कैद से जागेगा देश | हिंदी कविता | सुशील कुमार पाण्डेय की कविता

कैद से जागेगा देश | हिंदी कविता | राष्ट्रप्रेम पर आधारित, अन्याय और तंत्र के विरुद्ध जनचेतना जगाने वाली कविता जिसमें कवि सोनम वांगचुक के कैद को देशसेवा मानकर देश के जागरण का संदेश देता है। पढ़ें पूरी कविता

Oct 1, 2025 - 11:06
Oct 1, 2025 - 11:25
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कैद से जागेगा देश | हिंदी कविता | सुशील कुमार पाण्डेय की कविता
कैद से जागेगा देश | हिंदी कविता | सोनम वांगचुक

कैद से जागेगा देश

जो कहते हैं,

कैद से जागेगा देश। 

डर?

नहीं...

डर तो उन दिलों में होता है

जो सच से भागते हैं।

मैं तो इंतज़ार करता हूँ

कब आए वो हथकड़ियाँ,

कब खुले वो सलाखों वाले दरवाज़े।

 

क्योंकि जानता हूँ

मेरी कैद,

मेरी आज़ादी से

ज़्यादा जगाएगी देश को।

 

जब देश देखेगा

वही आदमी,

जो लाया था मैगसेसे,

जिस पर बनी थी सफल फिल्म,

जिसे मिली थीं ऑनरेरी डॉक्टरेट्स,

जिसे मिले थे कई प्रतिष्ठित पुरस्कार

जिसने ज्ञान को सीमाओं के पार

निर्यात किया,

जिसने चीन की वस्तुओं के विरुद्ध

स्वदेश का बिगुल फूँका।

 

जो कहते हैं,

तब देश सोचेगा...

देश समझेगा...

कैसे चल रहा है ये तंत्र,

कैसे झुकती है इंसाफ़ की तराज़ू।

 

मेरी जेल

मेरा अंतिम आंदोलन है।

मेरी कैद

मेरी अंतिम देश-सेवा।

क्योंकि जब मैं सलाखों में रहूँगा,

तब बाहर करोड़ों आँखें

जागेंगी।

 

और वो समझेंगी

देशभक्ति

पुरस्कारों से नहीं मापी जाती,

वो सलाखों से भी बड़ी होती है।

 

हाँ...

अगर ज़रूरी है,

तो मैं तैयार हूँ,

इस आख़िरी कड़ी के लिए।

मेरी क़ैद से ही

जन्म लेगी

एक नई आज़ादी।

 

वही आदमी

आज ISI एजेंट,

आज NSA का अपराधी बनाकर

सलाखों के पीछे डाल दिया गया है।

सुशील कुमार पाण्डेय

संपर्क: 25-26, रोज मेरी लेन, हावड़ा711101, मो,: 88 20 40 60 80 / 9681 10 50 70 

ई-मेल : aapkasusheel@gmail.com

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न्यूज डेस्क जगाना हमारा लक्ष्य है, जागना आपका कर्तव्य