भ्रष्टाचार न्यायपालिका का विश्वास तोड़ता है, पारदर्शिता ही समाधान: सीजेआई बी.आर. गवई
यूके सुप्रीम कोर्ट में एक संगोष्ठी के दौरान, भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को गंभीर चुनौती बताया और कहा कि इससे जन विश्वास टूटता है। उन्होंने ऐसे मामलों में पारदर्शी कार्रवाई को अनिवार्य बताया और न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी पद स्वीकारने से इनकार की नीति को रेखांकित किया।

लंदन/नई दिल्ली, जून 2025: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने कहा है कि भ्रष्टाचार और कदाचार न्यायपालिका की विश्वसनीयता और वैधता को गहरा आघात पहुंचाते हैं और इससे जनता का विश्वास डगमगाता है। उन्होंने जोर दिया कि ऐसे मामलों में त्वरित, पारदर्शी और निर्णायक कार्रवाई ही लोगों का विश्वास बहाल करने का एकमात्र मार्ग है।
सीजेआई गवई ने यह वक्तव्य यूके सुप्रीम कोर्ट में 'Judicial Legitimacy and Maintaining Public Confidence' विषय पर आयोजित एक उच्चस्तरीय संगोष्ठी में दिया। यह वक्तव्य ऐसे समय आया है जब न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर महाभियोग की संभावनाएं चर्चा में हैं।
सीजेआई ने कहा: “भारत में जब भी न्यायिक कदाचार की घटनाएं सामने आई हैं, सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत और उपयुक्त कदम उठाए हैं। पारदर्शी कार्रवाई ही न्यायपालिका की साख को पुनर्स्थापित कर सकती है।”
उन्होंने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता की अनिवार्यता को रेखांकित करते हुए कहा कि कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना हो सकती है, लेकिन इसके समाधान न्यायिक स्वतंत्रता की कीमत पर नहीं होने चाहिए।
सीजेआई गवई ने स्पष्ट किया: "न्यायाधीशों को बाहरी दबाव और राजनीतिक प्रभाव से मुक्त होना चाहिए। यह संस्थागत निष्पक्षता और न्यायिक स्वाभिमान का मूल स्तंभ है।"
सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों की सरकारी भूमिकाओं पर चेतावनी
सीजेआई गवई ने सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों द्वारा चुनाव लड़ने या सरकारी पद स्वीकारने की प्रवृत्ति पर गंभीर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि इससे हितों के टकराव और न्यायिक निर्णयों की निष्पक्षता पर सवाल खड़े होते हैं।
“ऐसी स्थितियाँ न्यायपालिका की विश्वसनीयता को कमजोर करती हैं और यह संदेश देती हैं कि न्यायाधीश अपने भविष्य के पदों को ध्यान में रखते हुए निर्णय कर रहे हैं।”
उन्होंने बताया कि उन्होंने स्वयं और उनके कई सहयोगियों ने यह शपथ ली है कि वे सेवानिवृत्ति के बाद कोई भी सरकारी पद या राजनीतिक भूमिका स्वीकार नहीं करेंगे, ताकि न्यायपालिका की गरिमा और जनता का विश्वास बना रहे।
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