छोड़ देने का सत्य | हिंदी कविता | सुशील कुमार पाण्डेय ‘निर्वाक’ की कविता’
यह कविता जीवन के उस सत्य को उजागर करती है जहाँ पकड़ नहीं, बल्कि छोड़ देना ही शांति, प्रेम और आत्मानंद का मार्ग बन जाता है। रेत, हवा और नदी जैसे प्रतीकों से कवि ने ‘त्याग में जीत’ का गूढ़ दर्शन प्रस्तुत किया है।
छोड़ देने का सत्य
पकड़ में क्या है?
रेत की तरह फिसलता हुआ क्षण,
हवा की तरह भागता हुआ पल,
जितना थामो,
उतना बिखर जाता है।
छोड़ दो…
तो जीवन अपने आप समर्पित हो जाता है,
जैसे नदी समंदर की ओर बहती है
बिना किसी प्रतिरोध,
बिना किसी जिद्द के।
रिश्तों को कसकर बाँधो
तो वे दम तोड़ देते हैं,
उन्हें उड़ने दो
तो प्रेम आकाश में पंख पाकर लौट आता है।
धन, यश, अहंकार
ये सब पकड़ की लौ हैं,
जितनी कसकर थामो
उतना ही हाथ जलता है।
छोड़ दो…
तो भीतर शांति खिलती है,
मौन का फूल महकता है,
और आत्मा नृत्य करने लगती है।
मृत्यु भी मुस्कान बन जाती है
उसके लिए जिसने जीते-जी
सब छोड़ दिया है।
सच यही है
छोड़ना हार नहीं,
सबसे बड़ी जीत है।
क्योंकि जब तुम छोड़ देते हो
तभी तो सब
सचमुच
मिल जाता है।
सुशील कुमार पाण्डेय ‘निर्वाक’
संपर्क: 25-26, रोज मेरी लेन, हावड़ा - 711101,
मो.: 88 20 40 60 80 / 9681 10 50 70
ई-मेल : aapkasusheel@gmail.com
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