मेडिकल किडनैपिंग का सनसनीखेज मामला: फोर्टिस अस्पताल, बेंगलुरु पर अभिनव वर्मा के गंभीर आरोप

43 लाख रुपये के बिल और 50 दिनों की ICU अवधि के बावजूद एक मरीज की मृत्यु ने कॉरपोरेट अस्पतालों की पारदर्शिता और नैतिकता पर सवाल खड़े किए हैं। कानूनी कार्रवाई की कमी और अभिनव की आर्थिक मजबूरियों ने इस मामले को अनसुलझा छोड़ दिया है। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया और संबंधित प्राधिकरणों से इस मामले की गहन जाँच की माँग की जा रही है ताकि सच सामने आ सके और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।

May 17, 2025 - 08:49
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मेडिकल किडनैपिंग का सनसनीखेज मामला: फोर्टिस अस्पताल, बेंगलुरु पर अभिनव वर्मा के गंभीर आरोप
अभिनव वर्मा की मृत माँ

बेंगलुरु, 17 मई 2025: बेंगलुरु के फोर्टिस अस्पताल, बैनरघट्टा रोड पर कथित चिकित्सकीय लापरवाही और मेडिकल किडनैपिंग का एक मामला सामने आया है, जिसने देश भर में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और कॉरपोरेट अस्पतालों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अभिनव वर्मा ने अपनी 50 वर्षीय माँ की मृत्यु के लिए फोर्टिस अस्पताल पर चिकित्सकीय लापरवाही, अनावश्यक उपचार और 43 लाख रुपये की अत्यधिक बिलिंग का आरोप लगाया है। यह मामला 2017 में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X और फेसबुक पर वायरल हुआ और हाल ही में 2025 में फिर से चर्चा में आया, जहाँ यूजर्स ने इसे 'मेडिकल किडनैपिंग' का उदाहरण बताकर कॉरपोरेट अस्पतालों की आलोचना की।

मामले का विवरण

अभिनव वर्मा के अनुसार, उनकी माँ को मई 2017 में पेट में दर्द की शिकायत हुई। वे अपनी माँ को बैनरघट्टा रोड स्थित फोर्टिस अस्पताल ले गए, जहाँ डॉ. कनिराज ने अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह दी। अल्ट्रासाउंड में 5 मिमी की गॉल ब्लैडर पथरी का पता चला। डॉ. कनिराज ने बताया कि यह एक छोटा सा ऑपरेशन है, जिसके बाद उनकी माँ स्वस्थ हो जाएंगी। अभिनव ने अपनी माँ को भर्ती कराया, यह उम्मीद करते हुए कि यह एक सामान्य प्रक्रिया होगी।

हालांकि, गॉल ब्लैडर पथरी के लिए साधारण सर्जरी के बजाय, डॉ. शब्बर अहमद ने ERCP (एंडोस्कोपिक रेट्रोग्रेड कोलेंजियोपैनक्रियाटोग्राफी) करने का फैसला किया, जिसे डॉ. पूर्णचंद्रा केएस ने किया। अभिनव का दावा है कि इस प्रक्रिया के बाद उनकी माँ की हालत बिगड़ने लगी। ERCP के बाद पैनक्रियास, किडनी, फेफड़े और हृदय जैसे महत्वपूर्ण अंगों में एक-एक करके समस्याएं शुरू हो गईं। उनकी माँ को 16 मई 2017 को ICU में शिफ्ट किया गया, जहाँ वे 50 दिनों तक वेंटिलेटर और अन्य लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रहीं। इस दौरान उनकी माँ को मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट (MDR) क्लेबसिएला निमोनिया जैसे गंभीर संक्रमण हो गए।

अभिनव का आरोप है कि अस्पताल ने उनकी माँ का इलाज कई तरह की सर्जरी और प्रक्रियाओं (जैसे पैनक्रियाटिक नेक्रोसिस सर्जरी, पेसमेकर, ट्रेकियोस्टॉमी) के साथ किया, लेकिन गॉल ब्लैडर पथरी की सर्जरी कभी नहीं हुई। एक बाद की रिपोर्ट में दावा किया गया कि उनकी माँ के गॉल ब्लैडर में कोई पथरी थी ही नहीं। 3 जुलाई 2017 को, 50 दिनों के बाद, अभिनव की माँ की मृत्यु हो गई। अस्पताल ने 43 लाख रुपये का बिल थमाया, जिसमें 12 लाख रुपये केवल दवाओं के लिए थे।

अभिनव के अन्य आरोप

चिकित्सकीय दस्तावेजों में गलतियाँ: कई मेडिकल रिपोर्ट्स में उनकी माँ का लिंग पुरुष के रूप में दर्ज किया गया। अस्पताल ने इसे 'क्लर्कियल मिस्टेक' बताकर टाल दिया।

उपचार में रुकावट: ट्रेकियोस्टॉमी सर्जरी को बिल का भुगतान न होने के कारण बीच में रोक दिया गया और भुगतान के बाद ही पूरा किया गया।

अनावश्यक प्रक्रियाएं: अस्पताल ने कैंसर के संदेह में इलाज शुरू किया, जबकि बायोप्सी में कैंसर की पुष्टि नहीं हुई थी।

