दिल्ली पुलिस ने मांगा ‘बांग्लादेशी भाषा’ का अनुवाद – संविधान का घोर अपमान: पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज का आरोप

दिल्ली पुलिस द्वारा आठ संदिग्ध बांग्लादेशी नागरिकों को गिरफ्तार कर उनके दस्तावेजों को 'बांग्लादेशी भाषा' में बताया गया और अनुवाद के लिए बंग भवन को पत्र भेजा गया। इस पर पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज ने कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में "बांग्लादेशी" नामक कोई भाषा नहीं है। यह संविधान और भाषायी गरिमा का अपमान है। समाज ने इसे हिंदी और बांग्ला भाषाओं के बीच वैमनस्य पैदा करने की कोशिश बताते हुए देशवासियों से भाषा और संविधान की रक्षा के लिए प्रतिवाद का आह्वान किया है।

Aug 4, 2025 - 16:29
Aug 4, 2025 - 18:40
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दिल्ली पुलिस ने मांगा ‘बांग्लादेशी भाषा’ का अनुवाद – संविधान का घोर अपमान: पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज का आरोप
दिल्ली पुलिस का पत्र

गिरफ्तार विदेशी नागरिकों के दस्तावेजों को ‘बांग्लादेशी भाषा’ में बताकर दिल्ली पुलिस ने बंग भवन से मांगा अनुवाद, समाज ने कहा – यह भारतीय भाषाओं और संविधान दोनों का अपमान है।

नई दिल्ली | 04 अगस्त 2025: हाल ही में दिल्ली पुलिस ने कथित तौर पर आठ बांग्लादेशी नागरिकों को अवैध रूप से भारत में रहने के आरोप में हिरासत में लिया। गिरफ्तारी के बाद पुलिस द्वारा जब्त दस्तावेजों को “बांग्लादेशी भाषा” में बताया गया और अनुवाद हेतु बंग भवन (बांग्ला अकादमी, नई दिल्ली) को पत्र भेजा गया। इस पूरे घटनाक्रम पर पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची का स्पष्ट अपमान बताया है।

क्या है पूरा मामला?

दिल्ली पुलिस ने संदिग्ध बांग्लादेशी नागरिकों को पकड़ने के बाद जो दस्तावेज बरामद किए, उन्हें 'बांग्लादेशी भाषा' में बताया और उनका अनुवाद कराने के लिए बंग भवन के ऑफिसर इन चार्ज को पत्र लिखा। जबकि भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में ‘बांग्लादेशी’ नामक कोई भाषा नहीं है। भारत में बांग्ला (Bangla) एक मान्यता प्राप्त संविधानिक भाषा है, जिसका व्यापक साहित्य, पत्रकारिता, प्रशासनिक और सांस्कृतिक इतिहास है।

संविधान और भाषा पर हमला: समाज की आपत्ति

पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज ने इस घटनाक्रम की तीखी आलोचना करते हुए कहा है कि यह केवल प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि संविधान और भारत की भाषाई गरिमा पर हमला है। संगठन के मुताबिक, ‘बांग्लादेशी भाषा’ कहकर एक पूरी भाषायी संस्कृति को विदेशी ठहराने की कोशिश की गई है, जो बेहद चिंताजनक और खतरनाक संकेत है।

भाषा नहीं, राष्ट्र की पहचान का प्रश्न

हेमंत प्रभाकर (अध्यक्ष) ने कहा: दिल्ली पुलिस का यह पत्र केवल बौद्धिक अज्ञानता नहीं, बल्कि संवैधानिक मान्यताओं की अनदेखी है। बांग्ला कोई ‘विदेशी भाषा’ नहीं, बल्कि भारतीय संविधान में मान्यता प्राप्त एक गौरवशाली भाषा है। इसे ‘बांग्लादेशी भाषा’ कहकर प्रस्तुत करना, हमारे राष्ट्र के भाषायी गौरव को लांछित करना है।”

पूनम कौर (कार्यकारी महासचिव) ने कहा:आज बांग्ला है, कल हिंदी होगी। इस प्रकार की प्रवृत्तियाँ भाषाओं को लड़ाकर भारत को बाँटने का काम कर रही हैं। हम इसे सफल नहीं होने देंगे।”

श्रेया जायसवाल (मीडिया प्रभारी) ने कहा:मीडिया की जिम्मेदारी बनती है कि वह इस संवैधानिक अपमान को उजागर करे। ये केवल एक अनुवाद की मांग नहीं है, ये भारतीय भाषाओं की आत्मा को अनदेखा करने की साजिश है।”

भाषायी एकता में दरार डालने की कोशिश

यह घटना ऐसे समय में सामने आई है जब देश भर में भाषायी पहचान को लेकर जागरूकता और सम्मान बढ़ रहा है। बांग्ला और हिंदी दोनों को विश्व की शीर्ष 7 सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में स्थान प्राप्त है। इन दो भाषाओं के बीच कटुता या भेद का कोई ऐतिहासिक या सामाजिक आधार नहीं रहा है। ऐसे में दिल्ली पुलिस जैसी संस्था द्वारा “बांग्लादेशी भाषा” जैसा शब्द प्रयोग करना कई सवाल खड़े करता है।

देशवासियों से प्रतिवाद का आह्वान

पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज ने सभी नागरिकों, भाषाविदों, साहित्यकारों और मीडिया संस्थानों से आग्रह किया है कि वे इस मुद्दे पर चुप न रहें। यह सिर्फ बांग्ला या हिंदी की लड़ाई नहीं, यह भारतीय भाषाओं की गरिमा और हमारे संविधान की आत्मा की रक्षा का प्रश्न है।

जब एक संवैधानिक भाषा को 'विदेशी' ठहराया जाता है, तो केवल शब्दों का नहीं, पूरे राष्ट्र की संवेदनशीलता का अपमान होता है। पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज की यह चेतावनी एक अलार्म है – एक चेतावनी कि यदि भाषाओं को समझने और सम्मान देने की आदत नहीं डाली गई, तो भारतीयता का ताना-बाना कमजोर हो सकता है।

 

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तारकेश कुमार ओझा तारकेश कुमार ओझा पिछले तीन दशकों से पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में सक्रिय पत्रकार हैं। कोलकाता से प्रकाशित दैनिक विश्वमित्र से पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले ओझा पऱख, महानगर, चमकता आईना, प्रभात खबर और वर्तमान में दैनिक जागरण में वरिष्ठ उपसंपादक के रूप में कार्यरत हैं। आप समसामयिक विषयों, व्यंग्य, कविता और कहानियों के साथ-साथ ब्लॉग लेखन में भी सक्रिय हैं। माओवादी आंदोलन से लेकर महेंद्र सिंह धोनी के संघर्षपूर्ण दिनों तक, आपकी कई रिपोर्टें चर्चा में रही हैं। आपको मटुकधारी सिंह हिंदी पत्रकारिता पुरस्कार, लीलावती स्मृति सम्मान सहित कई बेस्ट ब्लॉगर अवार्ड प्राप्त हो चुके हैं।