मन की लहरों को शांत करने की कला | हिंदी कविता | सुशील कुमार पाण्डेय ‘निर्वाक’ की कविता’
‘मन की लहरों को शांत करने की कला’ सुशील कुमार पाण्डेय ‘निर्वाक’ की गहराईपूर्ण हिंदी कविता जो सिखाती है कि मन को दबाने नहीं, बल्कि देखने से शांति मिलती है। ध्यान, स्वीकृति और मौन के माध्यम से जानिए भीतर के सागर को शांत करने की यह अद्भुत कला।
मन की लहरों को शांत करने की कला
लहरें उठती हैं मन के सागर में,
शोर करती हैं,
छुपा लेती हैं गहराई।
ऊपर केवल उफान ही उफान,
भीतर मौन की तहों में छिपा सत्य,
अनदेखा,
अनसुना,
अनजाना।
हर विचार पकड़ लो तो वह लहर बन जाता है,
हर इच्छा को थाम लो तो वह तूफ़ान हो जाती है,
हर स्मृति को बाँध लो तो वह अशांति रच देती है।
और तुम,
थकते चले जाते हो इन लहरों से जूझते हुए।
लेकिन रहस्य सरल है,
लहरों को छूना मत,
बस देखना।
जैसे आकाश बादलों को देखता है,
न कहता है कुछ,
न लड़ता है उनसे।
वह मौन साक्षी है,
तुम्हें भी वही होना है।
मन को दबाने से शांति नहीं मिलती,
संघर्ष से लहरें और प्रचंड हो जाती हैं।
शांति तब उतरती है
जब स्वीकार कर लो,
गुस्सा है,
ईर्ष्या है,
लोभ है,
तो भी ठीक है।
स्वीकार करने से संघर्ष पिघलता है,
और पिघलते ही लहरें थकने लगती हैं।
आँखें बंद करो,
और भीतर जो घट रहा है उसे देखो।
धीरे-धीरे मौन उतरता है,
और जब मौन उतरता है
तो लहरें अपने आप शांत हो जाती हैं।
मन की लहरों को शांत करने की कला यही है।
सुशील कुमार पाण्डेय ‘निर्वाक’
संपर्क: 25-26, रोज मेरी लेन, हावड़ा - 711101,
मो.: 88 20 40 60 80 / 9681 10 50 70
ई-मेल : aapkasusheel@gmail.com
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