गुरुनानक: मानवता के आलोक में लौटने का आह्वान

गुरु नानक देव जी के तीन सिद्धांत नाम जपो, कीरत करो, वंड छको आज भी भारतीय समाज को नैतिकता, समानता और सहअस्तित्व का मार्ग दिखाते हैं। जानिए कैसे उनके विचार वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक परिवेश में भी प्रकाशपुंज हैं।

Nov 5, 2025 - 18:14
Nov 5, 2025 - 18:16
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गुरुनानक: मानवता के आलोक में लौटने का आह्वान
गुरुनानक जयंती विशेष

 धार्मिक पाखंड और वर्गभेद के विरुद्ध नानक का संघर्ष

भारत की आध्यात्मिक परंपरा में अनेक संत, कवि और सुधारक हुए हैं जिन्होंने धर्म को मनुष्य के भीतर की करुणा, सत्य और न्याय से जोड़ा। परंतु इन सबमें गुरु नानक देव जी का स्थान अद्वितीय है। उन्होंने न केवल भक्ति और ज्ञान का समन्वय किया, बल्कि उस सामाजिक चेतना को भी जगाया जिसने भारत को नैतिक दृष्टि से पुनर्स्थापित करने की दिशा दी। पाँच शताब्दियाँ बीत जाने के बाद भी उनके विचार आज उतने ही प्रासंगिक हैं जितने वे पंद्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में थे, शायद उससे भी अधिक।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और सामाजिक संदर्भ

गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 ईस्वी में पंजाब के ननकाना साहिब (अब पाकिस्तान में) में एक व्यापारी परिवार में हुआ। उस समय भारत गहरी सामाजिक विषमताओं, धार्मिक संकीर्णताओं और विदेशी आक्रमणों से जूझ रहा था। समाज दो ध्रुवों में बँटा था एक ओर कर्मकांडों में उलझा उच्चवर्ग, दूसरी ओर शोषण से पीड़ित जनसमूह। धर्म जीवन का मार्गदर्शन देने के बजाय भय और अंधविश्वास का उपकरण बन चुका था। हिंदू-मुस्लिम भेद, जातिगत ऊँच-नीच और स्त्री की सामाजिक उपेक्षा ने जीवन को जकड़ रखा था।

इसी पृष्ठभूमि में नानक का प्रकट होना मानो अंधकार में एक दीया जलने जैसा था। उन्होंने न तो किसी एक पंथ को स्वीकार किया, न किसी का विरोध किया। उनका कथन था, ना मैं हिन्दू, ना मुसलमान; मैं तो बस मानव हूँ।” यह उद्घोष केवल धार्मिक उदारता नहीं थी, बल्कि उस समय की जड़ सामाजिक संरचना को चुनौती देने वाला क्रांतिकारी विचार था। नानक ने अपनी यात्राओं जिन्हें ‘उदासियाँ’ कहा गया, के माध्यम से पूरे भारत, तिब्बत, अरब, श्रीलंका, अफगानिस्तान आदि देशों तक संदेश पहुँचाया कि ईश्वर एक है, और उसकी प्राप्ति केवल प्रेम, सत्य और कर्म के मार्ग से ही संभव है।

अंधविश्वास और वर्गभेद के विरुद्ध उनका संघर्ष

गुरु नानक ने धर्म के नाम पर चल रहे पाखंडों को खुलकर चुनौती दी। उन्होंने काशी में पंडितों से पूछा कि यदि ईश्वर सर्वव्यापक है तो उसे केवल मंदिर या मस्जिद में ही क्यों खोजा जाए? वे कहते थे, पवित्रता वस्त्रों या रीति-रिवाजों से नहीं, बल्कि मन की निर्मलता से आती है।” उन्होंने समाज को समझाया कि बाहरी आडंबर, मूर्तिपूजा या कर्मकांड से नहीं, बल्कि ईमानदार जीवन और दूसरों के प्रति करुणा से ही ईश्वर की प्राप्ति होती है। इसी विचार से उन्होंने ‘लंगर’ की परंपरा शुरू की एक ऐसा स्थान जहाँ जाति, धर्म, लिंग या वर्ग के भेद के बिना सभी एक साथ बैठकर भोजन करें। यह केवल अन्नदान नहीं था; यह सामाजिक समानता का सबसे सशक्त प्रतीक था। उनकी वाणी में समानता का स्वर स्पष्ट था, सब में जोत, जोत है सोई; तिस दै चानण सब में चानण होई।” अर्थात हर जीव में एक ही दिव्य प्रकाश है, सभी में उसी ईश्वर की ज्योति है। गुरु नानक का यह मानवीय दृष्टिकोण उनके समय के सामाजिक ढाँचे के लिए चुनौती था। उन्होंने शासक वर्ग की अन्यायपूर्ण नीतियों की भी आलोचना की और कहा, राजे सीह मुकद्दम कूते, झूठ परजा खावे।” (राजा शेर बन गया है, अधिकारी कुत्तों की तरह हैं, और प्रजा झूठ खा रही है।)

