राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जयंती: खड़ी बोली के शिल्पी, राष्ट्र-जागरण के कवि

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त (जन्म: 3 अगस्त 1886) हिंदी की खड़ी बोली को साहित्यिक गरिमा देने वाले युगपुरुष थे। ‘दद्दा’ के नाम से प्रसिद्ध गुप्तजी ने कविता को राष्ट्रीय जागरण, सामाजिक सुधार और मानवीय करुणा का माध्यम बनाया। उनकी प्रमुख कृतियों में भारत-भारती, साकेत, यशोधरा, जयद्रथ वध और काबा और कर्बला शामिल हैं। उनकी भाषा परिष्कृत, संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली थी, जिसमें अलंकारों और रसों का संतुलित प्रयोग मिलता है। गुप्तजी के काव्य में गांधीवाद, देशप्रेम, नारी-श्रद्धा और मानवीय मूल्यों की गहरी छाप है।

Aug 3, 2025 - 14:30
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राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जयंती: खड़ी बोली के शिल्पी, राष्ट्र-जागरण के कवि
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जयंती विशेष

3 अगस्त भारतीय साहित्य के लिए स्मरणीय दिन है। इस तिथि को 1886 में उत्तर प्रदेश के चिरगाँव (झांसी) में जन्मे मैथिलीशरण गुप्त हिंदी साहित्य की वह विभूति हैं जिन्होंने खड़ी बोली को काव्य की प्रतिष्ठित भाषा बनाया। दद्दाके नाम से जनप्रिय गुप्तजी को 1952 में राष्ट्रकविकी उपाधि मिली। उनका साहित्य राष्ट्रीय चेतना, सामाजिक सुधार और मानवीय करुणा का जीवंत दस्तावेज है।

 जीवन और प्रारंभिक साहित्यिक परिचय

गुप्तजी का जन्म एक साहित्यिक वातावरण में हुआ। उनके पिता सेठ रामचरण गुप्त स्वयं साहित्य-प्रेमी थे और घर पर कवि-समाज के आयोजन होते रहते थे। प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई, लेकिन अंग्रेजी शिक्षा की अपेक्षा उन्हें संस्कृत और हिंदी साहित्य में गहरी रुचि रही।

उनके गुरु महावीर प्रसाद द्विवेदी के मार्गदर्शन में उनकी काव्य-प्रतिभा निखरी। सरस्वतीपत्रिका में प्रकाशित रचनाओं ने उन्हें हिंदी जगत में पहचान दिलाई।

 साहित्यिक यात्रा और कृतियाँ

मैथिलीशरण गुप्त की सृजन-यात्रा रंग में भंग’ (1909) से शुरू होती है, जो हास्य-व्यंग्य की धारा में थी, लेकिन शीघ्र ही उनका रुझान राष्ट्रीय और ऐतिहासिक विषयों की ओर मुड़ गया।

उनकी प्रमुख कृतियाँ

 भारत-भारती (1912)स्वतंत्रता आंदोलन का काव्य-घोष, जिसने जनमानस में स्वदेशाभिमान की आग प्रज्वलित की।

 जयद्रथ वध महाभारत प्रसंग पर आधारित वीर-रसप्रधान काव्य।

 साकेत रामायण की उपेक्षित नायिका उर्मिलाके त्याग और प्रेम की महागाथा।

 यशोधरा बुद्ध की पत्नी के दृष्टिकोण से विरह और मानवीय पीड़ा का करुण चित्रण।

 काबा और कर्बला धार्मिक सहिष्णुता और मानवीय एकता का सन्देश।

 पंचवटी, नहुष, झंकार, द्वापर, स्वदेश-संगीत, भारतोदय विविध विषयों पर रचित काव्य जिनमें इतिहास, पौराणिकता और समकालीनता का संगम है।

 विचारधारा और दर्शन

गुप्तजी के काव्य में तीन प्रमुख विचारधाराएँ अंतर्निहित हैं

1. राष्ट्रीयता हम कौन थे, क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभीजैसी पंक्तियाँ आत्ममंथन और स्वदेश-प्रेम का उद्घोष हैं।

2. गांधीवाद और सामाजिक सुधार अहिंसा, सत्य, स्त्री-शिक्षा, अस्पृश्यता-निवारण जैसे मुद्दों को उन्होंने साहित्य में प्रमुखता दी।

3. मानवीय करुणा यशोधराऔर साकेतमें त्याग, विरह और संवेदनाओं की उच्चतम अभिव्यक्ति मिलती है।

 भाषा और शैली का मूल्यांकन

गुप्तजी की भाषा परिष्कृत, संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है।

 शब्द-संपदा संस्कृत के तत्सम शब्दों की सघनता, साथ ही सहज मुहावरों का प्रयोग।

 अलंकार उपमा, रूपक, अनुप्रास और मानवीकरण के उदाहरण भरपूर।

 रस वीर, करुण और शांत रस का अद्भुत संतुलन।

 प्रसाद गुण सहज, सरल और प्रभावपूर्ण प्रवाह।

 नारी दृष्टि और साहित्य में योगदान

गुप्तजी ने नारी के चरित्र को आदर्शवाद और मानवीय यथार्थ के सम्मिश्रण से चित्रित किया। साकेतकी उर्मिला, ‘यशोधराकी पीड़ा, ‘वीरांगनाकी वीरताये सभी चरित्र नारी के त्याग, संघर्ष और स्वाभिमान के प्रतीक हैं।

 आज के समय में प्रासंगिकता

आज जब साहित्य का बड़ा हिस्सा तात्कालिक लोकप्रियता और उपभोक्तावादी दृष्टिकोण की ओर झुक रहा है, गुप्तजी की रचनाएँ हमें याद दिलाती हैं कि साहित्य का मूल उद्देश्य लोकजागरण, नैतिक चेतना और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण है।

उनकी यह पंक्ति

"नर हो, न निराश करो मन को..."

आज भी कठिनाइयों में संबल देती है।

 चयनित प्रेरक पंक्तियाँ

 हम कौन थे, क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी,

आओ विचारें आज मिलकर ये समस्याएँ सभी।

 नर हो, न निराश करो मन को,

कुछ काम करो, कुछ काम करो।

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का साहित्य भारतीयता का घोष, राष्ट्रीय चेतना का उद्घोष और मानवीय करुणा का अनमोल भंडार है। उनकी जयंती केवल श्रद्धांजलि का अवसर नहीं, बल्कि उस विचारधारा का पुनः स्मरण है जो भाषा को जनकल्याण का माध्यम बनाती है। नई पीढ़ी के लिए उनका साहित्य प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्रोत है, जो बताता है कि कविता केवल कलात्मकता नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र के उत्थान का शक्तिशाली साधन है।

 

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I