आतंकवाद का घिनौना चेहरा और भारत की चुनौतियाँ
पहलगाम हमला आतंकवाद का एक और घिनौना चेहरा है, जो निर्दोष लोगों की जान लेने से नहीं चूकता। यह भारत के लिए एक चेतावनी है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। इस त्रासदी से उबरने के लिए हमें न केवल सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करना होगा, बल्कि सामाजिक, आर्थिक, और कूटनीतिक स्तर पर भी एकजुट होकर काम करना होगा। पहलगाम के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी, जब हम आतंकवाद के इस खतरे को जड़ से उखाड़ फेंकेंगे।

22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकवादी हमला न केवल एक त्रासदी है, बल्कि यह आतंकवाद के क्रूर और कायरतापूर्ण स्वरूप को उजागर करता है। इस हमले में 26 पर्यटकों की जान गई, जिनमें दो विदेशी नागरिक (संयुक्त अरब अमीरात और नेपाल से) और दो स्थानीय निवासी शामिल थे। यह हमला, जो पर्यटकों के पसंदीदा स्थल 'मिनी स्विट्जरलैंड' बैसरन में हुआ, न सिर्फ भारत की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि आतंकवादी तत्व कितनी बेरहमी से निर्दोष लोगों को निशाना बनाते हैं।
सूत्रों के अनुसार, छह आतंकवादियों ने इस हमले को अंजाम दिया, जिनके पास AK-47 राइफलें थीं। हमले से पहले इलाके की रेकी की गई, जिसे पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों ने सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया। यह हमला 2019 के पुलवामा हमले के बाद घाटी में सबसे बड़ा आतंकी हमला माना जा रहा है, जिसमें 40 सीआरपीएफ जवान शहीद हुए थे। पहलगाम, जो अपने हरे-भरे घास के मैदानों और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है, पर्यटक सीजन के चरम पर इस हमले का शिकार बना। हमले के बाद क्षेत्र में सन्नाटा छा गया, और बड़ी संख्या में पर्यटक घाटी छोड़कर लौटने लगे।
इस हमले ने न केवल स्थानीय पर्यटन उद्योग को झटका दिया, बल्कि कश्मीर में हाल के वर्षों में पर्यटकों की बढ़ती संख्या पर भी गहरा प्रभाव डाला। वर्षों तक आतंकवाद से जूझने के बाद, कश्मीर में पर्यटन ने एक नई उम्मीद जगाई थी, लेकिन इस हमले ने उस उम्मीद को करारा झटका दिया है।
आतंकवाद का बदलता पैटर्न और सुरक्षा चुनौतियाँ : पहलगाम हमला यह दर्शाता है कि आतंकवादी अब 'हिट ऐंड रन' रणनीति का सहारा ले रहे हैं, जैसा कि हाल के गांदरबल हमले में भी देखा गया। इस तरह के हमले सुनियोजित होते हैं और इनमें स्थानीय रेकी और बाहरी समर्थन की भूमिका स्पष्ट होती है। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, इस हमले की कमान पाकिस्तान में बैठे आतंकी हैंडलर संभाल रहे थे, और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों का नाम सामने आ रहा है।
खुफिया तंत्र की विफलता :
यह हमला खुफिया तंत्र की विफलता को भी उजागर करता है। गांदरबल हमले के बाद उठे सवालों की तरह, पहलगाम हमले में भी यह स्पष्ट है कि आतंकियों को इलाके की पूरी जानकारी थी, फिर भी खुफिया एजेंसियों को इसकी भनक नहीं लगी। यह एक गंभीर चूक है, जिसकी उच्च स्तरीय जाँच होनी चाहिए।
वैश्विक और राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ : इस हमले की चौतरफा निंदा हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे 'आतंकवादी हमला' करार देते हुए कहा कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। रक्षा मंत्री ने 'आतंक के खिलाफ जीरो टॉलरेंस' की नीति की बात दोहराई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, यूरोपीय संघ की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन, सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने इस हमले की निंदा की और भारत के प्रति एकजुटता व्यक्त की।
राष्ट्रीय स्तर पर, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इसे 'घिनौना काम' बताया, जबकि पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने कश्मीर में बंद का आह्वान किया। ये प्रतिक्रियाएँ दर्शाती हैं कि आतंकवाद के खिलाफ देश और दुनिया एकजुट है, लेकिन यह एकजुटता केवल शब्दों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए।
आगे की राह: चुनौतियाँ और समाधान : पहलगाम हमला हमें कई सबक देता है। पहला, खुफिया तंत्र को मजबूत करने की जरूरत है। आतंकियों की रेकी और गतिविधियों पर नजर रखने के लिए आधुनिक तकनीक और स्थानीय सहयोग को बढ़ावा देना होगा। दूसरा, स्थानीय समुदाय को आतंकवाद के खिलाफ एकजुट करना जरूरी है। कश्मीर के लोग, जो लंबे समय से हिंसा से पीड़ित हैं, इस लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
तीसरा, अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम उठाने होंगे। पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों पर वैश्विक प्रतिबंध और आर्थिक दबाव बढ़ाने की जरूरत है। भारत को भी अपनी कूटनीतिक ताकत का इस्तेमाल कर इस मुद्दे को और प्रभावी ढंग से उठाना होगा।
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