वापसी | हिंदी कविता | सुशील कुमार पाण्डेय ‘निर्वाक’ की कविता’

मनुष्य की प्रगति की दौड़ और उसकी जड़ों की ओर वापसी की मार्मिक कथा। जब स्वाद खो गया, मिट्टी भूली, और मशीनों ने पहचान छीन ली, तब आत्मा ने फिर वही मिट्टी, खादी और प्रकृति का स्पर्श खोजा।

Oct 25, 2025 - 07:57
Oct 25, 2025 - 08:13
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वापसी | हिंदी कविता | सुशील कुमार पाण्डेय ‘निर्वाक’ की कविता’
वापसी | हिंदी कविता | सुशील कुमार पाण्डेय ‘निर्वाक’

वापसी

 

हम समझते थे,

हम आगे बढ़ रहे हैं,

जब मिट्टी के कुल्हड़ से

प्लास्टिक के प्यालों तक पहुँचे,

पर जब स्वाद गया,

बीमारी मिली,

तो लौट पड़े उसी मिट्टी की गंध में

जहाँ जीवन का रस बसता है।

 

हमने कहा,

अब अँगूठा नहीं,

कलम चलेगी,

फिर देखा,

मशीन ने वही अँगूठा माँगा

जो अपढ़ता का प्रतीक था,

अब पहचान की मुहर बन गया।

 

हमने कपड़े सहेजना सीखा,

पर फैशन की मिर्ची लगी

तो खुद ही अपनी पैंटें फाड़ लीं,

बुशर्टों, शमीजों में सलवटें भर लीं।

 

टैरीलीन के मोह में

सूती, खादी को त्यागा,

फिर पसीने से परेशान

वापस सूती, खादी की गोद में लौटे।

 

हमने खेत छोड़े,

मशीनें अपनाईं,

डिग्रियाँ लीं,

फिर वही MBA, IITIAN

हाथ जोड़े धरती से जुड़े।

 

कुदरत से भागे,

डिब्बे खोले,

जूस पिया,

फिर दवा बनी ज़िंदगी,

तो नींबू और तुलसी

नानी, दादी के नुस्खे ही डॉक्टर हुए।

 

ब्रांडेड के पीछे भागे,

नामों में पहचान खोजी,

और फिर वही पुरानी चीज़ें

‘एंटीक’ कह कर पूजा।

 

बच्चों को मिट्टी से डराया,

स्वच्छता का पाठ पढ़ाया,

पर जब हड्डियाँ कमजोर हुईं,

तो इम्युनिटी के नाम पर

मिट्टी में लौटे।

 

गाँव से निकले शहर की ओर,

शहर से भागे जंगल की ओर,

फिर मन ने जाना,

प्रकृति का हर चक्कर

लौटने के लिए ही होता है।

 

हमने खोजा विज्ञान में अमरत्व,

मिला बस अस्थिर सुख।

प्रकृति ने कहा,

“मैं थी, हूँ, और रहूँगी,

तुम बस हर बार

मुझ तक लौटने के बहाने खोजते रहो।”

 

मनुष्य जब-जब आगे बढ़ा

सिर्फ भटका

और अंततः वहीं लौट आया

जहाँ से वह चला।

 

सुशील कुमार पाण्डेय ‘निर्वाक’

संपर्क: 25-26, रोज मेरी लेन, हावड़ा - 711101,

मो.: 88 20 40 60 80 / 9681 10 50 70

ई-मेल : aapkasusheel@gmail.com

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