भारत सरकार द्वारा मुकदमेबाजी प्रबंधन के लिए नई दिशा: कुशल, पारदर्शी और प्रभावी न्यायिक रणनीति

भारत सरकार ने एक दूरदर्शी पहल के तहत लंबित अदालती मामलों को शीघ्रता से सुलझाने और अनावश्यक मुकदमेबाजी को नियंत्रित करने के लिए एक समग्र दिशा-निर्देश जारी किया है। इसका शीर्षक है: 'भारत सरकार द्वारा मुकदमेबाजी के कुशल और प्रभावी प्रबंधन के लिए निर्देश'।

Jul 11, 2025 - 08:37
Jul 10, 2025 - 20:40
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भारत सरकार द्वारा मुकदमेबाजी प्रबंधन के लिए नई दिशा: कुशल, पारदर्शी और प्रभावी न्यायिक रणनीति
सरकार - उत्तर दक्षिण ब्लॉक

भारत सरकार ने एक दूरदर्शी पहल के तहत लंबित अदालती मामलों को शीघ्रता से सुलझाने और अनावश्यक मुकदमेबाजी को नियंत्रित करने के लिए एक समग्र दिशा-निर्देश जारी किया है। इसका शीर्षक है: 'भारत सरकार द्वारा मुकदमेबाजी के कुशल और प्रभावी प्रबंधन के लिए निर्देश'। यह दिशा-निर्देश केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों, विभागों, अधीनस्थ कार्यालयों और स्वायत्त निकायों पर लागू होंगे। इसका उद्देश्य है 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य की दिशा में न्यायिक दक्षता और सुशासन को सुदृढ़ करना।

 प्रमुख निर्देशों का सार

1. मामलों का वर्गीकरण एवं प्रबंधन

·         हर मंत्रालय/विभाग को मुकदमों को अत्यधिक संवेदनशील, संवेदनशील और नियमित श्रेणियों में विभाजित करना होगा।

·         अत्यधिक संवेदनशील मामले (जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा, नीति, वित्तीय जोखिम) संबंधित सचिव द्वारा समीक्षा और निगरानी में लाए जाएंगे।

·         इन मामलों पर विभागीय बैठकें नियमित होंगी और केस की पूरी अवधि तक निगरानी की जाएगी।

2. विशेष अनुमति याचिकाओं (SLP) पर नियंत्रण

·         SLP को सुप्रीम कोर्ट में केवल असाधारण परिस्थितियों में ही दायर किया जाएगा।

·         SLP दायर करने के मापदंड:

o    घरेलू/अंतरराष्ट्रीय प्रभाव

o    सामाजिक न्याय से जुड़े मुद्दे

o    संविधान की व्याख्या या नीति निर्धारण से जुड़े प्रश्न

o    जब अन्य कोई उपाय उपलब्ध न हो या अन्याय गंभीर हो

o    उच्च न्यायालयों के विरोधाभासी आदेश

3. अधिवक्ताओं की नियुक्ति व मूल्यांकन

·         मंत्रालय अपने अधिवक्ताओं को विषय-विशेषज्ञता के आधार पर चुनेंगे।

·         अधिवक्ताओं के प्रदर्शन का मूल्यांकन संबंधित मंत्रालयों के फीडबैक पर आधारित होगा।

·         उत्कृष्ट प्रदर्शन पर पदोन्नति, कार्यकाल विस्तार या हटाने पर निर्णय लिया जाएगा।

4. विधिक संरचना और प्रशिक्षण

·         हर मंत्रालय में एक सामान्य विधिक प्रकोष्ठ स्थापित होगा।

·         नोडल अधिकारी की नियुक्ति की जाएगी (संयुक्त सचिव स्तर से नीचे न हो)।

·         युवा विधिक पेशेवरों की संविदा पर नियुक्ति की जा सकेगी।

·         आवश्यकता अनुसार विशेषज्ञों की नियुक्ति का भी प्रावधान है।

5. मध्यस्थता व पंचनिर्णय को बढ़ावा

·         सभी मंत्रालय विवाद समाधान में ADR (मध्यस्थता, पंचनिर्णय) को प्राथमिकता देंगे।

