हाईकोर्ट गंभीर: पीआईएल वापसी के लिए हमला, आरोपी तलब; फतेहपुर एसपी से माँगा हलफनामा
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फतेहपुर जिले में एक जनहित याचिका (पीआईएल) वापस लेने की धमकी और हमले के मामले को बेहद गंभीरता से लिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अदालत में जाने से रोकना, धमकाना या याची पर हमला करना न्यायिक व्यवस्था पर सीधा हमला है। इस मामले में हमले के आरोपी को कोर्ट ने तलब कर लिया है। साथ ही, केस की जांच में एसएचओ के हेरफेर पर नाराजगी जताते हुए एसपी फतेहपुर से सशक्त हलफनामा भी माँगा गया है। कोर्ट ने डीएम और एसपी दोनों को तीखी फटकार लगाई कि वे भ्रम में न रहें कि अदालती गरिमा उनके हाथों में है, और पूछा है कि उनके विरुद्ध कार्रवाई क्यों न की जाए। यह मामला सार्वजनिक भूखंडों व खेल मैदान पर अवैध अतिक्रमण से जुड़े पीआईएल से सम्बंधित है, जिसमें याची और उसके परिवार को केस वापस लेने के लिए धमकी दी गई थी।

फतेहपुर जिले में सरकारी भूमि और अवैध अतिक्रमण के विरुद्ध दायर की गई जनहित याचिका (पीआईएल) के बाद याची और उसके परिवार पर केस वापस लेने के लिए हमला किया गया। आरोप है कि याची सत्यम त्रिपाठी ने सार्वजनिक पार्क/खेल मैदान पर अवैध कब्जा और पेड़ों की कटान का मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में उठाया था। इसके विरोध में गांव के प्रभावशाली लोगों ने, कथित तौर पर पुलिस की मिलीभगत से, याची और उसके परिवार को डराने और हमले के जरिए पीछे हटाने का प्रयास किया। इस दौरान पीड़ित को जान से मारने की धमकियां भी दी गईं।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा कि किसी नागरिक को न्यायालय जाने से रोकना, धमकी देना या हमला करना न केवल व्यक्ति के अधिकारों का हनन है, बल्कि यह भारत के न्यायिक तंत्र के सम्मान और स्वतंत्रता पर भी सीधा हमला है। अदालत ने इस कृत्य को गंभीर आपराधिक अवमानना करार दिया और कहा कि दोषी पाए जाने पर सख्त दंड दिया जाएगा।
आरोपी को कोर्ट ने तलब किया
हमले के आरोपी को हाईकोर्ट ने बतौर आरोपी तलब किया है। इसके पीछे अदालत की मंशा यह है कि पीआईएल वापस लेने के दबाव के ऐसे प्रयासों को लेकर न्यायपालिका कठोरतम रुख अपनाएगी और किसी भी साक्ष्य या गवाह को डराने-धमकाने की प्रवृत्ति को बर्दाश्त नहीं करेगी।
पुलिस कार्रवाई और हेरफेर पर अदालत की प्रतिक्रिया
याची की शिकायत थी कि पुलिस ने मामले में ठीक से कार्रवाई नहीं की और एसएचओ स्तर पर जांच एवं रिपोर्टिंग में हेरफेर किया गया। इसी वजह से हाईकोर्ट ने केस की निष्पक्ष जांच और उचित कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए एसपी फतेहपुर से विस्तृत हलफनामा तलब किया है। अदालत ने साफ चेतावनी दी है कि यदि पुलिस प्रशासन या अधिकारी अदालत को mislead करने की कोशिश करेंगे, तो सीधे उन पर अवमानना की कार्रवाई की जाएगी।
कोर्ट ने डीएम और एसपी दोनों को निर्देश दिया कि वे खुद को अदालती गरिमा के नियंत्रणकर्ता के रूप में न समझें अदालत की गरिमा या प्रतिष्ठा उनके अधीन नहीं है। अदालत ने पूछा है कि क्यों न उनके खिलाफ भी कार्रवाई शुरू की जाए।
अदालत द्वारा पुलिस व प्रशासन को निर्देश
- पुलिस अधिकारी (एसएचओ) और प्रशासनिक अफसर (डीएम, एसपी) को अगली तिथि पर पेशी के आदेश।
- पुलिस जांच के सारे दस्तावेज, रिकॉर्ड और बयान प्रस्तुत करने के निर्देश।
- पीड़ित याची की सुरक्षा सुनिश्चित करने के निर्देश।
- याची/गवाहों को डराने या धमकाने वालों पर त्वरित और निष्पक्ष कार्रवाई।
मीडिया और सामाजिक जवाबदेही
कोर्ट ने साफ किया कि ऐसे संवेदनशील मामलों की रिपोर्टिंग बेहद जिम्मेदारी और निष्पक्षता के साथ होनी चाहिए। अनावश्यक सनसनी या पक्षपाती सूचना मामले को भटकाती है और न्याय की प्रक्रिया पर असर डालती है। मीडिया रिपोर्टिंग तथ्यों, आदेशों और अदालती निर्देशों पर आधारित हो इसकी आवश्यकता पर भी कोर्ट ने ज़ोर दिया।
पूरे प्रकरण का महत्व
यह मामला देश में पीआईएल की उपयोगिता, सामाजिक जवाबदेही और न्यायप्रणाली की स्वतंत्रता पर बड़ा संदेश देता है।
- कोर्ट का साफ संदेश है कि जब-जब किसी पीड़ित या याची को धमकाया या डराया जाता है, न्यायव्यवस्था उसके साथ पूरी ताकत से खड़ी है।
- प्रशासन और पुलिस की निष्पक्षता अपरिहार्य है; हलफनामे व जांच में पारदर्शिता होनी ज़रूरी है।
- मीडिया के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है कि वह तथ्य, निष्पक्षता और संयम के साथ रिपोर्टिंग करे।
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