े गए दरोगा धनंजय सिंह का मामला, यूपी पुलिस के भीतर भ्रष्टाचार की गंभीर बानगी है। एंटी करप्शन ब्यूरो की कार्रवाई में सामने आया कि गैंगरेप के झूठे मुकदमे से नाम निकालने के एवज में दरोगा ने बड़ी रकम की डील की थी।

क्या हुआ (खास बातें)

बुधवार शाम एंटी-करप्शन टीम (ACO) ने लखनऊ के महानगर थाने की पेपरमिल कॉलोनी चौकी पर तैनात उप निरीक्षक धनंजय सिंह को ₹2,00,000 रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार किया। कार्रवाई एक लिखित शिकायत के आधार पर की गई और जाल बिछाकर ट्रैप लगाया गया था। आरोप है कि दारोगा ने एक गंभीर मुकदमे सामूहिक दुष्कर्म (मुकदमा संख्या 242/25) से आरोपी का नाम हटाने के एवज में यह रकम माँगी थी; प्रारंभिक खबरों में कहा गया कि शुरुआत में माँग ₹50 लाख तक बताई गई थी और बाद में सौदा ₹2 लाख पर तय हुआ।

घटनाक्रम

शिकायत व सूचना: पीड़ित पक्ष समूह ने 24 अक्तूबर को लिखित शिकायत दर्ज कराई और एंटी-करप्शन ऑर्गनाइज़ेशन/ब्यूरो को जानकारी दी।

जाल व गिरफ्तारी: टीम ने शाम के समय चौकी के निकट जाल बिछाया, चिह्नित करंसी के द्वारा दारोगा को 2 लाख रुपए लेते हुए दबोचा गया। गिरफ्तार आरोपी के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा के तहत मामला दर्ज किया गया।

प्राथमिक प्रशासनिक कदम: घटना के पता चलते ही जिलाधिकारी, पुलिस कमिश्नर व उपायुक्त (उत्तर) को सूचित किया गया; आरोपी को फिलहाल लाइन-अटैच/निलंबन/विभागीय जाँच के लिए भेजने की प्रक्रियाएँ आरंभ की गईं।

आजाद अधिकार सेना का मामला में क्या भूमिका रही?

स्थानीय कवरेज के अनुसार, आजाद अधिकार सेना (AAS) के कुछ कार्यकर्ताओं ने पीड़ित पक्ष का मार्ग-निर्देशन किया, शिकायत दर्ज कराने में मदद की और एंटी-करप्शन टीम को सूचना देकर ट्रैप लगाने में मध्यस्थता की कोशिश की गई। यह जानकारी पीड़ित-समर्थक दावों और कुछ मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है।

पीड़ित-पक्ष और अभियुक्त के दावे

कुछ रिपोर्टों में पीड़ित-पक्ष का दावा है कि शुरू में दारोगा ने ₹50 लाख तक की रकम की माँग की थी, जिससे पीड़ित दबाव में आकर एंटी-करप्शन से संपर्क करने पर मजबूर हुआ। आरोपी दारोगा के पक्ष में अभी सार्वजनिक बयान कम हैं; गिरफ्तारी के बाद विभागीय और कानूनी प्रक्रियाएँ जारी हैं, जो आगे स्पष्ट करेंगी कि धन किस उद्देश्य के लिए माँगा गया था और क्या कोई अन्य पुलिसकर्मी संलिप्त थे।

प्रशासनिक और कानूनी कार्रवाई

आरोपी पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है और औपचारिक FIR भी थाने में दर्ज हुई है। उच्च अधिकारियों को सूचना दे दी गई है और आगे की जाँच में अन्य संलिप्तता का पता लगाने का दावा किया जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एंटी-करप्शन ने जप्त पैसे व चिह्नित नोटों को सबूत के रूप में रखा है; आगे फॉरेंसिक, फाइनेंशियल-ट्रेल की जाँच अपेक्षित है।

पीड़ितों का भविष्‍य और भरोसा

इस तरह के मामलों का तत्काल प्रभाव पीड़ित-केंद्रित न्याय प्रणाली पर पड़ता है; जब प्रहरी ही पक्षपात/रिश्वत के आदी हो जाएँ तो पीड़ितों का सिस्टम पर भरोसा कम होता है और वे आगे शिकायत दर्ज कराने से डरते हैं या थककर चुप हो जाते हैं। स्थानीय नागरिक समूह और अधिकारवादी संस्थाएँ ऐसी घटनाओं को ‘न्याय में विफलता’ के तौर पर प्रचारित कर सकती हैं।

क्या, क्यों हुआ और क्या सीखें?

प्रेरक कारण: कमजोर निगरानी, चौकी-स्तर पर पारदर्शिता का अभाव, और गंभीर मामलों में प्रभावशाली रिश्वत माँगने का मनोवृत्ति। इससे जुड़े प्रमुख कारणों में अनुशासनहीन कार्यसंस्कृति आते हैं।

निवारक सुझाव: चौकी-स्तर पर रैंडम ऑडिट और बॉडी वोर्न कैमरों का नियमित उपयोग; शिकायतों हेतु स्वतंत्र, त्वरित और ट्रेस-अभिगम व्यवस्था; सामाजिक संस्थाओं के साथ साझेदारी कर ट्रैप की मानक प्रक्रिया और पारदर्शिता लागू करना।

आजाद अधिकार सेना का रोल: नागरिक समूहों की सक्रियता सकारात्मक है, पर उनकी कार्रवाई की पारदर्शिता और संयुक्त प्रशासनिक समन्वय होना चाहिए ताकि भविष्य में ट्रैप-ऑपरेशन के दौरान कानूनी बाधाएँ या फर्जी आरोप न उत्पन्न हों।

आगे की जाँच

एंटी-करप्शन द्वारा जमा किए गए सबूतों (चिह्नित नोट, रिकॉर्डेड कॉल, मैसेज) की प्रतियाँ।

आजाद अधिकार सेना द्वारा दी गई लिखित शिकायत और उनके सदस्यों की उपस्थिति कम्युनिकेशन-लॉग।

क्या अन्य चौकी और थानों के अधिकारी भी इस तंत्र से जुड़े थे, जाँच के दायरे का विस्तार। पीड़ित व अभियुक्त दोनों पक्षों के विस्तृत बयानों का इंडिपेंडेंट सत्यापन।

यह गिरफ्तारी एक दुर्भाग्यपूर्ण लेकिन आवश्यक चेतावनी है, न हम यह मान लें कि यह एक अकेला मामला है, न ही केवल इस एक गिरफ्तारी से सिस्टम बदल जाएगा। सतत निगरानी, पारदर्शिता, और नागरिक-प्रशासनिक साझेदारी ही न सिर्फ दोषियों को पकड़ने में मदद करेगी, बल्कि पीड़ितों का भरोसा भी बहाल करेगी। आजाद अधिकार सेना जैसे समूहों की भागीदारी उपयोगी हो सकती है, पर उसके दावों की स्वतंत्र जाँच जरूरी है ताकि कार्रवाई कानूनी रूप से अटूट रहे।

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