·         संस्थागत पंचनिर्णय को बढ़ावा मिलेगा; एक पंचनिर्णय पोर्टल भी बनाया जाएगा।

·         सचिव स्तर पर इन मामलों की आवधिक समीक्षा की जाएगी।

 6. मुकदमेबाजी जोखिम का पूर्व मूल्यांकन

·         नई नीतियाँ बनाते समय संभावित कानूनी चुनौतियों का विश्लेषण किया जाएगा ताकि विवाद पहले ही टाला जा सके।

 7. प्रक्रियाओं का सरलीकरण

·         अधीनस्थ विधानों की आवधिक समीक्षा से कानूनी अस्पष्टता, प्रक्रियागत कमियों और संचालन संबंधी समस्याओं को दूर किया जाएगा।

·         सभी दिशा-निर्देशों को एक मास्टर परिपत्र के रूप में विभागीय वेबसाइटों पर प्रकाशित किया जाएगा।

8. शिकायत निवारण और अनुशासन प्रक्रिया

·         कर्मचारी शिकायतों के लिए स्वतंत्र व वरिष्ठ अधिकारी की अध्यक्षता में समीक्षा तंत्र होगा।

·         अनुशासनात्मक कार्यवाहियों में तेजी लाने हेतु सेवानिवृत्त अधिकारियों का पैनल बनाया जाएगा।

 9. समान मामलों का समेकन (Tagging)

·         एक जैसे मुद्दों से जुड़े केस एक ही न्यायालय या पीठ में टैग किए जाएंगे ताकि एकसमान निर्णय हो सकें।

10. विभागीय समन्वय

·         जब एक से अधिक मंत्रालय किसी मुकदमे में पक्ष हों, तो समन्वय आवश्यक होगा। विवाद की स्थिति में विधि विभाग अंतिम निर्णय देगा।

 11. अनावश्यक स्थगन को रोकना

·         दो से अधिक स्थगनों की स्थिति में उसका कारण संबंधित नोडल अधिकारी को देना होगा।

12. LIMBS पोर्टल का उपयोग

·         सभी अदालती मामलों को LIMBS (Legal Information Management & Briefing System) पर अपडेट करना अनिवार्य होगा।

·         केस फीस भुगतान भी इसी पोर्टल से किया जाएगा।

 13. सरकारी हित से जुड़े मामलों की निगरानी

·         जिन मामलों में सरकार प्रत्यक्ष पक्षकार न हो, लेकिन नीति या सार्वजनिक हित जुड़ा हो, वहाँ विधि अधिकारी आवश्यक हस्तक्षेप करेंगे।

 14. मूल कारण विश्लेषण (Root Cause Analysis)

·         महत्वपूर्ण विवादों का कारण जानने हेतु एक टेम्पलेट आधारित विश्लेषण प्रणाली लागू होगी।

15. एकपक्षीय आदेशों पर अपील नहीं

·         सामान्यतः एकपक्षीय अंतरिम आदेशों के खिलाफ अपील नहीं की जाएगी जब तक वह नीति विरोधी न हो। संबंधित न्यायालय में संशोधन का प्रयास किया जाएगा।

 16. कैट/हाईकोर्ट आदेशों पर त्वरित प्रतिक्रिया

·         DOPT की नीति के खिलाफ कोर्ट का कोई आदेश आए तो विभाग बिना पूर्व अनुमति अपील या समीक्षा दाखिल कर सकते हैं।

17. एमनेस्टी योजनाएँ

·         जनहित को प्रभावित न करने वाले नियामकीय विवादों के समाधान हेतु एमनेस्टी योजना लाई जा सकती है।

·         ऐसे विवादों को ADR प्रणाली के माध्यम से सुलझाया जा सकता है।

यह दिशा-निर्देश सरकार की ओर से न्यायिक प्रक्रिया को व्यवस्थित, सुचारू और जवाबदेह बनाने की एक बड़ी पहल है। इससे न केवल अदालती बोझ कम होगा, बल्कि सुशासन, नीति निर्माण और प्रशासनिक पारदर्शिता को भी बल मिलेगा। यह विकसित भारत 2047 की ओर उठाया गया एक ठोस कदम है।

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