अस्पताल का व्यवहार: ICU में उनकी माँ की मृत्यु के बाद डॉक्टरों और स्टाफ को हंसते हुए देखा गया, जिसका CCTV फुटेज उपलब्ध होने का दावा किया गया।

अस्पताल का पक्ष

फोर्टिस अस्पताल ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि मरीज को एक्यूट कोलेसिस्टाइटिस और पेरिएम्पुलरी कार्सिनोमा (कैंसर) के लक्षणों के साथ भर्ती किया गया था, जिसका प्रोग्नोसिस खराब होता है। अस्पताल का दावा है कि सभी प्रक्रियाएं मरीज के परिवार की सहमति से की गईं और एक उच्च कुशल मल्टीडिसिप्लिनरी टीम ने इलाज किया। अस्पताल ने कहा कि मरीज को प्रक्रियाओं से जुड़ी जटिलताएं हुईं, जो इस तरह के मामलों में सामान्य हैं, और डॉक्टरों के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद मरीज को बचाया नहीं जा सका।

लीगल कार्रवाई और स्थिति

अभिनव वर्मा ने अपनी माँ की मृत्यु को "मेडिकल किडनैपिंग और मर्डर" करार देते हुए कानूनी कार्रवाई की माँग की। उन्होंने Change.org पर एक याचिका शुरू की, जिसमें फोर्टिस पर लापरवाही और हत्या का आरोप लगाया गया। याचिका में उन्होंने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) और अन्य प्राधिकरणों से इस मामले की जाँच की माँग की।

2017 में, अभिनव ने अपनी कहानी को फेसबुक पर साझा किया, जो एक लाख से अधिक बार शेयर हुई। इसके बाद, फोर्टिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अभिनव के परिवार को मौद्रिक सेटलमेंट की पेशकश की, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। यह सेटलमेंट ऑफर कॉरपोरेट अस्पतालों द्वारा मरीजों के परिवारों को चुप कराने की रणनीति का हिस्सा माना गया, जैसा कि अन्य मामलों में भी देखा गया है।

हालांकि, उपलब्ध जानकारी के अनुसार, इस मामले में कोई औपचारिक FIR या कोर्ट केस दर्ज होने का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया या कर्नाटक मेडिकल काउंसिल द्वारा इस मामले में कोई जाँच शुरू होने की पुष्टि नहीं हुई है। अभिनव ने अपनी याचिका और सोशल मीडिया पोस्ट में दावा किया कि 43 लाख रुपये की भारी लागत के बाद उनके लिए कानूनी लड़ाई जारी रखना आर्थिक रूप से मुश्किल है, जिसके कारण मामला कानूनी रूप से आगे नहीं बढ़ सका।

फोर्टिस अस्पताल, बैनरघट्टा रोड पर अन्य मामलों में भी कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ा है। उदाहरण के लिए, 2011 में एक पैनक्रियास ट्रांसप्लांट सर्जरी में लापरवाही के कारण अस्पताल का लाइसेंस रद्द किया गया था। 2021 में, कोविड-19 मरीज को भर्ती करने से इनकार करने के लिए अस्पताल के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी। हालांकि, अभिनव वर्मा के मामले में कोई ऐसी विशिष्ट कानूनी कार्रवाई की जानकारी उपलब्ध नहीं है।

2025 तक, इस मामले की कानूनी स्थिति अनिर्णीत बनी हुई है। X पर हाल की पोस्ट्स में इस मामले को फिर से उठाया गया, लेकिन कोई नया कानूनी अपडेट सामने नहीं आया। अभिनव की याचिका और सोशल मीडिया अभियान ने जनता का ध्यान तो आकर्षित किया, लेकिन कानूनी प्रक्रिया में प्रगति की कमी ने इस मामले को अधर में छोड़ दिया है।

सोशल मीडिया पर हंगामा

अभिनव की फेसबुक पोस्ट "मेडिकल किडनैपिंग एंड मर्डर बाय डॉक्टर्स ऑफ फोर्टिस बैनरघट्टा हॉस्पिटल" 2017 में वायरल हुई, जिसे एक लाख से अधिक बार शेयर किया गया। 2025 में, X पर यूजर्स ने इस मामले को फिर से उठाया, एक यूजर ने लिखा, "रिपोर्ट आई... अभिनव वर्मा की माँ के गॉल ब्लैडर में कभी कोई पथरी नहीं थी।" यूजर्स ने कॉरपोरेट अस्पतालों की मुनाफाखोरी और लापरवाही की आलोचना की, और मेडिकल किडनैपिंग को स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की एक बड़ी खामी बताया।

कानूनी और सामाजिक प्रभाव

यह मामला भारत में कॉरपोरेट अस्पतालों की जवाबदेही और मेडिकल किडनैपिंग की अवधारणा पर बहस को तेज करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि निजी अस्पतालों पर सख्त नियामक निगरानी की जरूरत है। अभिनव का मामला उन कई उदाहरणों में से एक है, जहाँ मरीजों के परिवारों ने कॉरपोरेट अस्पतालों पर अत्यधिक बिलिंग और लापरवाही का आरोप लगाया है।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I