AI के दुरुपयोग पर दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: सद्गुरु के व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा में निषेधाज्ञा जारी
दिल्ली उच्च न्यायालय ने सद्गुरु के व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा करते हुए एक व्यापक गतिशील निषेधाज्ञा पारित की है। यह आदेश AI आधारित झूठी, भ्रामक और अनधिकृत सामग्री को नियंत्रित करने हेतु जारी किया गया है, जिससे सद्गुरु की छवि, आवाज़ और नाम का दुरुपयोग रोका जा सके। न्यायालय ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स और सरकारी विभागों को सख्ती से निर्देश दिए हैं कि वे इस आदेश का पूर्ण पालन सुनिश्चित करें।

नई दिल्ली | जून 2025: दिल्ली उच्च न्यायालय ने ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु उर्फ जग्गी वासुदेव के व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा हेतु AI के माध्यम से हो रहे दुरुपयोग के खिलाफ एकपक्षीय (ex-parte) अंतरिम गतिशील निषेधाज्ञा (dynamic injunction) जारी की है।
यह आदेश उनकी छवि, आवाज़, शैली और नाम के ऐसे अनधिकृत, झूठे और व्यावसायिक शोषण को रोकने के लिए पारित किया गया है, जो जनता में भ्रम फैला सकता है और उनकी प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचा सकता है।
अदालती टिप्पणी एवं आदेश
न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी ने कहा कि: "तेजी से बढ़ती प्रौद्योगिकी के इस युग में व्यक्तित्व अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती। इंटरनेट और अन्य डिजिटल मंचों पर बौद्धिक संपदा और व्यक्तित्व अधिकारों का प्रवर्तन दृश्यमान और प्रभावी होना चाहिए।"
न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि: X (पूर्व में ट्विटर) और YouTube ऐसे खातों को हटाएं जो झूठी सामग्री प्रसारित कर रहे हैं।
इन खातों के उपयोगकर्ताओं की पहचान (subscriber data) न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जाए।
DoT और MEITY इस निर्णय के पालन हेतु संबंधित सोशल मीडिया मंचों और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को अधिसूचना जारी करें।
AI दुरुपयोग के उदाहरण (प्रस्तुत साक्ष्य)
सद्गुरु के वकीलों ने न्यायालय को बताया कि:
1. एक वेबसाइट ने सद्गुरु की फर्जी गिरफ्तारी की खबर चलाई और अनुयायियों को ऐप डाउनलोड करने को कहा।
2. एक नकली वीडियो में उन्हें एक संदिग्ध ट्रेडिंग प्लेटफ़ॉर्म "ट्रेंडटैस्टिक प्रिज़्म" का समर्थन करते हुए दिखाया गया।
3. कुछ सोशल मीडिया अकाउंट्स ने बाल वृद्धि उत्पाद और गर्भावस्था संबंधी पुस्तकें उनके नाम से प्रचारित कीं।
4. AI से जनित प्रेरक कथन/उद्धरण, झूठे ढंग से सद्गुरु के नाम से प्रस्तुत किए गए।
इन सभी मामलों में उनकी छवि, आवाज़, शैली और प्रतिष्ठा का व्यावसायिक एवं भ्रामक दुरुपयोग हुआ, जिससे उनके व्यक्तित्व और प्रचार अधिकारों का उल्लंघन हुआ।
गतिशील निषेधाज्ञा (Dynamic Injunction) का महत्व
इस प्रकार का आदेश न केवल वर्तमान उल्लंघनों पर लागू होता है, बल्कि भविष्य में संभावित उल्लंघनों के विरुद्ध पूर्वव्यापी प्रतिबंध प्रदान करता है। यह तकनीक-प्रेरित अधिकार उल्लंघनों को रियल टाइम में नियंत्रित करने का प्रभावी उपाय माना गया है।
प्रारंभिक आदेश के अन्य निर्देश:
सभी दुष्ट वेबसाइटों को समन जारी किए गए हैं। उनसे 14 अक्तूबर 2025 तक जवाब दाखिल करने को कहा गया है।
वकीलों की उपस्थिति (प्रतिनिधित्व):
पक्षकार अधिवक्ता / फर्म
गूगल (प्रतिवादी) ममता झा, श्रुतिमा एहरसा, राहुल चौधरी, हिमानी सचदेवा
भारत सरकार संदीप कुमार महापात्रा, त्रिभुवन
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