निर्मला जैन: हिंदी साहित्य की एक अमर निधि
निर्मला जैन की साहित्यिक यात्रा उनकी आत्मकथा ‘जमाने में हम’ और संस्मरण ‘दिल्ली शहर दर शहर’ जैसी कृतियों से सुगंधित है। इन रचनाओं में उनकी संवेदनशीलता, गहरी अंतर्दृष्टि और दिल्ली की सांस्कृतिक विरासत के प्रति प्रेम झलकता है।

हिंदी साहित्य के आकाश में निर्मला जैन एक ऐसी नक्षत्र थीं, जिनका प्रकाश दशकों तक साहित्य प्रेमियों को आलोकित करता रहा। 28 अक्तूबर 1932 को दिल्ली के एक व्यापारी परिवार में जन्मीं निर्मला जैन का 15 अप्रैल 2025 को 93 वर्ष की आयु में निधन हिंदी जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। वह न केवल एक प्रख्यात लेखिका, आलोचक और अनुवादक थीं, बल्कि एक ऐसी विदुषी थीं, जिन्होंने अपने लेखन और अध्यापन से हिंदी साहित्य को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
निर्मला जैन की साहित्यिक यात्रा उनकी आत्मकथा ‘जमाने में हम’ और संस्मरण ‘दिल्ली शहर दर शहर’ जैसी कृतियों से सुगंधित है। इन रचनाओं में उनकी संवेदनशीलता, गहरी अंतर्दृष्टि और दिल्ली की सांस्कृतिक विरासत के प्रति प्रेम झलकता है। उनकी लेखनी में व्यक्तिगत अनुभव और सामाजिक चेतना का अनूठा संगम दिखाई देता है। वह ऐसी आलोचक थीं, जिन्होंने हिंदी साहित्य में पुरुष-प्रधान आलोचना की परंपरा को चुनौती दी और पाश्चात्य साहित्य के प्रति रूढ़िगत दृष्टिकोण को तोड़कर नई समीक्षा के प्रतिमान स्थापित किए। उनकी कृतियाँ जैसे आधुनिक हिंदी काव्य में रूप-विधाएँ, रस-सिद्धान्त और सौन्दर्यशास्त्र, और हिन्दी आलोचना का दूसरा पाठ हिंदी आलोचना को समृद्ध करने वाली अमूल्य निधि है। इसके अतिरिक्त, महादेवी वर्मा और जैनेन्द्र कुमार के साहित्य को संकलित कर उन्होंने हिंदी साहित्य के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
निर्मला जैन की शैक्षिक यात्रा भी प्रेरणादायी रही। दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.ए., एम.ए., पीएच.डी. और डी.लिट. की उपाधियाँ प्राप्त करने वाली निर्मला जी ने लेडी श्रीराम कॉलेज और दिल्ली विश्वविद्यालय में लंबे समय तक अध्यापन किया। सेवानिवृत्ति के बाद भी वह विशेष आमंत्रण पर दस वर्ष तक विद्यार्थियों को प्रेरित करती रहीं। उनकी विद्वता और शिक्षण शैली ने कई पीढ़ियों को प्रभावित किया।
उनके योगदान को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें साहित्य अकादेमी का अनुवाद पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार, और केंद्रीय हिंदी संस्थान का सुब्रह्मण्यम भारती सम्मान शामिल हैं। ये सम्मान उनकी साहित्यिक प्रतिभा और समर्पण के प्रतीक हैं।
निर्मला जैन की स्मृति को नमन करते हुए हम कह सकते हैं कि वह एक ऐसी दिल्ली वाली थीं, जिन्होंने अपनी लेखनी से न केवल अपनी जन्मभूमि को अमर किया, बल्कि हिंदी साहित्य को वैश्विक पटल पर एक नई पहचान दी। उनका जाना हिंदी साहित्य के लिए एक युग का अंत है, पर उनकी रचनाएँ और विचार हमेशा हमें प्रेरित करती रहेंगी।
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