डिजिटल युग का मौन | हिंदी कविता | सुशील कुमार पाण्डेय की कविता
सुशील कुमार पाण्डेय की कविता ‘डिजिटल युग का मौन’ आधुनिक तकनीक और आत्मा के बीच के संघर्ष को बारीकी से चित्रित करती है। नोटिफिकेशन की भीड़ में खोए मन को मौन के सच्चे अर्थ से जोड़ती यह रचना डिजिटल युग के लिए ध्यान का नया अर्थ परिभाषित करती है।

डिजिटल युग का मौन
नोटिफिकेशन की बारिश में डूबा है मन,
हर क्षण स्क्रीन चमकती है जैसे आकाश पर बादल।
सोच की लहरें स्क्रॉल में फँसकर,
सूरज छिप गया है लाइक्स और फॉरवर्ड्स की झाड़ियों में।
विचार अब प्याज़ नहीं
अनगिनत टैब्स हैं ब्राउज़र में खुले हुए,
एक बंद करो,
तो दूसरा सामने आ खड़ा,
इतिहास मिटाओ,
पर स्मृति की कैच साफ कहाँ होती है।
संस्कार अब सिर्फ मंदिर की घंटियों से नहीं,
विज्ञापन की पिंग से भी पड़ते हैं।
स्टेटस, ट्वीट, मीम, वीडियो
हर पल की धूल हमारी बुद्धि पर जमती है।
वाणी की हिंसा अब और तेज़ है,
शब्द पोस्ट बनकर हजारों तक पहुँचते हैं।
कचरा बोलना अब कचरा शेयर करना है,
असत्य को ट्रेंडिंग बनाने में देर नहीं लगती।
मौन ही है असली एयरप्लेन मोड,
जहाँ आत्मा थोड़ी देर नेटवर्क से बाहर हो सके।
जहाँ कोई चैट-बॉक्स न खुले,
सिर्फ भीतर की रोशनी का नोटिफिकेशन झिलमिलाए।
महावीर का बारह वर्ष का मौन,
आज हमारे लिए कुछ मिनट का लॉग-आउट है।
बुद्ध का ध्यान वही है,
जैसे सभी ऐप्स को क्लियर करके रीस्टार्ट करना।
सत्य उतरता है तभी,
जब डिजिटल शोर का साउंड-प्रूफ़ दीवार खड़ी हो।
मौन वही है, जो
डेटा-ड्रेन की दुनिया में आत्मा को अनलिमिटेड बना दे।
सुशील कुमार पाण्डेय
संपर्क: 25-26, रोज मेरी लेन, हावड़ा - 711101, मो,: 88 20 40 60 80 / 9681 10 50 70
ई-मेल : aapkasusheel@gmail.com
What's Your Reaction?






