एससी-एसटी एक्ट के फर्जी मुकदमे पर महिला को डेढ़ साल की सजा, राहत राशि वापस होगी

लखनऊ की विशेष अदालत ने चुनावी रंजिश में ग्राम प्रधान पर झूठा एससी/एसटी केस दर्ज कराने वाली महिला को सजा सुनाई। अदालत ने राहत राशि लौटाने और दुरुपयोग रोकने के लिए सख्त टिप्पणी की।

Oct 1, 2025 - 19:31
Oct 1, 2025 - 19:31
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एससी-एसटी एक्ट के फर्जी मुकदमे पर महिला को डेढ़ साल की सजा, राहत राशि वापस होगी
एससी-एसटी एक्ट के फर्जी मुकदमे पर महिला को डेढ़ साल की सजा

लखनऊ, विधि संवाददाता। चुनावी रंजिश के चलते ग्राम प्रधान पर झूठा एससी/एसटी एक्ट का मुकदमा दर्ज कराने वाली महिला को विशेष अदालत ने डेढ़ साल के कारावास की सजा सुनाई है। अदालत ने राहत राशि भी वापस कराने का निर्देश दिया और कहा कि एससी/एसटी कानून का दुरुपयोग समाज में वैमनस्य और निर्दोषों के उत्पीड़न का कारण बन रहा है।

विशेष न्यायाधीश (एससी/एसटी एक्ट) विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने दोषी महिला गुड्डी को दोषी ठहराते हुए आदेश की प्रति जिलाधिकारी और पुलिस आयुक्त को भेजने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि यदि उसे कोई सरकारी राहत धनराशि दी गई है तो तुरंत वापस ली जाए।

पृष्ठभूमि

सरकारी वकील अरविंद मिश्रा ने अदालत को बताया कि ग्राम प्रधान मथुरा प्रसाद, विनोद अवस्थी और अनूप अवस्थी के बीच प्रधानी चुनाव को लेकर विवाद था। इसी रंजिश में दोषी महिला गुड्डी ने 15 नवंबर 2024 को झूठा आरोप लगाया कि विपक्षियों ने उसे और उसके देवर को रास्ते में रोककर जातिसूचक गालियां दीं और मारपीट की।

जांच में एसीपी अमोल मुरकुट ने पाया कि घटना घटित ही नहीं हुई थी। अनूप अवस्थी घटना के समय फैजुल्लागंज में था और अन्य आरोपी घर पर मौजूद थे। विवेचक ने अंतिम रिपोर्ट लगाकर मामला खारिज किया और बाद में गुड्डी के खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज कराने का परिवाद दाखिल हुआ।

अदालत की टिप्पणी

अदालत ने कहा कि पंचायती राज व्यवस्था ग्रामीण विकास का मार्ग प्रशस्त कर रही है, लेकिन साथ ही आपसी रंजिश और वैमनस्य भी बढ़ा रही है। लोग एक-दूसरे के दुश्मन बनते जा रहे हैं।

एससी/एसटी एक्ट पर टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा कि यह कानून पीड़ित वर्ग की सुरक्षा और न्याय के लिए बना था, लेकिन अब कई मामलों में इसका दुरुपयोग कर निर्दोष लोगों को फंसाया जा रहा है। इससे वास्तविक पीड़ितों को न्याय पाना कठिन हो रहा है।

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि करदाताओं के धन को झूठी शिकायत करने वालों पर खर्च करना विधायिका का उद्देश्य कभी नहीं रहा। जिलाधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि राहत राशि केवल चार्जशीट दाखिल होने के बाद ही दी जाए, ताकि फर्जी रिपोर्ट दर्ज कराने की प्रवृत्ति रोकी जा सके।

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