शिक्षारत्न शिक्षक मौसुम मजूमदार की स्मृति में दीवार पत्रिका ‘दीवार का कान’ का प्रकाशन

तमलुक के बंहिचाड़ विपिन शिक्षा निकेतन में शिक्षारत्न मौसुम मजूमदार की 50वीं जयंती पर दीवार पत्रिका ‘दीवार का कान’ का प्रकाशन हुआ। छात्रों, सहकर्मियों और प्रधानाचार्य ने कविताओं, लेखों और चित्रों के माध्यम से अपने प्रिय शिक्षक को याद किया। मौसुम मजूमदार भूगोल में गोल्ड मेडलिस्ट और पीएच.डी. धारक होते हुए भी विद्यालय में पढ़ाने के प्रति समर्पित रहे और अपने जीवन में शिक्षा, संस्कृति और विद्यार्थियों के कल्याण के लिए अनेक योगदान दिए।

Aug 2, 2025 - 10:00
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शिक्षारत्न शिक्षक मौसुम मजूमदार की स्मृति में दीवार पत्रिका ‘दीवार का कान’ का प्रकाशन
दीवार पत्रिका ‘दीवार का कान’ का प्रकाशन

तमलुक (पूर्व मेदिनीपुर) । पूर्व मेदिनीपुर के तमलुक स्थित बंहिचाड़ विपिन शिक्षा निकेतन में दिवंगत शिक्षारत्न मौसुम मजूमदार की 50वीं जयंती के अवसर पर भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई। विद्यालय के प्रांगण में विशेष कार्यक्रम के तहत दीवार का काननामक दीवार पत्रिका का लोकार्पण किया गया, जिसमें छात्रों ने अपने प्रिय शिक्षक को कविता, संस्मरण, कहानी, चित्र और लेख के माध्यम से याद किया।

कार्यक्रम में विद्यालय के प्रधानाचार्य शशांक शेखर घोषाई, सह-शिक्षक, शिक्षा कर्मी और छात्र-छात्राएँ मौजूद रहे। मौसुम मजूमदार के सहकर्मियों ने भी कलम के माध्यम से अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं। कई छात्रों ने पहली बार अपने शिक्षक के बारे में लिखा और गर्व महसूस किया।

मौसुम मजूमदार न केवल भूगोल विषय में स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर गोल्ड मेडलिस्ट थे, बल्कि 'लक्ष्मीबाला सामंत स्मृति पुरस्कार' से भी सम्मानित हुए। शांतिनिकेतन स्थित विश्वभारती विश्वविद्यालय से 'जंगलमहल के परिवर्तित पर्यावरण का आदिवासी जीवन पर प्रभाव' विषय पर पीएच.डी. करने के बाद भी उन्होंने कॉलेज या विश्वविद्यालय के बजाय विद्यालय में पढ़ाना चुना।

स्कूल सर्विस कमीशन में पश्चिमांचल शाखा में प्रथम स्थान प्राप्त करने के बाद उन्होंने तमलुक के बाहरी क्षेत्र में स्थित इस साधारण विद्यालय को अपनी सेवा के लिए चुना। उन्होंने विद्यालय के विकास में अपना जीवन समर्पित किया, अपने पिता और भाई की स्मृति में दो कक्ष बनाए, विद्यालय परिसर में ईश्वरचंद्र विद्यासागर और ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की मूर्तियाँ स्थापित कीं, और बीमार छात्रों के लिए प्राथमिक उपचार हेतु मरीज का बिस्तर दान किया।

इस अवसर पर विद्यालय की छात्रा बर्णिशा राउत ने कहा, "सर ने हमें दीवार पत्रिका पर लिखना सिखाया था। आज उन्हीं के बारे में लिखकर अच्छा लग रहा है, लेकिन अफसोस कि उन्हें दिखा नहीं सके।" प्रधानाचार्य शशांक शेखर घोषाई ने कहा, "मौसुम बाबू हमारे विद्यालय के स्तंभ थे। शिक्षा और संस्कृति में जो परिवर्तन आया, वह उन्हीं के प्रयासों का परिणाम था। आज हम दीवार पत्रिका के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर स्वयं को धन्य महसूस कर रहे हैं।"

उनकी जन्मस्थली पूर्व मेदिनीपुर के आसतारा और पश्चिम मेदिनीपुर के मिदनापुर शहर में उनकी स्थापित संस्था मेदिनीपुर क्विज सेंटर सोशल वेलफेयर सोसाइटी की ओर से पलाश और बकुल के पौधे लगाए गए, जिससे उनकी स्मृति और कार्य जीवित रहें।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I