इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया, फर्रुखाबाद की एसपी को कोर्ट हिरासत
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में वकील की गिरफ्तारी पर आपत्ति जताई और फर्रुखाबाद की एसपी को न्यायकक्ष में रोका; अदालत ने व्यक्तिगत हलफनामा और अगली सुनवाई 15 अक्तूबर को करने का आदेश दिया। पढ़ें पूरा घटनाक्रम ...

प्रयागराज । 15 अक्तूबर 2025 । इलाहाबाद हाईकोर्ट की पीठ ने कल यानी 14 अक्तूबर को फर्रुखाबाद से जुड़े एक मामले में कठोर रुख अपनाया और सुनवाई के दौरान फर्रुखाबाद की पुलिस अधीक्षक आरती सिंह को न्यायकक्ष में उपस्थित रहकर उस वकील को रिहा कराकर पेश करने तक कक्ष न छोड़ने का निर्देश दिया। यह कदम तब उठाया गया जब याचिकाकर्ता ने दावा किया कि वकील/याचिकाकर्ता के परिवार के सदस्य को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया, और वकील को अदालत के बाहर गिरफ्तार कर लिया गया।
क्या हुआ, मूल घटनाक्रम:
1. याचिका के अनुसार बंदी प्रत्यक्षीकरण, फर्रुखाबाद निवासी याची के परिवार के सदस्य को कथित तौर पर रात के समय हिरासत में लिया गया और कुछ समय बाद रिहा किया गया; याची का आरोप है कि उनसे दबाव बनाकर एक बयान लिखवाया गया। यह आरोप सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के समक्ष रखा गया।
2. सुनवाई के दौरान जब यह तथ्य अदालत के समक्ष आया तो पीठ ने न केवल कड़ी टिप्पणी की, बल्कि फर्रुखाबाद की एसपी को न्यायकक्ष में तब तक रोक दिया जब तक पकड़े गए वकील को अदालत में पेश नहीं किया गया। अदालत ने एसपी से व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने को भी कहा और उन्हें आगामी तारीख पर उपस्थित रहने का निर्देश दिया।
3. राज्य की उच्च अदालत ने इस प्रकार के पुलिस कृत्यों को ‘न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप’ और ‘न्याय को प्रभावित करने’ जैसा मामला माना; अदालत ने पुलिस के इस व्यवहार पर नाराज़गी जताई और कहा कि यह लोकतांत्रिक और न्यायिक आदर्शों के विपरीत है।
कौन-कौन प्रमुख हैं (पहचान और दायित्व):
स्थानीय रिपोर्टों में फर्रुखाबाद एसपी का नाम और संबंधित अधिकारियों की पहचान का विवरण प्रकाशित हुआ है; स्थानीय समाचार पॉर्टलों ने एसपी के विरुद्ध निर्देश और तलब किए जाने की बात को प्रमुखता से कवर किया है। इन रिपोर्टों के अनुसार अदालत ने एसपी से कारण बताओ और व्यक्तिगत हलफनामा माँगा है।
न्यायिक स्वर और निर्देश:
इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ न्यायमूर्ति जे.जे. मुनीर और न्यायमूर्ति संजीव कुमार ने पुलिस की प्रतिक्रिया पर कड़ी टिप्पणी की और कहा कि अगर पुलिस ने विधि और प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक/विधिक उपाय उठाए जा सकते हैं। अदालत ने यह भी आदेश दिया कि संबंधित अधिकारियों को अगली सुनवाई पर व्यक्तिगत हलफनामा लेकर उपस्थित होना अनिवार्य होगा।
प्रभाव और बिंदु जिन्हें जाँचना चाहिए:
क्या हिरासत/गिरफ्तारी वैध प्रक्रियाओं (कानूनी नोटिस, गिरफ्तारी प्रक्रिया, मजिस्ट्रेट के समक्ष पेशी) के अनुरूप की गई थी?
क्या पुलिस ने वकील या पक्षकारों से सीधे संपर्क कर सुनवाई प्रभावित करने का प्रयास किया? अदालत की पूर्व निर्देशावलियों और हालिया सर्कुलरों के अनुरूप क्या यह संपर्क अनुचित था? (संदर्भ: उच्च न्यायालय पहले भी पुलिस को पार्टियों/अधिवक्ताओं से सीधे संपर्क न करने के निर्देश दे चुका है)।
क्या गिरफ्तारी के समय किसी प्रकार का दबाव/जबरन बयान लिया गया और क्या उस बयान की वैधता/लाभप्रदता पर सवाल उठते हैं?
आरती सिंह के बारे में
आरती सिंह 2018 बैच की आईपीएस अधिकारी हैं और वर्तमान में फर्रुखाबाद की पुलिस अधीक्षक हैं। वे मध्य प्रदेश के सिंगरौली की निवासी हैं और उनके पति अनिरुद्ध सिंह भी आईपीएस अधिकारी हैं। आरती सिंह ने यूपीएससी में हिंदी माध्यम से 118वीं रैंक हासिल की थी ।
अगले कदम:
रिपोर्ट्स के अनुसार अदालत ने शहर छोड़ने पर रोक लगाने और व्यक्तिगत हलफनामा पेश करने के निर्देश दिए हैं; अगली सुनवाई की तारीख 15 अक्तूबर 2025 तय की गई है। प्रशासनिक स्तर पर इस पर विभागीय जाँच और आवश्यक होने पर पुलिस कार्रवाई की संभावना बन गई है।
यह घटना न्यायपालिका-पुलिस संबंधों के संवेदनशील संतुलन को रेखांकित करती है, जब पुलिस किसी मामले में अत्यधिक हस्तक्षेप करती है या गिरफ्तारी से जुड़े तरीकों पर सवाल उठते हैं तो हाईकोर्ट का सख्त रुख पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक माना जाता है। अदालत द्वारा एसपी को कक्ष में रोकना व व्यक्तिगत हलफनामा माँगना, न्याय की स्वतंत्रता तथा प्रक्रिया की सुरक्षा का सशक्त संकेत है।
What's Your Reaction?






