भीतर की फिटनेस | हिंदी कविता | सुशील कुमार पाण्डेय की कविता
फिटनेस केवल जिम या मांसपेशियों तक सीमित नहीं, बल्कि मौन, ध्यान, सजग भोजन और आत्मप्रेम से आती है। जानिए कैसे भीतर की रोशनी से तन-मन खिल उठता है।

भीतर की फिटनेस
तन की माँसपेशियाँ कसीं हों,
पर मन अगर थका हुआ है,
तो कैसी ताक़त,
कैसा सौंदर्य?
वह शरीर बस बोझा हुआ है।
स्वास्थ्य का पहला गीत है -
मौन।
कुछ पल बैठो,
साँस को देखो,
आना–जाना,
लहरों का खेल,
यही ध्यान भीतर से धो दे बोझ।
भोजन भी अमृत हो सकता है,
अगर हर कौर को जिया जाए,
अनजाने में निगला हुआ अन्न
कभी जीवन नहीं,
बस विष लाए।
फिटनेस का तीसरा रहस्य है-
प्रेम।
शरीर से पहले स्वयं को चाहो,
थकाओ मत,
भराओ मत,
बस स्नेह से उसका मान करो।
फिटनेस कोई दंगल नहीं,
न ही आईने का भ्रम है,
फिटनेस है –
हल्की चाल,
गहरी साँस,
चमकती आँखें।
जिम की दीवारें नहीं सिखा पातीं,
जो सिखाती है जागरूकता,
हजारों वर्षों से यही था मंत्र,
सादा जीवन,
ध्यान,
सहजता।
तो याद रखो,
फिटनेस बाहर की दौड़ नहीं,
भीतर की रोशनी है,
जहाँ मन शांत हो,
तन अपने आप
सुगंधित फूल-सा खिल उठे।
सुशील कुमार पाण्डेय
संपर्क: 25-26, रोज मेरी लेन, हावड़ा - 711101, मो,: 88 20 40 60 80 / 9681 10 50 70
ई-मेल : aapkasusheel@gmail.com
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