RTI के कानून को ठेंगा दिखाते सूचना आयुक्त राकेश कुमार, 6 में से 4 मामलों में फैसला टालकर पारदर्शिता का मज़ाक

रवि शंकर की छह अपीलों में सुनवाई पूरी होने के बाद केवल दो मामलों पर आदेश, बाकी चार में अनियमित रूप से अगली तारीखें। राकेश कुमार पर RTI कानून और अपने ही आदेशों का उल्लंघन करने के गंभीर आरोप।

Nov 7, 2025 - 06:38
Nov 7, 2025 - 09:29
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RTI के कानून को ठेंगा दिखाते सूचना आयुक्त राकेश कुमार, 6 में से 4 मामलों में फैसला टालकर पारदर्शिता का मज़ाक
महामहिम उ.प्र. सूचना आयुक्त राकेश कुमार

कानून के नाम पर नौटंकी: जब सूचना आयुक्त खुद अपने आदेशों का उल्लंघन करें

आदेश सुरक्षित, लेकिन न्याय गायब

25 सितंबर 2025 को अपीलकर्ता रवि शंकर की छह द्वितीय अपीलों पर सुनवाई पूरी हो चुकी थी। कानूनी प्रक्रिया के अनुसार, जब सुनवाई पूरी हो जाती है और आदेश ‘सुरक्षित’ रखा जाता है, तो आयोग को निर्धारित अवधि के भीतर सभी मामलों पर एक साथ अंतिम निर्णय देना होता है। लेकिन हुआ उल्टा, राकेश कुमार ने 17 अक्तूबर 2025 को केवल दो मामलों पर ही आदेश दिए, वह भी कानूनी आधार पर नहीं बल्कि व्यक्तिगत पूर्वाग्रह से प्रभावित लगते हैं। शेष चार मामलों को अलग-अलग तारीखों पर ठेल दिया गया, तीन मामलों में अगली तारीख 14 नवंबर 2025, और एक में 22 दिसंबर 2025 तय की गई। यानी, आदेश सुरक्षित रखने का मतलब ‘टालमटोल’ का औजार बन गया।

RTI कानून का आत्मा-विरोधी रवैया

RTI अधिनियम स्पष्ट कहती है, "द्वितीय अपील को, यथासंभव, जल्द से जल्द निपटाया जाना चाहिए"। लेकिन जब खुद सूचना आयुक्त इस बंधनकारी प्रावधान की अवहेलना करें, तो यह सिर्फ लापरवाही नहीं, कानूनी उल्लंघन है। राकेश कुमार ने न केवल इस प्रावधान को अनदेखा किया, बल्कि अपनी पूर्व में जारी बंधनकारी आदेशों की भी धज्जियाँ उड़ाईं। वही राकेश कुमार जिन्होंने कई अन्य मामलों में आदेश दिया था कि  सुनवाई पूरी हो जाने के बाद मामले को बार-बार स्थगित नहीं किया जा सकता।” आज वही आयुक्त उसी नियम के सामने हथियार डालते नज़र आ रहे हैं।

रवि शंकर का आरोप, “RTI की आत्मा की हत्या”

अपीलकर्ता रवि शंकर का कहना है, यह सिर्फ देरी नहीं, एक सोची-समझी साजिश है। जिन दो मामलों में आदेश दिए गए, उनमें मेरिट नहीं देखी गई, बल्कि मुझे अपमानित करके RTI की आत्मा को चोट पहुँचाई गई।” उनका यह भी कहना है कि चार मामलों को टालकर ‘जन सूचना अधिकारी’ को एक और अवसर देना कानून के विरुद्ध है, क्योंकि सुनवाई के बाद कोई नया अवसर नहीं दिया जा सकता।

यह कदम आयोग की निष्पक्षता पर सीधा सवाल है, क्या सूचना आयुक्त सरकारी पक्ष के लिए 'सुरक्षा कवच' बन चुके हैं?

अपने ही आदेशों के खिलाफ बेंच चला रहे हैं राकेश कुमार

सूत्र बताते हैं कि राकेश कुमार ने कई बार अपने ही पुराने आदेशों की भावना के विपरीत कार्य किया है। पहले जहाँ वे कहते थे कि “RTI की सुनवाई में देरी नागरिक के अधिकारों का उल्लंघन है”, अब वही अधिकारी महीनों तक मामलों को टालकर ‘प्रशासनिक शील’ और ‘एक और मौका’ जैसे बहानों से बचते हैं। इस दोहरे रवैए ने आयोग की साख को गहरी चोट पहुँचाई है।

RTI संस्थानों का पतन, जब जवाबदेही गायब हो जाए

RTI एक्ट 2005 का मूल उद्देश्य था, सरकार को जवाबदेह बनाना और नागरिकों को सशक्त करना। लेकिन, उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग का हाल यह दिखा रहा है कि अब आयोग सूचना देने के बजाय सूचना छिपाने वालों की ढाल बन गया है। यह Institutional Decay (संस्थागत पतन) का उदाहरण है, जहाँ पारदर्शिता के नाम पर नौकरशाही की सत्ता बचाई जा रही है।

कानूनी दृष्टि से क्या यह ‘Misconduct’ है?

अगर कोई सूचना आयुक्त जानबूझकर —

  • अपने ही आदेशों का उल्लंघन करे,
  • RTI अधिनियम स्पष्ट कहती है, "द्वितीय अपील को, यथासंभव, जल्द से जल्द निपटाया जाना चाहिए"।
  • सूचना आयुक्त सुनवाई के बाद बार-बार अपीलार्थी को मानसिक रूप से प्रताड़ित करने के उद्देश्य से जनसूचना अधिकारी को लगातार अवैध अवसर दें,

तो यह ‘Administrative Misconduct’ की श्रेणी में आता है। यह High Court के Writ Jurisdiction में चुनौती योग्य मामला है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह न केवल 'नियम विरुद्ध आचरण' है, बल्कि 'न्याय की प्रक्रिया का दुरुपयोग' भी है।

लोकतंत्र की आत्मा पर चोट

सूचना आयोग संविधान की उस भावना का प्रतीक है जो नागरिक को यह अधिकार देती है कि वह सरकार से सवाल कर सके। पर जब स्वयं आयोग के आयुक्त जवाबदेही से बचने लगें, तो लोकतंत्र की आत्मा पर ही प्रहार होता है। राकेश कुमार का रवैया यह दिखाता है कि पारदर्शिता अब कुर्सी की सुविधा के हिसाब से तय की जा रही है।”

राकेश कुमार का यह रवैया सिर्फ एक प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि RTI कानून की पूरी भावना पर चोट है। जो व्यक्ति स्वयं ‘सूचना का रक्षक’ कहलाता है, वह जब अपीलकर्ता को अपमानित करे, अपने आदेशों की अवमानना करे, और जन सूचना अधिकारियों को अनुचित अवसर देता रहे, तो यह स्पष्ट संदेश है, “RTI अब जवाबदेही नहीं, राजनीतिक सुरक्षा कवच बन गई है।”

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I