क्षितिज पर एक नई शुरुआत: UP पुलिस में राजीव कृष्ण की कार्रवाई की गूँज
उत्तर प्रदेश की पुलिस व्यवस्था लंबे समय से आरोपों के गिरफ्त में थी – पुलिस निरंकुशता, गैर-जवाबदेही और दबंगई की छवि इसके साथ गहराई से जुड़ गई थी। पूर्व DGP प्रशांत कुमार के शासन में उत्तर प्रदेश पुलिस प्रशासन में यह व्यवस्था ‘निरंकुशता ही मौलिक कर्तव्य’ बन चुकी थी, जहाँ विधि के निदेशों का उल्लंघन चौकी प्रभारी, थाना प्रभारी, सहायक पुलिस आयुक्त मिलकर उपायुक्त के निर्देशन में अपराधियों के साथ गठजोड़ करके पूरी जिम्मेदारी से कर रहे थे। इसका जीता जागता उदाहरण प्रयागराज के हंडिया थानान्तर्गत गाँव जराँव में 13 अगस्त व 26 अगस्त 2024 की घटना है।

उत्तर प्रदेश की पुलिस व्यवस्था लंबे समय से ‘निरंकुशता, ग़ैर-जवाबदेही और दबंगई’ के आरोपों से घिरी रही है। पूर्व DGP प्रशांत कुमार के कार्यकाल में अकसर #PoliceRaj के स्वर सुनाई देते रहे, जिसमें पुलिस का सशक्त हस्तक्षेप नागरिकों के लिए डर का पर्याय बन गया। लेकिन नए कार्यवाहक DGP राजीव कृष्ण इस विरासत को तोड़ने की दिशा में पहला कारगर कदम उठाते दिखाई दे रहे हैं।
तीन निर्णायक मामले, तीन संकेतक
1. कौशांबी : किसान रामबाबू तिवारी आत्महत्या
किसान रामबाबू ने खुदकुशी से पहले स्पष्ट लिखा कि उनके बेटे को झूठे अपराधों में फंसाया गया था, जिसमें ग्राम प्रधान और पुलिस की मिलीभगत थी। इसके बाद पुलिस ने SHO सहित दो SIs को निलंबित किया, FIR दर्ज की और ग्राम प्रधान पर ₹25,000 का इनाम घोषित किया।
Samajwadi Party अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि दो DyCM अपने-अपने जाति समूहों को समर्थन दे रहे - यह मामला राज्य की सत्ता संघर्ष की सांस्कृतिक विभाजन की मिसाल है।
2. कानपुर : जीतू निषाद की आत्महत्या
42 वर्षीय Jeetu Nishad ने कथित तौर पर पुलिस और ससुराल के उत्पीड़न के कारण फांसी लगाई। आरोप है कि पुलिस ने ₹15,000 पैसे वसूले और मारपीट की। स्थानीय MLA की शिकायत पर DCP ने एक SI और एक हेड कांस्टेबल को निलंबित किया; गंभीर धाराओं में FIR दर्ज की गई है।
3. लखनऊ : मॉडल चायवाली सिमरन का मामला
लखनऊ में चौकी इंचार्ज और एक सिपाही के ख़िलाफ़ छेड़छाड़ के आरोप लगे, मामले में उन्हें लाइनहाज़िर करके FIR दर्ज की गई (यूज़र सूचना)।
राजीव कृष्ण की कार्रवाई – क्या है मायने?
पहलू महत्व और विश्लेषण
तात्कालिक प्रतिक्रिया हर मामले में तुरंत निलंबन और FIR-यह संकेत देता है कि पुलिस
राजनीतिक दबाव के बावजूद निष्पक्षता कौशांबी में जातीय-सत्ता-संघर्ष का माहौल था,
फिर भी कार्रवाई की गई।
छोटी उम्मीद, बड़े संकेत हालाँकि, यह शुरुआत है, लेकिन राजीव कृष्ण ने स्पष्ट संकेत दिया कि
अब पुलिस की निरंकुशता की सत्ता को चुनौती दी जा रही है।
जोखिम और आगे की चुनौतियाँ
क्या ये केवल ‘टोकन कार्रवाई’ हैं?
शुरुआत भले ही उत्साहजनक हो, लेकिन वास्तविक परिवर्तन तब तक नहीं आएगा जब तक सभी मुकदमों की पारदर्शी तरीके से सुनवाई न हो।
जवाबदेही तंत्र की आवश्यकता
DGP ऑफिस को नियमित विस्तृत केस ऑडिट और परिणाम सार्वजनिक करना चाहिए - ना कि सिर्फ निलंबन तक सीमित रहना।
मीडिया और नागरिक सहभागिता
इन केसों की प्रगति और निष्कर्षों को आम जनता तक पहुँचाना आवश्यक है। ताकि, कार्रवाई की 'गंभीरता' को लोग जान सकें।
समकालीन संदर्भ में संदेश
राजीव कृष्ण ने अपने कार्यकाल की शुरुआती चुनौतियों में स्पष्ट संकेत दिया कि पुलिस छवि सुधार की दिशा में वह गंभीर हैं। तीनों-तीनों मामलों में कार्रवाई का अर्थ सिर्फ ‘न्याय’ नहीं, बल्कि ‘सत्ता के साथ संवाद’ की नई शुरुआत भी है। अगर अगला कदम इन जाँचों को निष्पक्ष तरीके से लड़ना, मीडिया में समय-समय पर अपडेट करना और दोषियों को सजा दिलाना हो, तो यह दिन यूपी के पुलिस इतिहास में मीलेटोनिक मोड़ साबित हो सकता है।
कार्रवाईवादी एजेंडा
1. नियमित ऑडिट रिपोर्ट प्रकाशित हों : केसों में ठोस कदम जनता के सामने आने चाहिए।
2. ग्रामीण शिकायत केंद्र : छोटे-स्तर पर पुलिस की गलती की रिपोर्टिंग और त्वरित निवारण।
3. मीडिया इंटरैक्शन : DGP कार्यालय नियमित प्रेस ब्रिफिंग करे, जिससे भरोसा बने और अफवाहों को मिटाया जा सके।
उत्तर प्रदेश में पुलिस की लापरवाही और गैर-जवाबदेही का दौर खत्म होना शुरू हो चुका है। कार्यवाहक DGP राजीव कृष्ण ने तीन विवादास्पद और संवेदनशील मामलों में स्पष्ट कार्रवाई कर बताया है कि न्याय को चुनौती देने की बजाय इसे सम्मान देना प्राथमिकता होगी। हालाँकि, यह सिर्फ शुरुआत है-अब इसे कायदों, सुधारों और खुले संवाद से मजबूत करना ज़रूरी है, तभी ‘जुगनू के उस विश्वास’ को दीपक में बदलने की बात यथार्थ बन सकेगी।
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