14 साल पुराने हत्या मामले में डीएसपी, दारोगा और डॉक्टर पर गिरफ्तारी वारंट; बगहा एसपी को शोकॉज नोटिस

सीतामढ़ी के डीएसपी अतनु दत्ता, दारोगा अमरेश कुमार सिंह और एक डॉक्टर एके तिवारी के खिराफ गिरफ्तारी जारी किया गया है। तीनों को गिरफ्तार कर बगहा सिविल कोर्ट के एडीजे फोर के कोर्ट में हाजिर कराने का आदेश एसपी को दिया गया है।

Jun 3, 2025 - 07:48
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14 साल पुराने हत्या मामले में डीएसपी, दारोगा और डॉक्टर पर गिरफ्तारी वारंट; बगहा एसपी को शोकॉज नोटिस
कोर्ट आदेश

बिहार के बगहा सिविल कोर्ट ने 2011 के डेबा हत्याकांड से जुड़े एक लंबे समय से लंबित मामले में कठोर रुख अपनाते हुए सीतामढ़ी के डीएसपी अतनु दत्ता, दारोगा अमरेश कुमार सिंह, और डॉ. ए.के. तिवारी के विरुद्ध गिरफ्तारी वारंट (Arrest Warrant) जारी किया है।

इन तीनों को गवाही नहीं देने के कारण मुकदमा वर्षों से लंबित है। अब कोर्ट ने आदेश दिया है कि इनकी गिरफ्तारी कर 10 जून को एडीजे-4 की अदालत में पेश किया जाए। साथ ही, गिरफ्तारी वारंट की तामील में लापरवाही बरतने के लिए बगहा एसपी को 'कारण बताओ नोटिस' (Show Cause Notice) भी जारी किया गया है।

विधिक पृष्ठभूमि और तथ्यात्मक विश्लेषण:

यह मामला बगहा थाना कांड संख्या 472/2011 से संबंधित है, जिसमें डेबा हत्याकांड की सुनवाई पिछले 14 वर्षों से गवाहों की अनुपस्थिति के कारण लंबित है।

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 311 के तहत, अदालत किसी भी व्यक्ति को साक्ष्य देने के लिए बुला सकती है, यदि वह न्याय के लिए आवश्यक हो।

इसी प्रकार, CrPC की धारा 87 और 88 के अंतर्गत अदालत गैरहाजिर गवाहों के लिए गिरफ्तारी वारंट (Non-Bailable Warrant - NBW) जारी कर सकती है।

अदालत ने पूर्व में भी NBW जारी किया था, लेकिन तामिला (Execution of Warrant) नहीं होने के कारण कोई कार्रवाई नहीं हुई।

 CrPC की धारा 128 के अंतर्गत, वारंट तामिल न करना पुलिस की प्रशासनिक विफलता मानी जाती है, जिससे अदालत ने बगहा के एसपी से जवाब तलब किया है।

आगामी कार्रवाई:

अगली सुनवाई की तारीख 10 जून 2025 निर्धारित की गई है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि तीनों आरोपी अधिकारियों और डॉक्टर को हर हाल में कोर्ट में पेश किया जाए।

यदि आदेशों का पालन नहीं हुआ तो अदालत अवमानना की कार्यवाही (Contempt Proceedings) भी शुरू कर सकती है।

संभावित प्रभाव:

यह मामला पुलिस अधिकारियों की प्रक्रियात्मक जिम्मेदारी और गवाह के रूप में न्यायिक प्रक्रिया में भागीदारी की कानूनी बाध्यता को उजागर करता है। इससे यह संकेत भी जाता है कि न्यायालय अब दीर्घकालिक पेंडेंसी और प्रशासनिक ढिलाई के प्रति सख्त दृष्टिकोण अपना रहे हैं।

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