डॉ. कमल किशोर गोयनका: हिंदी साहित्य के एक युग का अवसान
प्रख्यात साहित्यकार, आलोचक, शोधकर्ता और उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के अप्रतिम मर्मज्ञ डॉ. कमल किशोर गोयनका का 87 वर्ष की आयु में नई दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल में निधन हो गया। उनके निधन से हिंदी साहित्य में एक ऐसी रिक्तता उत्पन्न हुई है, जिसकी पूर्ति असंभव-सी प्रतीत होती है।

हिंदी साहित्य जगत ने 1 अप्रैल 2025 को एक अनमोल रत्न खो दिया। प्रख्यात साहित्यकार, आलोचक, शोधकर्ता और उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के अप्रतिम मर्मज्ञ डॉ. कमल किशोर गोयनका का 87 वर्ष की आयु में नई दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल में निधन हो गया। उनके निधन से हिंदी साहित्य में एक ऐसी रिक्तता उत्पन्न हुई है, जिसकी पूर्ति असंभव-सी प्रतीत होती है।
11 अक्तूबर 1938 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में जन्मे डॉ. गोयनका का जीवन हिंदी साहित्य और विशेष रूप से प्रेमचंद के साहित्य को समर्पित रहा। दिल्ली विश्वविद्यालय में चालीस वर्षों तक हिंदी के प्राध्यापक के रूप में उन्होंने न केवल विद्यार्थियों को शिक्षित किया, बल्कि प्रेमचंद के साहित्य को नए दृष्टिकोणों से समझने और समझाने का अभूतपूर्व कार्य भी किया। प्रेमचंद पर पीएच.डी. और डी.लिट् करने वाले वह पहले शोधार्थी थे। उनकी खोजी दृष्टि ने प्रेमचंद को मार्क्सवादी विचारधारा के संकुचित दायरे से निकालकर भारतीय आत्मा के साहित्यिक शिल्पी के रूप में स्थापित किया। उनकी पुस्तक प्रेमचंद की कहानियों का कालक्रमानुसार अध्ययन के लिए उन्हें 2014 में प्रतिष्ठित व्यास सम्मान से सम्मानित किया गया, जो उनके शोध की गहराई और व्यापकता का प्रमाण है।
डॉ. गोयनका की 130 से अधिक पुस्तकों में से 36 केवल प्रेमचंद पर केंद्रित है। साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित प्रेमचंद कहानी रचनावली (छह खंड) और नया मानसरोवर (आठ खंड) उनके श्रमसाध्य शोध के साक्षी हैं। उन्होंने प्रेमचंद की अज्ञात रचनाओं को खोजकर प्रकाशित किया और गोदान के दुर्लभ प्रथम संस्करण को पुनः प्रकाशित कराकर प्रेमचंद के मूल पाठ को संरक्षित करने का अनुकरणीय प्रयास किया। आलोचकों ने ठीक ही कहा कि प्रेमचंद के पुत्र भी वह कार्य नहीं कर सके, जो गोयनका जी ने कर दिखाया। वह ‘प्रेमचंद के बॉसवेल’ के रूप में विख्यात हुए।
प्रेमचंद के अतिरिक्त, डॉ. गोयनका ने प्रवासी हिंदी साहित्य के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी 12 पुस्तकें इस क्षेत्र में प्रकाशित हुईं, और उन्होंने 40 से अधिक प्रवासी लेखकों की पुस्तकों की भूमिकाएँ लिखीं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर उनकी पुस्तक को नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा पुनः प्रकाशित किया गया, जो उनके व्यापक साहित्यिक अवदान को रेखांकित करता है। केंद्रीय हिंदी संस्थान और मानव संसाधन विकास मंत्रालय में उपाध्यक्ष के रूप में भी उन्होंने हिंदी के प्रचार-प्रसार में महती भूमिका निभाई।
डॉ. गोयनका का व्यक्तित्व संत जैसा था। उन्होंने कई युवाओं की शिक्षा में सहयोग किया और भाषा की शुद्धता व साहित्य में स्पष्टवादिता के प्रति उनकी निष्ठा अनुकरणीय थी। वह हिंदी साहित्य को विश्व मंच पर ले जाने के लिए निरंतर प्रयासरत रहे। मॉरीशस में उनकी प्रेमचंद प्रदर्शनी का उद्घाटन वहाँ के तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा किया गया, जो उनके अंतरराष्ट्रीय प्रभाव का द्योतक है।
उनके निधन पर देश-विदेश के साहित्यकारों ने शोक व्यक्त किया है। साहित्य अकादमी, केंद्रीय हिंदी संस्थान, नागरी प्रचारिणी सभा और अखिल भारतीय साहित्य परिषद जैसे संस्थानों ने श्रद्धांजलि सभाएँ आयोजित कर उनके कृतित्व को याद किया। वह हिंदी साहित्य के एक ऐसे साधक थे, जिन्होंने प्रेमचंद को न केवल जीवित रखा, बल्कि उनकी रचनाओं को नई पीढ़ियों तक पहुँचाने का भगीरथ कार्य किया।
डॉ. कमल किशोर गोयनका हमारे बीच भले ही न रहे हों, किंतु उनकी लेखनी, शोध और विचार हिंदी साहित्य के आकाश में सदा दीप्तिमान रहेंगे। उनके अधूरे कार्यों को पूरा करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। हिंदी साहित्य जगत उन्हें विनम्र श्रद्धासुमन अर्पित करता है।
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