RTI: 163 नोटिसों के बाद भी सूचना न मिलने पर CIC से 140 करोड़ हर्जाने की माँग
गोरखपुर निवासी अरूण कुमार ने 163 RTI नोटिसों के बावजूद सूचना न मिलने पर केंद्रीय सूचना आयोग पर गंभीर आरोप लगाए। मौलिक अधिकार के हनन और आर्थिक नुकसान का हवाला देकर 140 करोड़ हर्जाने की माँग, हाई कोर्ट जाने की चेतावनी।
RTI में 163 नोटिसों के बावजूद सूचना न मिलने का आरोप: गोरखपुर के अरूण कुमार ने केंद्रीय सूचना आयोग पर लगाया मौलिक अधिकार हनन का गंभीर आरोप
नई दिल्ली/गोरखपुर, 17 नवंबर 2025: गोरखपुर निवासी अरूण कुमार ने मुख्य केन्द्रीय सूचना आयुक्त (CIC) को भेजे एक शिकायत पत्र में गंभीर आरोप लगाए हैं कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत जारी 163 नोटिसों के बावजूद उन्हें कोई सूचना उपलब्ध नहीं कराई गई, जिससे उनके मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है। उन्होंने कहा कि RTI कानून पूरे भारत के नागरिकों को सूचना प्राप्त करने का अधिकार देता है, लेकिन उनके मामले में केंद्रीय सूचना आयोग “सूचना दिलाने और अर्थदंड लगाने, दोनों में असफल” रहा है।
“मेरे अधिकारों का आयोग ने ही हनन किया”-प्रार्थी
शिकायत पत्र में अरूण कुमार ने लिखा, “केंद्रीय सूचना आयोग पूरे देश को न्याय देता है, लेकिन मुझे ही न्याय नहीं मिला।”
सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम 2005 को भारत में पारदर्शिता का सबसे बड़ा औज़ार माना जाता है। इसकी आत्मा दो स्तंभों पर आधारित है, सूचना तक पहुँच का अधिकार और जवाबदेही का दायित्व। लेकिन गोरखपुर के अरूण कुमार, जिन्होंने वर्षों से RTI के माध्यम से सार्वजनिक जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की, अब खुद केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के खिलाफ खड़े हैं। उनका आरोप है, “केंद्रीय सूचना आयोग ने मेरी 163 नोटिसों की सुनवाई के बावजूद सूचना दिलाने में असफल रहा और अपने ही कानून RTI Act, 2005 का पालन नहीं कराया।” जिसके चलते उन्होंने आयोग के समक्ष 140 करोड़ रुपये का हर्जाना माँगा है।
मुख्य आरोप | The Allegations
शिकायती पत्र में अरूण कुमार ने निम्न गंभीर आरोप लगाए:
163 नोटिसों के बावजूद सूचना उपलब्ध नहीं कराई गई
अरूण कुमार का दावा है कि केंद्रीय सूचना आयोग ने कुल 163 मामलों में नोटिस जारी किए, सुनवाई की तिथि निर्धारित की, विभागों को निर्देश दिया, लेकिन किसी भी मामले में सूचना प्राप्त नहीं हुई। उनका कहना है कि “जब देश का सर्वोच्च सूचना आयोग ही सूचना नहीं दिला पा रहा, तो आम नागरिक किससे न्याय की उम्मीद करे?”
जिम्मेदार अधिकारियों पर अर्थदंड (Penalty) नहीं लगाया गया
RTI Act की धारा 20 स्पष्ट कहती है कि यदि सूचना निर्धारित समय में न दी जाए, या अनावश्यक देरी हो, तो प्रतिदिन ₹250 का अर्थदंड (अधिकतम ₹25,000) लग सकता है।
परंतु अरूण कुमार के अनुसार,
CIC ने किसी भी सूचना अधिकारी पर दंड नहीं लगाया
न ही देरी का कारण पूछा
इससे RTI कानून की मूल भावना कमजोर हुई
उनका आरोप, “सूचना आयोग का दायित्व है कि वह अपने आदेशों को लागू कराए, लेकिन आयोग स्वयं अपने आदेशों का पालन कराने में असमर्थ दिखा।”
मौलिक अधिकारों का हनन
अरूण कुमार का दावा है कि सूचना न मिलने से अनुच्छेद 19(1)(a) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), अनुच्छेद 21 (जीवन व स्वतंत्रता का अधिकार), अनुच्छेद 14 (समानता) का उल्लंघन हुआ है। वे लिखते हैं, “RTI केवल सूचना का साधन नहीं, बल्कि एक मौलिक अधिकार का विस्तारित रूप है। सूचना न देकर मेरे मौलिक अधिकारों का हनन हुआ।”
आर्थिक, सामाजिक व समय की क्षति
शिकायत में लिखा है कि RTI दायर करने में समय
फाइलिंग शुल्क
सुनवाई में उपस्थिति
दस्तावेज़ जमा करना
बार-बार अनुसरण (follow-up)
इन सबमें उनका आर्थिक नुकसान हुआ।
साथ ही मूल्यवान सामाजिक और व्यक्तिगत समय की हानि हुई।
सबसे महत्वपूर्ण 140 करोड़ रुपये हर्जाने की माँग
यह शिकायत का सबसे चर्चा योग्य बिंदु है, अरूण कुमार ने 140 करोड़ रुपये का हर्जाना माँगा है।
उन्होंने इसका आधार इस प्रकार दिया: “भारत की कुल 140 करोड़ आबादी है। हर नागरिक के अधिकार की बराबरी में मुझे प्रति नागरिक 1 रुपया हर्जाना मिलना चाहिए।” यह दावा सांकेतिक और प्रतीकात्मक है, लेकिन इसका उद्देश्य आयोग की जवाबदेही पर प्रश्न खड़ा करना है।
हाई कोर्ट में रिट याचिका की चेतावनी
उन्होंने स्पष्ट लिखा है, “यदि 15 दिनों में हर्जाना नहीं दिया गया और मेरे मौलिक अधिकारों की भरपाई नहीं की गई, तो मैं अपने प्रदेश के हाई कोर्ट में अनुच्छेद 226 एवं अनुच्छेद 368 के अंतर्गत रिट याचिका दायर करूंगा।”
यहाँ अनुच्छेद 226 सही है (हाई कोर्ट का अधिकार),
लेकिन अनुच्छेद 368 आम तौर पर संशोधन से जुड़ा है।
प्रार्थी ने इसे मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के संदर्भ में प्रतीकात्मक रूप से उद्धृत किया है।
संलग्नक में क्या भेजा गया?
केंद्रीय सूचना आयोग की सभी नोटिसों की प्रतियां
राज्य सूचना आयोग की नोटिसों की प्रतियां
RTI सुनवाई संबंधी कागजात
कानूनी विशेषज्ञों की प्रारंभिक प्रतिक्रियाएँ (विश्लेषण)
कई वकीलों का मानना है:
CIC प्रशासनिक रूप से बाध्य है, पर हर्जाना माँगना असामान्य पर नया दृष्टिकोण है।
यह मामला RTI अधिकारों के दुरुपयोग या असली पीड़ा, दोनों का मिश्रण हो सकता है।
हाई कोर्ट इस तरह के मामले में compensation for violation of fundamental rights पर विचार कर सकता है।
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