यह उनके समय की राजनीतिक व्यवस्था पर एक तीखा व्यंग्य था, जो आज भी उतना ही लागू होता है।

नाम जपो, कीरत करो, वंड छको जीवन का त्रिकालसत्य

गुरु नानक ने जीवन को तीन मूल सिद्धांतों में बाँधा - नाम जपो, कीरत करो, वंड छको। ये तीनों केवल आध्यात्मिक उपदेश नहीं, बल्कि मानव समाज के लिए नैतिक आचार-संहिता हैं।

नाम जपो, अंतर्मन की जागृति

'नाम जपो' का अर्थ केवल ईश्वर का नाम लेना नहीं, बल्कि अपने भीतर की चेतना को जाग्रत करना है। यह आत्म-साक्षात्कार की प्रक्रिया है। आज के समय में जब जीवन की गति यांत्रिक हो गई है, और मनुष्य बाहरी उपलब्धियों में उलझकर भीतर की शांति खो बैठा है, तब 'नाम जपो' हमें आत्म-ध्यान और आत्म-संवाद की दिशा देता है। यह हमें सिखाता है कि आध्यात्मिकता कोई अलग क्रिया नहीं, बल्कि जीवन का सतत प्रवाह है।

कीरत करो, श्रम की गरिमा और ईमानदारी का धर्म

'कीरत करो' यानी ईमानदारी से श्रम करो और अपने कर्म से जीवन चलाओ। गुरु नानक ने समाज में फैली आलस्य, शोषण और परजीवी प्रवृत्ति पर प्रहार किया। उन्होंने कहा कि जो बिना परिश्रम दूसरों का धन या श्रम हड़पता है, वह अधर्मी है। उनके लिए काम ही पूजा था। आज जब आधुनिक भारत में श्रमिक वर्ग अब भी उपेक्षा झेल रहा है, बेरोजगारी बढ़ रही है और ईमानदारी का मूल्य घट रहा है, तब 'कीरत करो' का सिद्धांत नैतिक पुनर्निर्माण का सबसे सशक्त आधार बन सकता है।

वंड छको, साझा जीवन और सामाजिक न्याय का दर्शन

'वंड छको' का अर्थ है जो भी कमाओ, उसे दूसरों के साथ बाँटो। यह समाजवादी या दान की भावना नहीं, बल्कि सह-अस्तित्व का दर्शन है। जब सब एक ही परमात्मा की संतान हैं, तो किसी के पास अति-संपत्ति और किसी के पास अभाव क्यों? नानक का यह विचार आज के असमान समाज के लिए गहरी सीख है। आज जब पूँजीवादी व्यवस्था ने समाज को वर्गों में बाँट दिया है एक ओर विलासिता, दूसरी ओर भूख तब 'वंड छको' सामाजिक समरसता की राह दिखाता है।

आज के भारत में गुरु नानक के विचारों की प्रासंगिकता

गुरु नानक का जीवन हमें याद दिलाता है कि धर्म का अर्थ केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि न्याय, समानता और प्रेम का व्यवहारिक रूप है। आज का भारत जब सांप्रदायिक विभाजनों, जातीय हिंसा, धार्मिक उन्माद और राजनीतिक ध्रुवीकरण से गुजर रहा है, तब नानक की वाणी हमें स्मरण कराती है,एक ओंकार सतनाम।” ईश्वर एक है, उसका नाम सत्य है। यह सत्य किसी एक पंथ की बपौती नहीं, बल्कि सबका साझा अनुभव है। नानक का “नाम जपो” आज मानसिक शांति और आत्मसंवाद का मार्ग है; “कीरत करो” आर्थिक नैतिकता का आधार है; और “वंड छको” सामाजिक न्याय की नीति है। यदि भारत इन तीनों को नीति, शिक्षा और जनजीवन में उतार ले तो वह न केवल आर्थिक रूप से, बल्कि नैतिक रूप से भी सशक्त हो सकता है।

