अगर धरती नहीं बचेगी, तो कौन जीतेगा युद्ध? | 6 नवंबरअंतरराष्ट्रीय दिवस

युद्ध सिर्फ सैनिकों की जान नहीं लेता, वह धरती की साँस भी छीन लेता है। 6 नवंबर का “युद्ध और सशस्त्र संघर्ष में पर्यावरण के शोषण को रोकने का अंतर्राष्ट्रीय दिवस” हमें याद दिलाता है कि असली विजय तब होगी जब धरती बचेगी।

Nov 6, 2025 - 09:07
Nov 6, 2025 - 09:08
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अगर धरती नहीं बचेगी, तो कौन जीतेगा युद्ध? | 6 नवंबरअंतरराष्ट्रीय दिवस

प्रकृति की लाश पर खड़ा विजेता भी पराजित है। क्योंकि युद्ध का कोई असली विजेता नहीं होता, हर युद्ध धरती को हार का प्रमाणपत्र दे जाता है।

6 नवंबर को विश्व समुदाय ‘युद्ध और सशस्त्र संघर्ष में पर्यावरण के शोषण को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस’ मनाता है। यह दिन एक चेतावनी है, उन राख में दबे सच्चाइयों की, जिन्हें हमने बार-बार अनदेखा किया है। जब बम गिरते हैं, तो वे केवल शहर नहीं जलाते, वे मिट्टी की उर्वरता, नदियों की शुद्धता और हवा की साँस को भी छीन लेते हैं।

वियतनाम युद्ध का ‘एजेंट ऑरेंज’ हो या खाड़ी युद्ध के जलते तेल कुएँ इन सबने सिर्फ लोगों को नहीं, बल्कि प्रकृति को भी मार डाला। सीरिया, अफगानिस्तान, यूक्रेन हर जगह धरती बारूद के नीचे कराह रही है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के अनुसार, युद्ध के बाद पारिस्थितिक संतुलन लौटाने में दशकों लग जाते हैं, और कभी-कभी धरती हमेशा के लिए मर जाती है।

 युद्ध का जहर सीमाओं में नहीं रुकता। हवा, पानी और मिट्टी सीमाओं को नहीं मानते। जब इराक की राख सऊदी अरब तक पहुँची, तो खेतों में काली परत जम गई। फुकुशिमा के रेडियोधर्मी प्रभाव ने पूरे महासागर को संक्रमित कर दिया। यह एक वैश्विक त्रासदी है, जो हर साँस को छूती है।

विडंबना यह है कि युद्ध का कारण भी अक्सर पर्यावरण ही होता है। पानी, तेल, खनिज, जंगल इन संसाधनों की लूट ही कई संघर्षों की जड़ है। यूएनईपी के मुताबिक 40% आंतरिक युद्ध प्राकृतिक संसाधनों से जुड़े हैं। यानी हम पहले प्रकृति को लूटते हैं, फिर उसके खिलाफ युद्ध छेड़ देते हैं, और अंत में उसी के अभाव में खुद नष्ट हो जाते हैं।

संयुक्त राष्ट्र ने 2001 में इस दिवस की स्थापना की थी ताकि युद्धों के पारिस्थितिक दुष्परिणामों को वैश्विक चेतना का हिस्सा बनाया जा सके। जिनेवा कन्वेंशन का अनुच्छेद 55 स्पष्ट रूप से कहता है कि युद्ध में पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाले कार्य निषिद्ध हैं। पर क्या युद्धभूमि पर कोई अनुच्छेद सुनाई देता है?

आज जरूरत है ग्रीन डिप्लोमेसी की एक ऐसी नीति जो सीमाओं से पहले धरती को प्राथमिकता दे। कुछ देश जैसे नीदरलैंड और स्विट्जरलैंड इस दिशा में पहल कर रहे हैं, लेकिन यह प्रयास अभी पर्याप्त नहीं। हमें एक ऐसी वैश्विक मानसिकता चाहिए जो यह समझे, विजय का कोई अर्थ नहीं, अगर धरती मर रही है।

युद्ध का सबसे बड़ा शिकार वह बच्चा है जो विषैली हवा में जन्म लेता है, वह किसान जिसके खेत में बारूदी सुरंगें बोई गई हैं, और वह पक्षी जिसने अपना आसमान खो दिया है। हमें उस युद्ध से लड़ना होगा जो हमारे भीतर पल रहा है, विनाश की मानसिकता से।

शांति केवल युद्धविराम से नहीं आएगी, बल्कि तब जब धरती फिर से साँस ले सकेगी, जब नदियाँ निर्मल होंगी और जब पेड़, न कि टैंक, सीमाओं की पहचान बनेंगे।

6 नवंबर हमें यह सिखाता है, युद्ध रोकना ही पर्याप्त नहीं है; धरती को बचाना असली विजय है।

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