विद्यासागर विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान परंपरा और पारंपरिक उपचार पद्धति पर राष्ट्रीय कार्यशाला संपन्न
विद्यासागर विश्वविद्यालय, मिदनापुर में 1–2 अगस्त 2025 को ‘Empirical Research Method for Unique Healing Practice of Indian Knowledge System’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन हुआ। इसमें भारतीय पारंपरिक उपचार पद्धति, औषधीय ज्ञान, मंत्र-चिकित्सा, फॉक हीलिंग, आयुर्वेद और भारतीय दर्शन के संदर्भ में अनुभवजन्य शोध की संभावनाओं पर विशेषज्ञों ने विचार रखे। विभिन्न सत्रों में वक्ताओं ने ग्रामीण और आदिवासी चिकित्सा परंपराओं, मौखिक ज्ञान, जड़ी-बूटी संरक्षण, तथा आधुनिक संदर्भों में इन पद्धतियों के पुनर्स्थापन की आवश्यकता पर जोर दिया।

मिदनापुर, 2 अगस्त 2025 : विद्यासागर विश्वविद्यालय के बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन विभाग, डिपार्टमेंट ऑफ हिस्ट्री एंड एन्सिएंट इंडियन कल्चर (फैकल्टी ऑफ ह्यूमन एंड सोशल साइंस), डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय, और डिपार्टमेंट ऑफ क्रियाशरीर (फैकल्टी ऑफ आयुर्वेद, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय) के संयुक्त तत्वावधान में तथा भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) के सहयोग से “Empirical Research Method for Unique Healing Practice of Indian Knowledge System” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।
उद्घाटन सत्र
कार्यक्रम का उद्घाटन माननीय कुलपति प्रो. दीपक कुमार कर ने किया। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों की सक्रिय भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि भारतीय ज्ञान परंपरा के अनछुए पहलुओं में व्यापक शोध की आवश्यकता और संभावनाएं मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि यूनिक हीलिंग मेथड पर आयोजित यह कार्यशाला न केवल ज्ञान के क्षेत्र में, बल्कि मानसिक, भौतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी उपयोगी सिद्ध हो सकती है।
कला एवं वाणिज्य विभाग के डीन प्रो. अरिंदम गुप्ता ने भारतीय ज्ञान परंपरा के जरिए ऐसे विषयों की खोज को एक बड़ी उपलब्धि बताते हुए कहा कि आधुनिक जीवन और पर्यावरणीय संकटों के दौर में इस तरह के शोध और अध्ययन के बहुआयामी लाभ हो सकते हैं।
कुलसचिव डॉ. जयंत किशोर नंदी ने कार्यशाला और प्रोजेक्ट में शामिल सभी प्रतिभागियों को बधाई दी।
प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. सुदीन बाग ने स्वागत भाषण में सभी प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया। उद्घाटन सत्र का संयोजन डॉ. देवाशीष विश्वास ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन प्रो. तारकनाथ साहू ने दिया।
पहला दिन – विचार और विमर्श
परिचय सत्र
प्रो. बिना सेंगर ने पारंपरिक हीलिंग की सीमाओं को देखते हुए दक्षिणी भारत और विंध्याचल क्षेत्र के संदर्भ में अपने विचार रखे। उन्होंने जड़ी-बूटी, मंत्र और फॉक हीलिंग की परंपराओं पर चर्चा की।
सत्र की अध्यक्षता प्रो. सुष्मिता बसु मजुमदार ने की, और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. दीपा बनर्जी ने प्रस्तुत किया।
प्रथम सत्र
डॉ. सुमिता बसु मजूमदार ने परंपरागत उपचार में मौखिक परंपरा की अहमियत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि परंपरागत चिकित्सकों के पास व्यावहारिक ज्ञान तो होता है, लेकिन सिद्धांत की समझ सीमित होती है। भारतीय जीवन पद्धति में वनस्पतियों का उपयोग प्राचीन काल से होता आया है।
प्रो. देवजानी दास ने मिदनापुर और पुरुलिया के पारंपरिक चिकित्सकों – सोखा, ओझा, गुन्नी पर शोध आधारित प्रस्तुति दी, जिसमें उन्होंने विश्वास, आस्था और संचार को केंद्रीय बिंदु माना। उन्होंने इसके सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं पर भी प्रकाश डाला।
सत्र की अध्यक्षता डॉ. मानिक कुमार ने की और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सुदीन कुमार ने दिया।
द्वितीय सत्र
डॉ. मानिक कुमार ने पारंपरिक हीलिंग को आधुनिक आयुर्वेदिक संस्थाओं में समाहित करने की संभावनाओं पर विचार रखा।
प्रो. ऋचा चोपड़ा ने सनातन दर्शन, उपनिषद और पतंजलि को आधार बनाकर इंडियन नॉलेज सिस्टम की व्याख्या की, और पारंपरिक हीलिंग को अध्यात्म से जोड़कर प्रस्तुत किया।
सत्र की अध्यक्षता प्रो. विनिश कुमार कथुरिया ने की और संयोजन प्रो. किशोर पटवर्धन ने किया।
तृतीय सत्र
लखन राम जंगली ने भारतीय उपचार पद्धतियों की प्रमाणिकता और पारंपरिक औषधियों-मंत्रों की भूमिका पर चर्चा की।
जगत नारायण विश्वकर्मा ने ग्रामीण क्षेत्रों में वैद्य परंपरा के क्षरण, महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियों के लुप्त होने, तथा आदिवासी विस्थापन की समस्या पर प्रकाश डाला।
सत्र की अध्यक्षता डॉ. देवजानी दास ने की और संयोजन डॉ. बिना सेंगर ने किया।
दूसरा दिन – शोध और प्रासंगिकता
दूसरे दिन पारंपरिक चिकित्सा की अध्ययन पद्धति, कार्यप्रणाली और प्रासंगिकता पर केंद्रित सत्र आयोजित हुए।
प्रो. सुमन चक्रवर्ती, प्रो. मनोज कुमार सिंह, प्रो. विनिश कुमार काथुरिया, प्रो. पिनाकी दास ने विभिन्न दृष्टिकोणों से पारंपरिक चिकित्सा और भारतीय ज्ञान परंपरा पर विचार रखा।
ऑनलाइन सत्र में डॉ. नवीन अतल और डॉ. दीपक छाबड़ा ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए।
इन सत्रों की अध्यक्षता क्रमशः प्रो. तारकनाथ साहू, प्रो. देवाशीष विश्वास और डॉ. दीपा बनर्जी ने की।
कार्यक्रम का संचालन एवं संयोजन डॉ. सुदीन बाग, प्रो. किशोर पटवर्धन और डॉ. मानिक कुमार ने किया।
समापन सत्र
समापन सत्र की अध्यक्षता प्रो. विनिश कुमार काथुरिया ने की।
धन्यवाद ज्ञापन प्रो. बिना सेंगर ने दिया।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं, शोधार्थियों और स्थानीय स्रोताओं की सक्रिय भागीदारी रही।
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