आदतें आराम देती हैं | हिंदी कविता | सुशील कुमार पाण्डेय ‘निर्वाक’ की कविता’
जीवन की सचाई पर आधारित यह कविता बताती है कि आदतें हमें आराम देती हैं, पर वही आराम धीरे-धीरे जीवन की ताजगी को मार देता है। जानिए क्यों कवि कहता है, “जो आदतों से मुक्त है, वह कभी बूढ़ा नहीं होता।”
आदतें आराम देती हैं
आदतें आराम देती हैं,
पर वह आराम मृत्यु है।
जीवन हमेशा असुविधाजनक है,
क्योंकि जीवन हर पल नया है।
कल जैसा आज नहीं,
आज जैसा कल नहीं।
जीवन तो प्रवाह है
पर आदतें चाहती हैं स्थिरता।
बच्चे को देखो,
उसकी आँखों में विस्मय है।
हर फूल पहली बार खिला है,
हर चिड़िया पहली बार गा रही है।
यही बचपन की ताजगी है,
क्योंकि आदतें अभी जड़ नहीं पकड़ पाईं।
धीरे-धीरे जब आदतें हावी हो जाती हैं,
तो विस्मय खो जाता है।
आकाश फीका हो जाता है,
फूल की खुशबू बासी हो जाती है।
याद रखो
बुढ़ापा उम्र से नहीं आता,
आदतों से आता है।
जो आदतों से मुक्त है,
वह कभी बूढ़ा नहीं होता।
उसकी आँखें जीवन भर
नवनीत सी ताज़ा रहती हैं।
सुशील कुमार पाण्डेय ‘निर्वाक’
संपर्क: 25-26, रोज मेरी लेन, हावड़ा - 711101,
मो.: 88 20 40 60 80 / 9681 10 50 70
ई-मेल : aapkasusheel@gmail.com
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