मेरी यात्रा | हिंदी कविता | सुशील कुमार पाण्डेय ‘निर्वाक’ की कविता’
सुशील कुमार पाण्डेय ‘निर्वाक’ की कविता ‘मेरी यात्रा’ एक आत्मबोध और मौन की शक्ति पर केंद्रित रचना है। यह कविता बताती है कि सच्ची शांति शब्दों से नहीं, मौन से आती है।
मेरी यात्रा
दीवारें थीं,
हँसी भी थी,
पर संवाद मर गया था।
चेहरों पर मुस्कानें थीं,
मगर चेहरों पर मुखौटा चढ़ा था।
शब्द कड़वे,
अर्थ विषैले,
स्नेह में स्वार्थ।
जहाँ अपनापन बोना था,
वहीं संदेह का जंगल उगाया गया।
गलती मेरी थी क्या, या
बस मुझे गलत ठहराया गया था?
मैं चुप रहा।
भीतर से आवाज आई,
जहाँ भावनाओं को ठेस पहुँचे,
वहाँ मन की दीवार का वितान बढ़ा लो।
मैंने देखा है,
शब्दों से नहीं,
सवालों से नहीं,
क्रियायों से
चोट पहुँचाई जाती है।
धीरे-धीरे समझा,
हर चेहरा सच्चा नहीं होता,
हर चुप्पी हार नहीं होती।
अब मैं खेल से बाहर हूँ,
ना तानों से दुखी,
ना तारीफ से मदहोश।
मैंने जाना है,
मौन ही मेरा हथियार है।
जो मुझे गिराने चले हैं,
वो खुद थककर ठहर जाएँगे।
और अगर कोई पूछे,
“क्यों नहीं बोलते तुम?”
तो बस इतना कह देता हूँ,
कि अब मैं मूढ़ नहीं।
सुशील कुमार पाण्डेय ‘निर्वाक’
संपर्क: 25-26, रोज मेरी लेन, हावड़ा - 711101,
मो.: 88 20 40 60 80 / 9681 10 50 70
ई-मेल : aapkasusheel@gmail.com
What's Your Reaction?