राजनीतिक और सामाजिक नेतृत्व के लिए नैतिक मार्गदर्शन

गुरु नानक किसी सत्ता या संस्था के विरोधी नहीं थे; वे सत्य के पक्षधर थे। उन्होंने कहा, जो तू प्रेम खेलेन का चाहे, सिर धर तली गली मेरी आ।” (यदि तू प्रेम का मार्ग चुनना चाहता है, तो अपना सिर हथेली पर रखकर आ।) यह प्रेम का मार्ग केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि साहस और त्याग का प्रतीक है। आज जब राजनीति अवसरवाद और स्वार्थ के दलदल में फँसी है, तब नानक का यह कथन हमें बताता है कि सच्चा नेतृत्व वही है जो जनता की सेवा में अपने हितों का बलिदान कर दे। उनकी शिक्षा का सार था,“निस्वार्थ सेवा।” यही वह सिद्धांत है जो हर नेता, अधिकारी, शिक्षक या नागरिक को अपने कर्म में अपनाना चाहिए। यदि सत्ता सेवा का पर्याय बन जाए, तो राजनीति नैतिकता का विद्यालय बन सकती है।

गुरु नानक और समकालीन समाज की चुनौतियाँ

आज का भारत तकनीकी प्रगति और आर्थिक विकास की ओर बढ़ रहा है, परंतु सामाजिक संवेदनशीलता और नैतिक चेतना के स्तर पर प्रश्नचिह्न खड़े हैं। हिंसा, असहिष्णुता, धार्मिक विद्वेष, पर्यावरणीय संकट और मानसिक तनाव ने हमारे जीवन को असंतुलित कर दिया है। ऐसे में नानक का दर्शन केवल धार्मिक अनुशासन नहीं, बल्कि जीवन का मार्गदर्शन है। उन्होंने कहा था,  सचु होर मनि होर है, सचु आचार।” (सत्य केवल विचार में नहीं, आचरण में है।) यदि हम इस एक वाक्य को जीवन का सूत्र बना लें, तो अनेक सामाजिक बुराइयाँ स्वतः समाप्त हो सकती हैं।

आधुनिक भारत के लिए उनका संदेश

गुरु नानक देव जी का दर्शन भारत के संविधान की आत्मा से भी मेल खाता है-समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व। उन्होंने जो समाज का सपना देखा, वही लोकतंत्र का नैतिक स्वरूप है, जहाँ कोई ऊँचा-नीचा नहीं, कोई अलग नहीं, सभी एक ही मानव परिवार के अंग हैं। उनकी शिक्षाएँ हमें यह भी सिखाती हैं कि आध्यात्मिकता और सामाजिक जिम्मेदारी अलग नहीं, बल्कि एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जब हम ‘कीर्तन’, ‘प्रभात फेरी’ या ‘लंगर सेवा’ करते हैं, तब हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता का प्रशिक्षण है। यदि हर व्यक्ति अपने जीवन में नानक के तीन सिद्धांतों को अपनाए भीतर की शांति, बाहर की ईमानदारी और समाज के साथ बाँटने की भावना, तो भारत पुनः ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के आदर्श को साकार कर सकता है।

अंतिम आह्वान: क्या हम केवल पर्व मनाएँगे या विचार जिएँगे?

हर वर्ष गुरु नानक जयंती पर दीयों की रौशनी, नगर कीर्तन और लंगर की सुगंध से वातावरण पवित्र हो उठता है। पर क्या यह पर्याप्त है? क्या हम नानक के विचारों को केवल उत्सव तक सीमित रख देंगे? या हम वह साहस दिखाएँगे कि उनके सिद्धांतों को अपने जीवन का मार्ग बनाएँ?

गुरु नानक ने हमें यह नहीं सिखाया कि ईश्वर को ढूँढ़ो; उन्होंने सिखाया कि ईश्वर बनो- अपने कर्म, अपनी करुणा और अपनी सच्चाई में। उन्होंने धर्म को विभाजन का नहीं, जोड़ने का माध्यम बनाया। आज जब समाज फिर विभाजन की ओर बढ़ रहा है, तब सबसे बड़ा धर्म यही है कि हम उनके बताए मार्ग पर चलें।

आइए, इस गुरुपर्व पर हम एक संकल्प लें कि ‘नाम जपो, कीरत करो, वंड छको’ को केवल उपदेश नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आचरण बनाएँ । गुरु नानक ने जो दीप पाँच सौ वर्ष पहले जलाया था, वह आज भी बुझा नहीं है; बस हमें उसकी रोशनी में लौटने का साहस चाहिए।

‘एक ओंकार सतनाम।’ एक ही सत्य है और वह है मानवता का प्रकाश।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I