कन्नौज में पुलिस की बर्बरता, भाजपा विधायक के हमनाम युवक पर बरसी लाठियाँ, तीन पुलिसकर्मी निलंबित
उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले से पुलिस की बर्बरता का चौंकाने वाला मामला। खडिनी चौकी में युवक को सिर्फ नाम की समानता पर पीटा गया। विधायक के हस्तक्षेप के बाद तीन पुलिसकर्मी निलंबित, जाँच जारी।
कन्नौज, उत्तर प्रदेश, 4 नवंबर 2025 (शाम) : कन्नौज ज़िले के खडिनी चौकी इलाके में पुलिस की ‘बर्बरता और सत्ता के अहंकार’ का ऐसा मामला सामने आया जिसने पूरे ज़िले को हिला दिया। बीती शाम नगला गूड़ा निवासी युवक कैलाश सिंह राजपूत बाइक से गुजर रहा था, जब चौकी इंचार्ज अंकित यादव और उनकी टीम वाहन चेकिंग कर रही थी। पुलिस ने युवक को रुकने का इशारा किया।
चेकिंग के दौरान मामूली बहस हुई, लेकिन जैसे ही युवक ने अपना नाम ‘कैलाश सिंह राजपूत’ बताया, चौकी इंचार्ज भड़क गए। उन्हें लगा कि युवक भाजपा विधायक कैलाश सिंह राजपूत (तिरवा) का नाम लेकर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। इसी ग़लतफ़हमी में पुलिसकर्मी अपना संयम खो बैठे और युवक पर बेरहमी से लाठियाँ बरसानी शुरू कर दीं। गवाहों के अनुसार, युवक को करीब 40–50 लाठियाँ मारी गईं, जिससे वह ज़मीन पर गिर पड़ा और उसकी हालत बिगड़ गई। स्थानीय लोगों ने तत्काल उसे अस्पताल पहुँचाया। खबर फैलते ही ग्रामीणों ने चौकी और थाने को घेर लिया। स्थिति तनावपूर्ण हो गई।
विधायक का हस्तक्षेप और पुलिस पर आरोप
सूचना मिलते ही भाजपा विधायक कैलाश सिंह राजपूत खुद थाने पहुंचे। उन्होंने कहा, “पुलिस ने निर्दोष युवक को सिर्फ नाम के आधार पर मारा। यह न केवल अमानवीय है बल्कि शक्ति का दुरुपयोग है। जिस युवक की पिटाई हुई वह कोई अपराधी नहीं, बल्कि आम नागरिक है।” विधायक ने मौके से ही एसपी बिनोद कुमार को फ़ोन कर पूरे मामले की जानकारी दी और कठोर कार्रवाई की माँग की। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने युवक की ऐसी हालत कर दी कि “वह मूर्छित हो गया, उसके कपड़े खून से भर गए और पेशाब तक निकल गया।”
प्रशासन की कार्रवाई
घटना के बाद तत्काल प्रभाव से खडिनी चौकी इंचार्ज अंकित यादव, कांस्टेबल अरविंद यादव और विशाल मिश्रा को निलंबित कर दिया गया।
एसपी बिनोद कुमार ने मीडिया से कहा, “मामले की जाँच शुरू कर दी गई है। जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ विभागीय और कानूनी कार्रवाई की जाएगी। किसी भी स्थिति में पुलिस की गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।”
सामाजिक व प्रशासनिक संकेत
यह घटना केवल एक पुलिसकर्मी की गलती नहीं बल्कि राज्य की पुलिस व्यवस्था पर गहरी चोट करती है। नाम या पहचान के भ्रम में किसी नागरिक की पिटाई कानून के शासन पर सवाल उठाती है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि पुलिस प्रशिक्षण, संवेदनशीलता और मानवाधिकारों की समझ अभी भी जमीनी स्तर पर कमजोर है। कानून व्यवस्था बनाए रखने वाली संस्था यदि भय का पर्याय बन जाए, तो लोकतंत्र की बुनियाद हिलने लगती है। यह घटना इस बात की भी गवाही देती है कि राजनीतिक नाम, पहचान और सत्ता का प्रतीक पुलिस के मानस में किस तरह की प्रतिक्रिया उत्पन्न कर सकता है।
मामले की वर्तमान स्थिति
पीड़ित युवक अस्पताल में उपचाराधीन
तीन पुलिसकर्मी निलंबित
एसपी स्तर पर विभागीय जाँच जारी
विधायक की माँग: आईपीसी की धारा 323, 342, 504, 506 के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया जाए।
प्रश्न यह है कि:
1. क्या इस तरह की पुलिस कार्रवाई को ‘ड्यूटी का हिस्सा’ कहा जा सकता है?
2. क्या उत्तर प्रदेश पुलिस अपने आंतरिक सुधारों के प्रति जवाबदेह है?
3. क्या पीड़ित को मुआवज़ा और न्याय मिलेगा या यह मामला भी समय के साथ ठंडा पड़ जाएगा?
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