रंगभूमि के सौ वर्ष : सूरदास की लड़ाई आज भी प्रासंगिक — कोलकाता में संगोष्ठी

पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज की साहित्य संस्कृति उप-समिति ने प्रेमचंद की 145वीं जयंती और उनके उपन्यास 'रंगभूमि' के 100 वर्ष पूरे होने पर कोलकाता में संगोष्ठी आयोजित की। अध्यक्ष केशव भट्टड़, वक्ताओं राजीव पांडेय और श्रीप्रकाश जायसवाल ने सूरदास के संघर्ष, उपन्यास की सामाजिक-राजनीतिक प्रासंगिकता, धार्मिक संवाद और सत्ता के चरित्र पर चर्चा की। वक्ताओं ने कहा कि सौ साल पहले उठाए गए प्रश्न आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। कार्यक्रम का संचालन अभिषेक कोहार ने और धन्यवाद ज्ञापन सुमित जायसवाल ने किया, जबकि श्रेया जायसवाल ने मीडिया को जानकारी दी।

Aug 2, 2025 - 09:52
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रंगभूमि के सौ वर्ष : सूरदास की लड़ाई आज भी प्रासंगिक — कोलकाता में संगोष्ठी
संगोष्ठी में मंचासीन अतिथि

कोलकाता, 1 अगस्त। पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज की साहित्य संस्कृति उप-समिति ने प्रेमचंद की 145वीं जयंती एवं उनके कालजयी उपन्यास 'रंगभूमि' के प्रकाशन के 100 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर प्रेमचंद लाइब्रेरी, कोलकाता में संगोष्ठी का आयोजन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्य संस्कृति उप-समिति के अध्यक्ष केशव भट्टड़ ने की, जबकि संचालन संयुक्त संयोजक अभिषेक कोहार ने किया।

राजीव पांडेय ने कहा कि सूरदास की सबसे बड़ी शक्ति उसका निर्भय होना है। उसका संघर्ष व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं बल्कि समाजहित में है। 'रंगभूमि' के पात्र आज भी हमारे सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में जीवंत प्रतीत होते हैं। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद ने सौ साल पहले धर्म और सत्ता के जिस स्वरूप पर सवाल उठाए, आज के दौर में ऐसे विचारों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।

श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा कि यह उपन्यास आज भी वैश्विक समस्याओं का सटीक चित्रण करता है।

अध्यक्ष केशव भट्टड़ ने कहा कि हाशिए के व्यक्ति को नायक बनाना प्रेमचंद की विशेषता है। 'रंगभूमि' शब्द जीवन की विविधता और नाटकीयता का प्रतीक है। उन्होंने उल्लेख किया कि 'गोदान' का मंचन हुआ है लेकिन 'रंगभूमि' का मंचन अभी तक नहीं हुआ। उपन्यास में हिंदू, मुस्लिम और ईसाई समुदाय के बीच संवाद है, कट्टरता नहीं। सौ साल पहले और आज, सत्ता का चरित्र और जनता की स्थिति लगभग समान है।

धन्यवाद ज्ञापन करते हुए सुमित जायसवाल ने कहा कि सूरदास अपनी जमीन के लिए जीवनभर संघर्ष करता है क्योंकि वह इसे अपने पुरखों की धरोहर मानता है। यह पात्र भारतीय किसान की रचना और निर्माण की अदम्य इच्छा का प्रतीक है।

मीडिया प्रभारी श्रेया जायसवाल ने बताया कि इस संगोष्ठी का उद्देश्य 'रंगभूमि' की ऐतिहासिक, सामाजिक और साहित्यिक प्रासंगिकता पर नए सिरे से चर्चा करना था।

 

 

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I